राज्य कृषि समाचार (State News)

खेती में सूर्य के प्रभाव का ज्योतिषीय महत्व

लेखक: ज्योतिर्विद राजेन्द्र शर्मा राही, भोपाल

23 अगस्त 2024, भोपाल: खेती में सूर्य के प्रभाव का ज्योतिषीय महत्व – सूर्य ब्रह्मांड की आत्मा है सूर्य के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती ,सूर्य ऊर्जा का अजेय स्त्रोत्र है, सूर्य से ही सारे ग्रह प्रकाशित होते हैं, इसलिए ही सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है सूर्य का आम आदमी के जीवन पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव पड़ता है प्रकृति एवम खेती भी इससे अछूती नहीं है I

कृषि पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर है कृषि पर सूर्य के प्रभाव का ज्योतिषीय विवेचन हमारे आचार्यों ने ऐसे समय में कर दिया था जब विज्ञान अस्तित्व में नहीं था
ग्रहीय परिस्थितियां अनुकूल प्रतिकूल होने पर अपना शुभ अशुभ प्रभाव छोड़ती हैं जिसमें सूर्य की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है सूर्य की स्थिति शुभ होने पर मौसम अनुकूल रहता है तथा उपज अच्छी हो जाती है वहीं यदि प्रतिकूल रहीं तो किसान बर्बाद भी हो जाता है I परंपरागत खेती में ज्योतिषीय ज्ञान का उपयोग कृषक बरसों से करते आ रहे हैं जब विज्ञान विकसित नहीं था तब कृषक ग्रह नक्षत्रों की स्थिति देखकर जानकर मौसम का आकलन कर लेते थे और उसी अनुसार खेती के कार्य संपादित करते थे ,सूर्य किस नक्षत्र में गोचर कर रहे हैं उसके अनुसार वायु की गति,कीट पतंग वर्षा मौसम का प्रकोप की शुभाशुभ स्थिति बनती बिगड़ती रहती है सूर्य का नक्षत्रों में संचरण निम्नानुसार प्राकृतिक परिस्थितियां निर्मित करता है जो मौसम के पूर्व आकलन प्रबंधन में सहायक सिद्ध होता है I

  1. जब सूर्य अश्वनी, भरणी ,कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्र में संचरण करते हैं तो अच्छी वर्षा होती हैं जो कल्याणकारी सिद्ध होती है I
  2. जब सूर्य आद्रा नक्षत्र के प्रथम पाद में संचरण करते हैं और वर्षा होती है तो इति का भय रहता है महंगाई बढ़ जाती है अतिवर्षा सूखा टिड्डी का भय बढ़ जाता है इन सभी स्थितियों में किसानों की खेती नष्ट हो जाती है शासक भी प्रभावित होते हैं यदि सूर्य आद्रा नक्षत्र में दिन में प्रवेश करें तो संसार में विपत्ति आती है कम वर्षा होती है फसल का नाश हो जाता है परन्तु यदि सूर्य आद्रा नक्षत्र में रात्रि में प्रवेश करें तो अच्छी पैदावार होती है अन्न की प्रचुरता एवम फसल में वृद्धि होती है यदि सूर्य आद्रा नक्षत्र के आदि में हो तथा वर्षा नहीं हो तो किसान पिस जाता है अर्थात बर्बाद हो जाता है इस संबंध में किसानों के बीच घाघ भादरी की कहावतें प्रचलित हैं आदि न बरसे आर्द्रा, हस्त न बरसे निदान कह घाघ सुन घाघनी, भये किसान पियसान इसी प्रकार एक अन्य कहावत भी काफी प्रचलित है रोहिणी बरसे मृग तपे कुछ दिन आद्रा जाय कह घाघ सुन घाघनी, स्वान भात नहीं खाय यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा नक्षत्र में ज्यादा गर्मी पड़े और आद्रा के भी कुछ दिन बीत जाने के बाद वर्षा हो तो पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते खाते ऊब जायेंगे परन्तु भात नहीं खायेंगे I
  3. सूर्य जब पुनर्वसु,पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी,हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा नक्षत्र में संचरण करते हैं तो लोगों में आपस में स्नेह बढ़ता है लेकिन शासकों के बीच कलह में वृद्धि होती है परन्तु अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल इन तीन नक्षत्रों में रहने पर सभी सुखी रहते हैं घाघ भाद्दारी लिखते हैं जो बरसे पुनर्वसु स्वाति चरखा चले न बोले तांती अर्थात जब सूर्य पुनर्वसु स्वाति नक्षत्र में होते हैं और उस समय वर्षा होती है तो किसान सुखी रहता है उसे तांत चलाकर जीवन निर्वाह की आवश्यकता नहीं पड़ती I
  4. यदि उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र में सूर्य रहे और वर्षा न हो परन्तु चित्रा नक्षत्र में वर्षा हो जाए तो भी उपज ठीक ठाक हो जाती है I
  5. जब सूर्य पूर्वाषाढा नक्षत्र में संचरण करते हैं तो उस समय उड़ने वाले कीट, बिजली ,हवा ,जल बादल का प्रकोप रहता है साढ़े तीन दिन तक यह स्थिति रहती है I लेकिन उसके बाद सुंदर वर्षा होती है I
  6. रेवती नक्षत्र में जब सूर्य संचरण करते हैं तो छत्र भंग होता है अर्थात राज्य करने वाले शासक पद से हट जाते हैं अथवा हटाया जाता है लेकिन रात्रि में रेवती नक्षत्र में प्रवेश करने पर इससे भिन्न स्थिति निर्मित होती है शासकों का प्रताप बढ़ जाता है I
  7. जब सूर्य उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद श्रवण नक्षत्र में संचरण करते हैं तो सुभिच्छ होता है I

इस प्रकार सभी 27 नक्षत्रों में सूर्य के संचरण से कृषि एवम आम आदमी के जीवन पर पड़ने वाले शुभ अशुभ प्रभाव को समझा जा सकता है I

इस प्रकार सूर्य की ब्रह्मांड में अनुकूल स्थिति अच्छा प्रभाव तथा प्रतिकूल परिस्थिति अशुभ प्रभाव छोड़ती है जो हमारे महान ज्योतिषाचार्यों की सतत साधना दिव्य दृष्टि का प्रतिफल है I

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