State News (राज्य कृषि समाचार)

जैविक खाद के ढोल पीटने से कुछ नहीं होगा

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20 दिसम्बर 2022, मंदसौर: जैविक खाद के ढोल पीटने से कुछ नहीं होगा – जैविक खाद के सहारे जैविक खेती की बात करना आसान है, लेकिन वास्तविकता के धरातल पर हम उससे कोसों दूर हैं जब तक जैविक खादों की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं होती तब तक इसका उपयोग कोई परिणाम नहीं देगा।

सर्वप्रथम हम रासायनिक खाद की उपयोगिता को समझें, फसल की बढ़वार और अच्छे स्वास्थ्य के लिये तीन आवश्यक तत्व एन.पी. के. (नाईट्रोजन, फोस्फोरस एवं पोटाश) की आवश्यक्ता होती है। नाईट्रोजन का मुख्य स्त्रोत यूरिया खाद है। जिसमें 46% नईट्रोजन तत्व होते हैं पौधों को हरा कर उसमें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में योगदान इस तत्व से होता है। दूसरा तत्व फोस्फोरस है जिसका मुख्य स्त्रोत डीएपी है। इसके साथ साथ सुपर फोस्फेट भी है जिसमें 14% P2Os होता है। डीएपी में 18% नाईट्रोजन 46% फोस्फेट होता है। पौधे की जड़ों को संपूर्ण विकास कर सुदृढ़ता प्रदान करता है। तीसरा तत्व पोटाश (KO) जिसका अभीतक संपूर्ण आयात होता है अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार इस तत्व से आती है। इसके अलावा 16 सूक्ष्म तत्वों की आवश्यक्ता हाती है, जैसे केल्शियम, मेग्नीशियम, बोरोन, सल्फर, जिंक आदि होते हैं। जो पानी में घुलनशील खादों से मिलते हैं। बरसों से किसान इन खादों का उपयोग कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। एक समय था जब हम अनाज आयात करते थे, वहीं आज देश आत्मनिर्भर होकर निर्यात करने की स्थिति में है। देश में उपयोग होने वाले दो मुख्य खादों की बात करें तो अभी डिएपी खाद का विक्रय 100 लाख टन के करीब है वहीं नाईट्रोजन देने वाले यूरिया का विक्रय 300 लाख टन के करीब है। इतनी मात्र में उपयोग आने वाले खादों को बंद कर जैविक खेती की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

यह सही है कि रसायनिक खादों की भारी भरकम सब्सिडी (लगभग 2 लाख करोड) का सरकार पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ है, लेकिन यह बोझ उठाना आवश्यक है इसका संपूर्ण विकल्प हो तभी यह बोझ कम हो सकता है।

रासायनिक खाद के अनावश्यक एवं असंतुलित उपयोग को रोककर इस भार को कम किया जा सकता है जैसे यूरिया के अनावश्यक और अधिक उपयोग को रोकना चाहिए। गेहूँ की फसल में प्रति हेक्टेयर 40 से 60 किलो युरीया का उपयोग होता है, किन्तु किसान 120 से 150 किलो प्रति हैक्टेयर डाल रहे हैं। सायाबीन जैसी फसलों में यूरिया की कोई आवश्यक्ता नही है फिर भी इसका धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। वर्तमान में तीनों तत्वों के उपयोग का अनुपात 4:2:1 होना चाहिए लेकिन यह अनुपात यूरिया के अधिक उपयोग से बिगड़ कर 15:8:1 हो गया, जो जोकि भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा रहा है। किसानों को संतुलित खादों के उपयोग हेतु प्रशिक्षित करना चाहिये साथ ही सॉयल हेल्थ कार्ड’ अनिवार्य होना चाहिये। उसके अनुरूप खाद की मात्रा तय हो ।

रसायनिक खादों की गुणवत्ता खाद नियंत्रण आदेश 1985 के प्रावधानों के तहत सुनिश्चित होती है। फैक्ट्री से मानक खाद की जांच के बाद ही बाजार में आता है। विक्रेता के यहां भी समय समय पर कृषि अधिकारीयों द्वारा सैंपल लिये जाते हैं उनकी प्रयोगशाला में नियमित जांच होती है प्रत्येक तत्व की मात्रा की रिपोर्ट के पश्चात पता चलता है कि खाद मानक या अमानक है। अमानक खाद पर आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3/7 के तहत विक्रेता को जैल तक की कार्यवाही हो सकती है. इस डर से गुणवत्ता वाली खाद ही विक्रय होती है।

लेकिन जैविक खाद में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। निर्माता कंपनी भूमि सुधारक खाद, जैविक डीएपी आदी नामों से चम चमाते बोरों में कुछ भी भरकर बेच रही है। इनमें कौन से तत्व हैं, इनकी क्या गुणवत्ता है इसका कोई प्रमाण नहीं है। फिर इसके भरोसे खेती की अनुमति अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। कृषि उत्पादन को कम करने में एसे खाद एक उतप्रेरक का कार्य करेंगे।

अशोक कुमठ, मंदसौर

श्री लंका में रासायनिक खाद के बंद करने से आये दुष्परिणामों से सबक लेना चाहिये। मुद्रा संकट के चलते रासायनिक खादों के आयात को पूर्णतः बंद कर पूरी खेती जैविक खाद के हवाले करने से देश का क्या हश्र हुआ यह किसी से छुपा नहीं। वहां की आर्थिक संरचना पूरी तरह ध्वस्त होने में एक कारण यह भी था ।

इन दिनों पूरे देश में जैविक और प्रकृतिक खेती की गूंज हो रही है। स्वयं प्रधानमंत्री भी इस बारे में कई बार बोल चुके हैं। सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन हेतु कुछ सहायता भी देने जा रही है, लेकिन सबसे जटील प्रश्न जैविक खादों की गुणवत्ता को लेकर है। जैविक खादों में फसल के लिए आवश्यक तत्वों को समाहित करने वाले कौनसे जैविक खाद हैं? यह प्रश्न अनुत्तरित है। जैविक खाद फसलों के लिये तभी उपयोगी होंगे जब इन खादों की गुणवत्ता सुनिश्चित हो। जैविक खाद के नाम पर तत्व रहित मिट्टी भरकर अधिक मुनाफा कमाने की लालसा उत्पादन के लिये घातक सिद्ध हो रही है।

फसल के लिए तीन आवश्यक तत्व एन पी के का जैविक खादों में मिलना सुनिश्चित हो इसकी गुणवत्ता पर नियंत्रण हो तभी इनका उपयोग शुरू करना चाहिए।  सर्वप्रथम देश के कुछ जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू कर इसके परिणाम देखने चाहिए। भाजप (भारतीय जन उर्वरक परियोजना) के तहत ‘एक देश एक खाद में सरकार सभी ब्राण्ड समाप्त कर एक नाम भारत यूरिया, भारत डीएपी, भारत एम ओ पी प्रारम्भ करने जा रही है। क्यों न सरकार भारत जैविक खाद भी शुरू करे ताकि इन खादों पर सरकार का नियंत्रण प्रारम्भ हो सके। जल्दबाजी में इनका उपयोग किसान की आय दुगनी करने के  बजाय आधी कर देगा।

महत्वपूर्ण खबर: कपास मंडी रेट (17 दिसम्बर 2022 के अनुसार)

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