छत्तीसगढ़ में 15 लाख हेक्टेयर में उगाई जाएंगी दलहनी फसलें : श्री चौबे
दलहनी फसलों के अनुसंधान एवं विकास पर राष्ट्रीय कार्यशाला
25 अगस्त 2022, रायपुर । छत्तीसगढ़ में 15 लाख हेक्टेयर में उगाई जाएंगी दलहनी फसलें : श्री चौबे – प्रदेश के कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में दलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दलहन उगाने वाले किसानों को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिसके तहत धान की जगह दलहन उत्पादन करने वाले किसानों को प्रति एकड़ नौ हजार रूपये का अनुदान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा किसानों से अरहर एवं उड़द की खरीदी समर्थन मूल्य 6600 रूपये की जगह 8000 रूपये प्रति क्विंटल की दर पर की जा रही है। राज्य सरकार के प्रयासों से पिछले वर्षों में राज्य में दलहन के रकबे एवं उत्पादन बढ़ोतरी हुई है और आज 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहन फसलों की खेती की जा रही है जिसके आगामी दो वर्षों में बढक़र 15 लाख हेक्टेयर होने की उम्मीद है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के किसानों से ज्यादा से ज्यादा रकबे में दलहनी फसलें उगाने का आव्हान किया। श्री चौबे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का शुभारंभ कर रहे थे।
शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र शर्मा, शाकम्भरी बोर्ड के अध्यक्ष श्री रामकुमार पटेल, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ. बंसा सिंह, भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम तथा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रबंध मंडल के सदस्य श्री आनंद मिश्रा भी उपस्थित थे। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास, अनुसंधान एवं उत्पादन तकनीकी पर विचार-मंथन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने के लिए आयोजित इस दो दिवसीय कार्यशाला एंव वार्षिक समूह बैठक में देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक शामिल हुए।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा भारत को दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं इसका आयात कम करने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप देश में इस वर्ष 2 करोड़ 80 लाख मीट्रिक टन दलहन उत्पादन होने की संभावना है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में देश में 1 करोड़ 60 लाख मीट्रिक टन दलहन का उत्पादन होता था।
उन्होंने दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसकी रोगरोधी एवं उन्नतशील किस्में उगाने तथा यंत्रीकरण के उपयोग में वृद्धि करने पर जोर दिया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि धान के कटोरे के रूप में प्रख्यात छत्तीसगढ़ आज दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है। उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दलहनी फसलों की नवीन उन्नतशील किस्में विकसित किये जाने पर बधाई दी।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में दलहनी फसलों पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हेतु तीन अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं – मुलार्प फसलें (मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा, मटर), चना एवं अरहर संचालित की जा रहीं है जिसके तहत नवीन उन्नत किस्मों के विकास, उत्पादन तकनीक एवं कृषकों के खेतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा अबतक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है जिनमें मूंग की 2, उड़द की 1, अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा छत्तीसगढ़ की प्रमुख दलहन फसल तिवड़ा की दो उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो मानव उपयोग हेतु पूर्णत: सुरक्षित है।
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