राज्य कृषि समाचार (State News)

उत्पादन बढ़ाना है तो खेत में करे ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई

01 मई 2025, भोपाल: उत्पादन बढ़ाना है तो खेत में करे ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई – कृषि विज्ञान केन्द्र पोकरण द्वारा गर्मियों में गहरी जुताई विषयक किसान चौपाल का आयोजन ग्राम दुधिया रामदेवरा में किया गया। अधिकांशत: किसान खेत की जुताई का काम खरीफ फसलों की बुवाई के समय करते हैं। जबकि फसल के अधिक उत्पादन के लिए रबी फसलों की कटाई के पश्चात अप्रैल-मई माह में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई (9 से 12 इंच तक) कर ग्रीष्म ऋतू में खेत को खाली रखना बहुत ही ज्यादा लाभप्रद होता हैं।

केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ दशरथ प्रसाद ने बताया कि जुताई करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि यदि खेत का ढलान पूर्व से पश्चिम की ओर हो तो, जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर करनी चाहिए तथा भूमि ऊंची नीची है तो उसे इस प्रकार जोतना चाहिए कि मिट्टी का बहाव न हो, यानी ढाल के विपरीत दिशा में जुताई करें। यदि एकदम ढलान है तो टेढ़ी जुताई करना उपयुक्त होता है। ऐसा करने से अधिकतम वर्षा जल को मृदा सोख लेती हैं और पानी जमीन की निचली स्थान तक पहुंच जाता हैं जिससे न केवल मृदा कटाव रुकता हैं बल्कि पोषक तत्व भी बहकर नहीं जाते है। कीड़े, बीमारी व खरपतवारों से फसल को काफी नुकसान होता हैं। कभी- कभी तो ये तीनो महामारी का रूप ले लेते हैं जिससे उत्पादन का गंभीर संकट पैदा हो जाता हैं।

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फसलों में लगने वाले कीट जैसे सफेद लट, कटवा इल्ली, लाल भृंग की इल्ली, भूमिगत कीटों के अंडे, प्युपा, लटें तथा वयस्क तथा व्याधियों जैसे उखटा,जड़गलन आदि रोगों के रोगाणु एवं सूत्रकृमि इत्यादि की रोकथाम की दृष्टि से गर्मियों में गहरी जुताई अत्यन्त लाभकारी है। अतः गर्मी में गहरी जुताई करने से एक सीमा तक कीड़े एवं बिमारियों से छुटकारा पाया जा सकता हैं। साथ ही उन्होने बताया कि किसान भाई 2–3 साल में एक बार मोल्ड बोल्ड प्लाऊ या डिस्क प्लाऊ से ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करके लवणीय – क्षारीय मृदाओं में सुधार कर सकते है। शस्य वैज्ञानिक डॉ के.जी. व्यास ने बताया कि ग्रीष्मकालीन जुताई खरपतवार नियंत्रण में सहायक है। गहरी जुताई से दुब, कांस, मोथा, वायासुरी आदि खरतवारों से भी मुक्ति मिलती हैं। गहरी जुताई और मिट्टी को पलटने से खरपतवार नियंत्रण और खरपतवार नाशी का कम उपयोग ग्रीष्मकालीन जुताई का एक बड़ा फायदा है। इसके अलावा गर्मी की गहरी जुताई से गोबर की खाद व खेत में उपलब्ध अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में भली भांति मिल जाते हैं, जिससे अगली फसल को पोषक तत्व आसानी से शीघ्र उपलब्ध हो जाते हैं। उन्होने बताया कि हल्की जुताई करने से मिट्टी की सतह कठोर हो जाती जिसके कारण जड़ों का अधिक गहराई में फैलाव नहीं हो पाता, गहरी जुताई मिट्टी की कठोर सतह को तोड़ती है। पशुपालन वैज्ञानिक डॉ रामनिवास किसानो को बताते है कि यदि मई के महीने में खेत में गहरी जुताई की जाती है तो खेत की मिट्टी में ढेले बन जाने से वर्षा जल को सोखने की क्षमता बढ़ जाती हैं जिससे खेत में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती हैं। ग्रीष्मकालीन जुताई से खेत का पानी खेत में ही रह जाता हैं, जो बहकर बेकार नहीं होता तथा वर्षाजल के बहाव के द्वारा होने वाले भूमि कटाव में भारी कमी होती हैं। गहरी जुताई करने से खेत की भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों का वायु द्वारा होने वाली हानि व मृदा अपरदन कम होता हैं। 

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