देवास कलेक्टर ने नरवाई जलाने को रोकने हेतु अभी से उठाए कदम
09 नवंबर 2024, देवास: देवास कलेक्टर ने नरवाई जलाने को रोकने हेतु अभी से उठाए कदम – कलेक्टर श्री ऋषव गुप्ता ने रबी वर्ष 2024-25 में गेहूं फसल कटाई उपरांत नरवाई (पराली) में आग लगाने की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अभी से कदम उठाते हुए अनुविभागीय अधिकारियों , तहसीलदारों, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद एवं कृषि अधिकारियों को अभी से कार्यवाही सुनिश्चित करने के निर्देश दिये है।
कम्बाईन हॉर्वेस्टर और स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अनिवार्य हो – कलेक्टर श्री गुप्ता ने निर्देश दिए हैं कि नरवाई (पराली) में आग लगाने की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण के लिए फसलों की कटाई में उपयोग किए जाने वाले कम्बाईन हॉर्वेस्टर के साथ स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) के उपयोग को अनिवार्य किया जाए। जिले में गेहूं की नरवाई से कृषक भूसा प्राप्त करना चाहते हैं। कृषकों की मांग को देखते हुए स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम के स्थान पर स्ट्रा रीपर के उपयोग को भी अनिवार्य किया जा सकता है अर्थात कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ (एसएमएस) अथवा स्ट्रा रीपर में से कोई भी एक मशीन साथ में रहना अनिवार्य रहेगा।
प्रतिबंध के प्रावधान किसानों को बताएं – कलेक्टर श्री गुप्ता ने कहा कि पर्यावरण विभाग द्वारा नरवाई में आग लगाने की घटनाओं को प्रतिबंधित कर दंड अधिरोपित करने का प्रावधान किया गया है। किसानों को प्रावधान के बारे में व्यापक रूप से अवगत कराया जाए, जिससे वे स्वयं स्वप्रेरणा से आग लगाने की कुप्रथा को छोड़ सकें। नरवाई जलाने वालों को चिन्हित कर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए। निर्देशों का उल्लंघन किए जाने पर दो एकड़ से कम भूमि पर 02 हजार 500, दो एकड़ से अधिक और पांच एकड़ से कम भूमि पर 05 हजार रूपये और पांच एकड़ से अधिक भूमि पर 15 हजार रूपये पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि वसूली जाए । ग्रामों में आयोजित होने वाली ग्राम सभाओं में इस विषय पर व्यापक चर्चा की जाए तथा ग्राम के कोटवार द्वारा नरवाई में आग न लगाने की मुनादी भी की जाए तथा फसल कटाई के पूर्व से ही कृषकों को इससे होने वाले नुकसान एवं फसल अवशेषों के प्रबंधन से होने वाली संभावित आय के बारे में व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार कर जागरूक किया जाए।
फसल अवशेष प्रबंधन की बैठक करें – कलेक्टर ने कहा कि कृषकों में जागरूकता लाने के लिए विभिन्न विभाग जो ग्रामीण अंचलों से जुड़े हैं विभागीय कार्यक्रमों, प्रशिक्षणों में मैदानी अमले को फसल अवशेष प्रबंधन प्रशिक्षण, फसल अवशेष जलाने के दुष्परिणामों से अवगत कराते हुए अपने स्तर पर बैठकों का आयोजन करें जिसमें जनप्रतिनिधियों की भागीदारी भी निश्चित हो । क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारी, पटवारी एवं विभागीय अमले के साथ संपर्क/ समन्वयन कर पर्यावरण क्षतिपूर्ति अंतर्गत दण्ड राशि देय राशि के प्रकरण (पंचनामे) बनाकर तहसीलदार/अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को प्रस्तुत करें। जिले में किसी भी प्रकार की नरवाई जलाने की अप्रिय स्थिति निर्मित न हो, इस के लिए निर्देशों के अनुसार कृषकों में जागृति लाकर समझाइश देकर सभी सम्बद्ध विभागों से समन्वय बनाकर फसलों के अवशेष में आग लगाने की घटनाओं को तेजी से नियंत्रित करना सुनिश्चित करें, ताकि माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन किया जा सके ।
नरवाई(पराली) में आग लगाने की सेटेलाइट से निगरानी – कलेक्टर के आदेश में उल्लेख है कि जिले में रबी की मुख्य फसल गेहूं है। फसल की कटाई मुख्य रूप से कम्बाईन हार्वेस्टर के माध्यम से की जाती है। कम्बाईन हार्वेस्टर से कटाई के उपरांत फसलों की नरवाई में आग लगाने की घटनाओं में गत वर्ष तेजी से वृद्धि हुई, जिसे रोकने के लिए समय- समय पर निर्देशित किया गया है, लेकिन अपेक्षित कार्यवाही नहीं की गई। आग लगाने से भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी होती है तथा पर्यावरण भी गंभीर रूप से प्रभावित होता है। नरवाई में आग लगाने की घटनाओं को नियंत्रित करने के संबंध में एक याचिका माननीय सर्वोच्च न्यायालय में भी विचाराधीन है। भारत सरकार की संस्था आई.सी.ए.आर. कीम्स द्वारा देश में नरवाई(पराली) में आग लगाने की घटनाओं की सेटेलाइट के माध्यम से भी मॉनिटरिंग की जाती है, जिसमें जिले में भी हुई घटनाओं का उल्लेख हुआ है। किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा राष्ट्रीय फसल अवशेष प्रबंधन नीति 2014 के अंतर्गत जिले में जिला स्तरीय समिति का भी गठन किया गया है ।
पराली जलाने से मृदा स्वास्थ्य व मृदा उत्पादकता खतरे में– नरवाई (पराली) फसल अवशेष में आग लगाने से अमूल्य पदार्थ नष्ट होता जा रहा है, जिसके कारण मृदा स्वास्थ्य व मृदा उत्पादकता खतरे में है। पराली में आग लगाने से मृदा के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे लाभदायक सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जो कि मृदा जैव विविधता के लिए एक गंभीर चुनौती है। फसल के अवशेष जलने पर भारी मात्रा में मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड इत्यादि विषैली गैसों के उत्सर्जन से वायु की गुणवत्ता भी खराब होती है तथा पर्यावरण दूषित होता है। वायु में विषैली गैस रहने से अस्थमा व फेफड़ों में कैंसर जैसी बीमारियां फैलती है।
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