कृषि विज्ञान केन्द्र, धार की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक आयोजित
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, धार
26 मई 2025, भोपाल: कृषि विज्ञान केन्द्र, धार की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक आयोजित – कृषि विज्ञान केन्द्र, धार की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक हाइब्रिड मोड (ऑनलाइन एवं ऑफलाइन) में दिनॉक 22/05/2025 को डॉ. वॉय.पी. सिंह, निदेशालय विस्तार सेवाएं, रा.वि.सिं.कृ.वि.वि., ग्वालियर की अध्यक्षता में डॉ. एस.के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान सेवायें, रा.वि.सिं.कृ.वि.वि., ग्वालियर के मुख्य अतिथ्य में, डॉ. ए.ए. राउत, वरिष्ठ वैज्ञानिक, अटारी, जबलपुर, डॉ. भरतसिंह, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, इन्दौर एवं डॉ. अखिलेश सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक, निदेशालय विस्तार सेवाएं, रा.वि.सिं.कृ.वि.वि., ग्वालियर आदि के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुई। बैठक में कृषि एवं संबद्ध विभागों के साथ-साथ जिले के सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों, एफ.पी.ओ. के सदस्य एवं प्रगतिशील कृषक उपस्थित थे। बैठक में डॉ. एस.एस. चौहान, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख द्वारा डॉ. एस.एस. चौहान ने केन्द्र द्वारा विगत रबी 2024-25 मौसम के छः माह में किये गए कार्यों एवं आगामी खरीफ 2025 मौसम के छः माह की कार्ययोजना पर प्रस्तुतीकरण किया गया।
निदेशालय विस्तार सेवाएं, डॉ. वॉय.पी. सिंह ने बताया कि फसल चक्र मौसम समाप्ति उपरांत जीरो टिलेज का उपयोग करके खेती की लागत किया जा सकता। इस प्रकार की तकनीकों को किसानों तक पहुंचाया जाये जिससे लागत में कमी हो व उत्पादन की अधिक हो सके। उन्होंने कहा कि मौसम में बदलाव हो रहा है जिससे बीज बुवाई के समय में बदलाव करना आवश्यक है अतएव इसके अनुरुप बुवाई हेतु किसानों को संदेश पहुंचाये व जागरुक करें। कृषि महाविद्यालय, इन्दौर से उपस्थित अधिष्ठाता, डॉ. भरतसिंह ने कहा कि किसानों तक उन्नत तकनीकी के प्रसार हेतु जरुरी है कि कृषि विज्ञान केन्द्र एवं गैर-सरकारी संगठन मिलजुल कर कार्य करें। वे अपने क्षेत्रों के अनुभवों को साझा कर उचित सलाह एक-दूसरे तक पहुंचाये जिससे किसान लाभान्वित हो सके व योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हो सके। कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) से उपस्थित वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. ए.ए. राउत ने कहा कि जिले में फसल विविधिकरण एवं फसल चक्र की अभी बहुत संभावनाएं है। किसानों को प्रशिक्षण एवं जागरुकता कार्यक्रमों से इसको अपनाने हेतु प्रेरित करें। इसके अतिरिक्त फसल अवशेषों के प्रबंधन पर कार्य किये जाये जिससे मृदा स्वास्थ्य की सुरक्षा हो सके। रा.वि.सि. कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर से निदेशक विस्तार सेवाएं के प्रतिनिधि के रुप में उपस्थित वरिष्ठ वैज्ञानिक विशेषज्ञ डॉ. अखिलेश सिंह ने बताया कि वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक है कि किसानों को प्रक्षेत्र प्रशिक्षणों के अतिरिक्त स्वरोजगार संबंधी प्रशिक्षण भी दिये जायें व जिससे वह व्यावहारिक एवं क्रियाशील ज्ञान प्राप्त कर सके ।
जिले के उपसंचालक कृषि श्री जी.एस. मोहनिया ने कहा कि मिट्टी परीक्षणों की रिपोर्ट के अनुसार मृदा में पोषक तत्वों की कमी पाई गई है इस हेतु केन्द्र अपने तकनीकी कार्यक्रमों में जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती पर प्रदर्शनो का समावेश करें। किसानों को प्रेरित करें कि वे पराम्परागत फसलों के अतिरिक्त दलहनी फसलों को भी शामिल करें साथ ही साथ अगामी कार्ययोजना में कपास संबंधी तकनीकी प्रक्षेत्र परीक्षणों को भी शामिल करें। पशुपालन विभाग, धार से उपसंचालक डॉ. एस.के. मोदी ने बताया कि वर्तमान समयानुसार जिले में पांच घटकों गौ गाव्य, जैविक खेती, अजोला उत्पादन, बहुमंजिला खेती एवं मशरुम उत्पादन आदि पर तकनीकी प्रदर्शनों की अत्यंत आवश्यकता है। इन पांच घटकों पर आवश्यक तकनीकी प्रदर्शन, प्रशिक्षण एवं जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजित करें। कृषि विज्ञान केन्द्र, मनावर से डॉ. धर्वेन्द्र सिंह सरसों की उन्नत किस्मों का उपयोग करने व कृषि विज्ञान केन्द्र, झाबुआ से डॉ. जगदीश मौर्ये द्वारा केन्द्र द्वारा सब्जियों के पौध तैयार किये जावे व इनका विक्रय की बात कही इससे न सिर्फ केन्द्र की आय बढ़ेगी बल्कि किसानों को अच्छी गुणवत्ता के पौध उपलब्धता हो सकेंगें।
इफको से श्री विकास चौरासिया जी ने सुझावित किया कि केन्द्र के आगामी प्रदर्शनों में नैनो डी.ए.पी.एवं एग्री ड्रोन से छिड़काव करने एवं इस पद्धति से होने वाले फायदे एवं नुकसान का आंकलन करें ताकि उसके अनुरुप कार्ययोजना बनाई जा सके। कृषि आभियांत्रिकी विभाग, धार से सहायक यंत्री, डॉ. अभिषेक अग्रवाल ने सुझाव दिया कि सोयाबीन फसल में अच्छे उत्पादन हेतु उन्नत बुवाई पद्धतियों जैसे रेज्ड एंड फॅरो, रेज्ड बेड आदि पर भी प्रदर्शन किये जायें। इसके अतिरिक्त ड्रोन एवं ड्रोन पाइलट द्वारा प्रदर्शन हेतु सुझाव प्रस्तुत किये। इसके अतिरिक्त अन्य सुझाव जैसे जैविक कपास एवं कपास में प्राकृतिक खेती पर तकनीकी कार्यक्रम, प्रक्षेत्र परीक्षणों के परीणामों को विभिन्न प्रकाशनों में प्रकाशित करने, जैविक या प्राकृतिक के उत्पादों हेतु उचित बाजार की उपलब्धता, बहुमंजिला कृषि पद्वति, पोषक प्रबंधन एवं आय अर्जन हेतु विभिन्न जागरुकता कार्यक्रमों, प्रसार कार्यक्रमों, गैर-सरकारी संगठनों से सहभागिता, बीज उपलब्धता सुनिश्चित करने, मृदा स्वास्थ्य हेतु जैविक खेती, प्राकृतिक खेती को अपनाने आदि के सुझाव प्राप्त हुए। कार्यक्रम का समापन डॉ. डी.एस. मण्डलोई द्वारा आभार प्रकट करते हुए किया गया।
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