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वन अधिकार अधिनियम ने कैसे बदला छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसानों का जीवन?

10 जनवरी 2025, रायपुर: वन अधिकार अधिनियम ने कैसे बदला छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसानों का जीवन? – छत्तीसगढ़ में वन अधिकार अधिनियम के तहत काबिज भूमि का पट्टा मिलने से किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव दिखने लगे हैं। महासमुंद जिले के ग्राम बैहाडीह के निवासी श्री शोभितराम बरिहा की कहानी इस परिवर्तन का प्रमाण है।

सालों की मेहनत के बाद आया स्थायित्व

बिंझवार जाति से ताल्लुक रखने वाले श्री बरिहा वर्षों तक अपने कब्जे की जमीन पर खेती करते रहे। लेकिन वर्षा आधारित खेती और सीमित संसाधनों के चलते उनकी आय बेहद कम थी। फसल उत्पादन औसत से नीचे था, और उनकी सालाना आय मुश्किल से 25-30 हजार रुपये तक सीमित रहती थी।

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साल 2022 में उन्हें वन अधिकार अधिनियम के तहत काबिज भूमि का पट्टा मिला। इसके बाद, उन्होंने जमीन के समतलीकरण और सुधार का काम मनरेगा योजना के तहत कराया। उनकी खेती अब अधिक उत्पादक हो गई है, और वह अपनी उपज को सरकारी समर्थन मूल्य पर बेचने लगे हैं। इससे उनकी वार्षिक आय बढ़कर 60-70 हजार रुपये तक पहुंच गई, जो पहले से दोगुनी है।

वन अधिकार पट्टा मिलने के बाद, श्री शोभितराम ने खेती में आधुनिक तकनीकों को अपनाया। उन्होंने अपनी जमीन पर ट्यूबवेल लगवाकर सिंचाई की सुविधा स्थापित की, जिससे अब वे साल में दो फसलें उपजा पा रहे हैं। ग्रीष्मकाल में गेहूं, सूरजमुखी और सब्जियों की खेती ने उनकी आय को और बढ़ाया।

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आर्थिक स्थिति में सुधार के चलते उन्होंने अपने परिवार के लिए पक्का मकान बनाया। इसके साथ ही, एक ट्रैक्टर भी खरीदा, जिसे वे कृषि कार्यों में इस्तेमाल करने के साथ-साथ किराए पर देकर अतिरिक्त आय कमा रहे हैं।

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आर्थिक स्थिरता और आत्मनिर्भरता

श्री शोभितराम बताते हैं कि पट्टा मिलने के बाद उन्होंने अपनी जमीन पर मेहनत करने के लिए प्रेरित महसूस किया। सिंचाई और तकनीकी मदद से बेहतर उत्पादन ने उन्हें बच्चों को बेहतर शिक्षा देने और परिवार का जीवनस्तर ऊंचा करने में सक्षम बनाया है।

उनका कहना है, “वन अधिकार पट्टा मिलने के बाद मैंने खेती पर पूरा ध्यान दिया। अब मेरी आय में स्थिरता आ गई है, और मैं अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा दे पा रहा हूं।”

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