राज्य कृषि समाचार (State News)

 सरसों की फसल के लिए प्रभावी सिंचाई तकनीकें

श्री हरीश बाथम (एम.एस.सी. (कृषि) एग्रोनॉमी शोधार्थी), कृषि विद्यालय, विक्रांत विश्वविद्यालय, ग्वालियर, (म.प्र.), श्री अभय प्रताप सिंह तोमर (एम.एस.सी. (कृषि) एग्रोनॉमी शोधार्थी) , डॉ.सचिन कुमार सिंह (विभाग प्रमुख), डॉ मांडवी श्रीवास्तव (सहायक प्रोफेसर), डॉ. हिरदेश कुमार (सहायक प्रोफेसर), Email- Jiharish093@gmail.com

22 अक्टूबर 2025, भोपाल: सरसों की फसल के लिए प्रभावी सिंचाई तकनीकें – सरसों (मस्टर्ड) एक प्रमुख रबी तिलहन फसल है, जो उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में व्यापक रूप से उगाई जाती है। यह फसल कम पानी की आवश्यकता वाली होती है, लेकिन सही और प्रभावी सिंचाई से उपज में 20-30% की वृद्धि हो सकती है। पारंपरिक सिंचाई से औसतन 20-25 क्विंटल/हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है, जबकि उन्नत तकनीकों से यह 25-30 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुँच सकती है। सिंचाई न केवल फसल की वृद्धि को मजबूत बनाती है, बल्कि बीज की गुणवत्ता, तेल सामग्री और मुनाफे को भी बढ़ाती  ।सरसों की फसल में सिंचाई प्रबंधन का मतलब है कि पौधों को सही समय पर और सही मात्रा में पानी देने की कला को समझना। लेकिन इसके कुछ विकास चरण होते हैं जहां पानी की सटीक मात्रा न मिलने पर उत्पादन पर सीधा असर पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, जब सरसों फूल या फलियां बनाने की प्रक्रिया में होती है, तब उसे पानी की अधिक जरूरत होती है।  

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1. सरसों की फसल की जल आवश्यकताएँ –

सरसों को सामान्यतः 250 से 400 मिलीमीटर (mm) पानी की आवश्यकता होती है।
यह मात्रा मिट्टी के प्रकार, वर्षा की उपलब्धता और तापमान पर निर्भर करती है।

  • दोमट मिट्टी (Loamy soil): 2–3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं।
  • रेतीली मिट्टी (Sandy soil): 4–5 सिंचाई की आवश्यकता होती है क्योंकि नमी जल्दी निकल जाती है।
  • काली मिट्टी (Black soil): पानी को लंबे समय तक रोकती है, इसलिए 2 सिंचाई भी काफी रहती है।

नोट: अत्यधिक सिंचाई से पौधों में पीलापन, रोग (जैसे सफेद फफूंदी) और जड़ों का सड़ना जैसी समस्याएँ होती हैं।

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2. सिंचाई के महत्वपूर्ण चरण

सरसों की फसल में कुछ चरण ऐसे होते हैं जिन पर सिंचाई करना सबसे ज़रूरी होता है। इन चरणों में पानी की कमी से उत्पादन पर भारी असर पड़ता है।

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चरणदिन (लगभग)सिंचाई का महत्व
अंकुरण या बुवाई के बाद (Sowing stage)बुवाई के तुरंत  बादबीज अंकुरण समान रूप से होता है
फूल निकलने का चरण (Flowering stage)40–45 दिन बादसबसे महत्वपूर्ण चरण; फूल झड़ने से बचते हैं
फली बनने का चरण (Pod formation stage)60–70 दिन बाददाने अच्छे बनते हैं और तेल की मात्रा बढ़ती है
दाना भराव चरण (Grain filling stage)80–90 दिन बादअंतिम उपज को प्रभावित करता है

Note- कटाई से 15–20 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें, ताकि फसल पकने के समय खेत में नमी अधिक न रहे।


