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पपीते की महत्वपूर्ण बीमारियों के लक्षण व समाधान

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पपीते की महत्वपूर्ण बीमारियों के लक्षण व समाधान – पपीता सरलता से उगाया जाने वाला, कम समय में स्वादिष्ट फल देने वाला पौधा है। पपीता वीटा ए, सी और पपेन में भरपूर होता है। इस फसल में कई बीमारियाँ लगती हैं जिनका समय समय पर नियंत्रण करना आवश्यक है। इस लेख में पपीते की हानिकारक बीमारियों के लक्षण व उनके रोकथाम की उचित जानकारी दी गई है।
मोजेक- यह एक विषाणु रोग है। रोगग्रस्त पौधों के पत्ते छोटे और मुड़े हुए नजऱ आते हैं।

रोकथाम- यह विषाणु रोग अक्सर चेपे द्वारा फैलता है। इसे नष्ट करने के लिए 250 मि ली मैलाथियान 50 ई. सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।

कालर रॉट/ तना गलन- इस रोग से प्रभावित पौधे भूमि की सतेह के पास से अक्सर गलने लग जाते हैं, पतियाँ पीली पड़ जाती हैं पौधे की बढ़वार रुक जाती है।

रोकथाम- रोगग्रस्त पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें और ध्यान रखें कि पौधे के आस-पास पानी न खड़ा हो।

लीफ कर्ल- यह एक जटिल विषाणु रोग है। रोगग्रस्त पौधों के पत्ते छोटे और नीचे की ओर मुड़े हुए नजर आते हैं। पत्तियों का शिराओं से पिला हो जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों पर फल कम और छोटे आकर के लगते हैं।

रोकथाम- रोगग्रस्त पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें और भिण्डी के खेत के नजदीक इसकी काश्त न करें।

एन्थ्रेक्नोज- यह रोग प्रमुख रूप से फलों को प्रभावित करता है। रोगग्रस्त फलों पर अंदर की तरफ धंसे हुए धब्बे बन जाते हैं, जिसके ऊपर गुलाबी रंग के बिंदु दिखाई देते हैं।

रोकथाम- इस रोग से प्रभावित फलों को तुरंत नष्ट करें तथा 0.2 प्रतिशत कैप्टान का छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करें।

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