3. प्रभावी सिंचाई तकनीकें-

1. पारंपरिक सिंचाई तकनीकें

सरसों की फसल को सिंचित और असिंचित (बारानी) दोनों स्थितियों में उगाया जा सकता है, लेकिन सिंचाई उपलब्ध होने पर उपज अधिक होती है। मुख्य तकनीकें निम्नलिखित हैं:

  • सिंचाई का समय और संख्या:
    • पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद या 25-35 दिनों के भीतर करें। रेतीली मिट्टी में जल्दी (25 दिनों में) और चिकनी मिट्टी में थोड़ा देर से (30-35 दिनों में) करें। यदि पौधे मुरझा जाएँ या पत्तियाँ हल्के नीले रंग की हो जाएँ, तो तुरंत सिंचाई करें। यह रोसेट अवस्था (पौधे का तना मोटा होने की शुरुआत) में की जाती है, जो पौधों की जड़ों को मजबूत बनाती है।
    • दूसरी सिंचाई: पहली से 20-25 दिनों बाद, जब फलियाँ भरने लगें (फूल आने के बाद)। यदि जाड़े में वर्षा हो जाए, तो इसे छोड़ सकते हैं।
    • कुल सिंचाइयाँ: सामान्यतः 2-3 सिंचाइयाँ, प्रत्येक के बीच 3 सप्ताह का अंतराल। कुल फसल चक्र (90-120 दिन) में अधिकतम 3 सिंचाइयाँ पर्याप्त।
  • विधि:
    • पट्टी विधि (Border Strip Method): खेत में 4-6 मीटर चौड़ी पट्टियाँ बनाकर पानी बहाएँ। इससे पानी का समान वितरण होता है और फूलों को नुकसान नहीं पहुँचता।
    • जल निकासी: अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी चुनें, ताकि पानी जमा न हो। खेत समतल बनाने से पानी की बचत होती है।
  • मात्रा और सावधानियाँ:
    • प्रति सिंचाई 500-800 मिमी पानी (मिट्टी प्रकार पर निर्भर)। अधिक पानी से जड़ सड़न हो सकती है।
    • सिंचाई के साथ खाद दें: पहली सिंचाई पर DAP/SSP (यदि बुवाई में न दिया हो) या यूरिया (40-50 किग्रा/एकड़) और जिंक सल्फेट (10-15 किग्रा/एकड़)। 2-4 दिनों बाद NPK (19:19:19) का फोलियर स्प्रे करें।
  • लाभ:
    • पौधों का तना मोटा, शाखाएँ मजबूत और फलियाँ अधिक।
    • असिंचित क्षेत्रों में 15-20 क्विंटल/हेक्टेयर उपज, जबकि सिंचित में 20-30 क्विंटल/हेक्टेयर।

2. आधुनिक सिंचाई तकनीकें

पारंपरिक विधियों में पानी की बर्बादी (वाष्पीकरण, बहाव) अधिक होती है। आधुनिक तकनीकें जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई पानी की 25-40% बचत करती हैं और फसल को सूखे से बचाती हैं। ये कम पानी वाले क्षेत्रों (जैसे राजस्थान) के लिए आदर्श हैं।

  • ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation):
    • विधि: पानी को पाइपों के माध्यम से बूंद-बूंद करके जड़ क्षेत्र में पहुँचाया जाता है। ड्रिपर (एमिटर) पौधों की पंक्तियों के साथ लगाए जाते हैं (दूरी 30 सेमी)। पानी के साथ उर्वरक मिलाकर फर्टीगेशन किया जा सकता है, जो पोषक तत्वों को सीधे जड़ों तक पहुँचाता है।
    • स्थापना:
      • मुख्य घटक: पंप, फिल्टर (स्क्रीन/डिस्क), फर्टीगेशन टैंक, प्रेशर गेज, मुख्य पाइप (पीवीसी/पीई), लेटरल ट्यूब और ड्रिपर।
      • सरसों के लिए: हर दो पंक्तियों पर एक लाइन लगाएँ। गहराई 1.5-2 फीट। प्रति घंटा 2-4 लीटर पानी/हेक्टेयर।
      • लागत: 85,000-1,25,000 रुपये/हेक्टेयर (फसल प्रकार पर निर्भर)। सब्सिडी: 35-45% (केंद्र/राज्य योजना से)।
    • समय: पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिनों बाद, फिर आवश्यकता अनुसार (मिट्टी नमी चेकर से)।
    • मात्रा: पारंपरिक 1500 लीटर/एकड़ की तुलना में 600-800 लीटर/एकड़। कुल 25-30% बचत।
    • लाभ सरसों के लिए:
      • पानी की बचत से अतिरिक्त क्षेत्र सिंचित।
      • खरपतवार कम, बीमारियाँ (जैसे व्हाइट रस्ट) का खतरा घटा।
      • उपज में 15-20% वृद्धि; फर्टीगेशन से उर्वरक दक्षता 90% तक।
      • श्रम बचत: निराई-गुड़ाई कम।
  • स्प्रिंकलर सिंचाई (Sprinkler Irrigation):
    • विधि: पानी को स्प्रिंकलर के माध्यम से वर्षा की तरह छिड़का जाता है। सरसों के खुले खेतों के लिए उपयुक्त।
    • स्थापना: पंप, मुख्य पाइप और स्प्रिंकलर हेड (दूरी 10-15 मीटर)। लागत: ड्रिप से कम (70,000-1,00,000 रुपये/हेक्टेयर)।
    • समय और मात्रा: पारंपरिक जैसा, लेकिन 20-30% पानी बचत।
    • लाभ: समान वितरण, असमतल खेतों में उपयोगी। सरसों में फूलों को नुकसान कम। हालांकि, ड्रिप से अधिक वाष्पीकरण हानि।
  • सूक्ष्म सिंचाई (Micro Irrigation):
    • ड्रिप और स्प्रिंकलर का संयोजन। सरसों में माइक्रो-स्प्रेयर से जड़ क्षेत्र को नम रखा जाता है। लाभ: 30-40% पानी बचत, उच्च दक्षता।

4. सरसों में जल संरक्षण तकनीकें

1. मृदा-आधारित जल संरक्षण तकनीकें (Soil-Based Water Conservation Techniques)–

 (A) मल्चिंग (Mulching)

  • सरसों की कतारों के बीच फसल अवशेष, पुआल या पॉलीथीन बिछाकर मिट्टी से वाष्पीकरण रोका जा सकता है; अवशेष की मात्रा 2-4 t/ha होनी चाहिए।
  • नमी 20–25% तक अधिक समय तक बनी रहती है, जो वर्षा आधारित खेती में मिट्टी की जैविक कार्बन बढ़ाती है।
  • इससे खरपतवार भी कम उगते हैं, और जड़ विकास बेहतर होता है, जिससे सूखा तनाव सहनशीलता बढ़ती है।

 (B) कंटूर बंडिंग (Contour Bunding)

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  • ढलान वाली भूमि पर सरसों बोते समय कंटूर लाइनों पर मेड़ बनाना, जो 30-50 cm ऊंची और 2-3 m चौड़ी होनी चाहिए।
  • वर्षा जल का बहाव रुकता है और मिट्टी में रिसाव बढ़ता है, जिससे भूजल पुनर्भरण 20-30% तक होता है।
  • यह तकनीक राजस्थान जैसे ढलान वाले क्षेत्रों में मिट्टी अपरदन रोकती है और नमी संरक्षण करती है।

 (C) जीरो टिलेज (Zero or Minimum Tillage)

  • पिछली खरीफ फसल (जैसे सोयाबीन या मूंग) के बाद जुताई न करना; जीरो टिल प्लांटर से सीधे बुवाई करें, अवशेष को सतह पर छोड़ दें (2.3–3.7 t/ha)।
  • इससे मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है और बुवाई जल्दी हो जाती है, ऊर्जा और श्रम लागत 30-40% कम होती है।
  • मध्यप्रदेश में यह तकनीक सरसों के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई है; उपज 11% बढ़ती है (2553 kg/ha तक), और सिस्टम उत्पादकता 24% सुधरती है।

 2. सिंचाई आधारित तकनीकें (Irrigation-Based Techniques)

 (A) ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation)

  • सरसों के पौधों की जड़ों के पास बूंद-बूंद पानी देना; IW/CPE अनुपात 0.6 पर सिंचाई करें, जहां 0.4 पर WUE 8.26 kg/ha-mm तक पहुंचती है।
  • 40–50% तक जल बचत होती है, उपभोग 191 mm तक सीमित रहता है।
  • पौधों की वृद्धि और तेल प्रतिशत दोनों में सुधार होता है; बीज उपज 18.60 q/ha तक, और शुद्ध लाभ Rs. 42639/ha।

 (B) स्प्रिंकलर सिंचाई (Sprinkler Irrigation)

  • असमान भूमि और रेतीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में उपयोगी; 65% तक जल बचत संभव, लेकिन उपज में 2-13% कमी हो सकती है।
  • हल्की सिंचाई देकर मिट्टी में नमी बनाए रखता है, विशेष रूप से बेसिन सिंचाई की तुलना में।
  • राजस्थान और एमपी के कई जिलों में इसका सफल उपयोग हो रहा है, जहां यह फसल विकास को समान बनाता है।

 (C) सिंचाई का समय निर्धारण (Irrigation Scheduling)

  • सरसों की सिंचाई 50% मिट्टी की नमी घटने पर करनी चाहिए; FAO-56 पेनमैन-मोंटेथ विधि से ET_c का अनुमान लगाएं।
  • “मिट्टी की नमी सेंसर” से सिंचाई समय निर्धारित किया जा सकता है, जो दैनिक NIR 2 mm/दिन तक नियंत्रित करता है।
  • मध्य अवस्था में अधिक फोकस करें, जहां K_c 1.09-1.22 तक होता है।

3. वर्षा जल संरक्षण तकनीकें (Rainwater Harvesting and Management)

(A) फार्म पॉन्ड (Farm Pond)

  • खेत के निचले हिस्से में एक छोटा तालाब बनाकर वर्षा जल एकत्र करें; आकार 0.1-0.5 ha, गहराई 2-3 m।
  • सूखे दिनों में उसी जल से सरसों की सिंचाई की जा सकती है, जो NIR को 20-30% पूरा करता है।
  • यह सूखा प्रभाव कम करता है और फसल उत्पादकता बढ़ाता है।

 (B) चेक डैम या पर्कोलेशन टैंक (Check Dam or Percolation Tank)

  • वर्षा जल को भूमि में रिसाकर भूजल पुनर्भरण बढ़ाते हैं; छोटे डैम 1-2 m ऊंचे, 10-20 m लंबे।
  • यह क्षेत्रीय स्तर पर जल उपलब्धता बनाए रखते हैं, विशेष रूप से मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्रों में।
  • भूजल स्तर 10-15% बढ़ सकता है, जो लंबे समय तक नमी प्रदान करता है।

(C) रूफ वाटर हार्वेस्टिंग (Roof Water Harvesting)

  • कृषि फार्महाउस या गोदाम की छत से वर्षा जल संग्रह कर उपयोग में लाना; फिल्टर और टैंक के साथ 50-100% संग्रह।
  • छोटे पैमाने पर सिंचाई के लिए उपयुक्त, जो अतिरिक्त 50-100 mm जल उपलब्ध कराता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिला समूहों द्वारा प्रचलित, सतत जल प्रबंधन के लिए।

 4. फसल प्रबंधन से जुड़ी जल संरक्षण तकनीकें (Crop Management Techniques)

(A) सूखा सहनशील किस्मों का चयन (Selection of Drought-Tolerant Varieties)

  • जैसे: Pusa Bold, RH-749, Giriraj, NRCHB-101; ये किस्में सीमित जल (300 mm) में 2000-2500 kg/ha उपज देती हैं।
  • इन किस्मों को सीमित जल में भी अच्छा उत्पादन मिलता है, जड़ प्रणाली मजबूत होने से नमी अवशोषण बेहतर।
  • ICAR-Directorate of Rapeseed-Mustard Research द्वारा विकसित, जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूल।

 (B) फसल चक्र (Crop Rotation)

  • सोयाबीन–सरसों या मूंग–सरसों फसल क्रम अपनाने से मिट्टी में नमी संतुलन बना रहता है; खरीफ फसल अवशेष नमी बनाए रखते हैं।
  • सिस्टम उत्पादकता 29-50% बढ़ती है, जैसे मक्का-सरसों में MEY 1848-2188 kg/ha।
  • मिट्टी स्वास्थ्य सुधारता है और रोग चक्र तोड़ता है।

 (C) उपयुक्त बुवाई समय (Sowing Time)

  • समय पर बुवाई (15 अक्टूबर – 10 नवंबर) करने से नमी की आवश्यकता कम पड़ती है; विलंब से उपज 10-15% घटी।
  • प्रारंभिक अवस्था में K_c कम रखने से प्रारंभिक नमी उपयोग न्यूनतम।
  • वर्षा पूर्व बुवाई से प्राकृतिक नमी का अधिकतम उपयोग।

5. आधुनिक तकनीकें (Modern Water Conservation Technologies)

  • Laser Land Leveling: भूमि को समतल कर पानी का समान वितरण सुनिश्चित करता है; 25–30% तक जल की बचत, असमानता 2-5 cm तक कम।
  • Smart Moisture Sensors: मिट्टी की नमी के आधार पर स्वचालित सिंचाई प्रणाली; IW/CPE आधारित, 20% अतिरिक्त बचत।
  • Plastic Mulching: फसल के बीच पॉलीथीन शीट से वाष्पीकरण कम और खरपतवार नियंत्रण; नमी 25% लंबे समय तक, लेकिन पर्यावरणीय प्रभाव पर नजर।

6. व्यावहारिक सुझाव (Practical Tips for Farmers)

  • सिंचाई सुबह या शाम के समय करें ताकि वाष्पीकरण कम हो।
  • मिट्टी की नमी जांचने के लिए नमी मापक उपकरण या उंगली परीक्षण विधि अपनाएँ।
  • पहली सिंचाई हल्की रखें ताकि बीज धुल न जाएँ।
  • फूल और फली बनते समय पानी की कमी बिल्कुल न होने दें।
  • जलभराव की स्थिति से बचने के लिए खेत में उचित निकास व्यवस्था रखें।
  • ड्रिप या स्प्रिंकलर लगाने से पहले कृषि विभाग से मार्गदर्शन और सब्सिडी योजना की जानकारी लें।

सरकारी योजनाएँ (Government Schemes)-

  • राज्य कृषि यांत्रिकीकरण योजना (MP): लेज़र लेवलर और पाइपलाइन पर सब्सिडी, साथ ही जल संरक्षण फसलों के लिए प्रोत्साहन।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) – “हर खेत को पानी”: जल संरक्षण और कुशल सिंचाई को बढ़ावा, जिसमें माइक्रो इरिगेशन पर 55-90% सब्सिडी।
  • माइक्रो इरिगेशन फंड (NABARD): ड्रिप और स्प्रिंकलर हेतु अनुदान, 2025 में Per Drop More Crop (PDMC) योजना में नई लचीलापन जोड़ा गया, जो जल भंडारण को प्रोत्साहित करता है।

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