कृषि को उद्योग का दर्जा !
लेखक: मधुकर पवार, मो. 9425071942
23 अगस्त 2024, भोपाल: कृषि को उद्योग का दर्जा ! – भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह कहते और सुनते हुए हम थकते नहीं हैं। जब भी कृषि की बात निकलती है, सभी “अन्नदाताओं” किसानों के प्रति श्रद्धा का भाव तो रखते हैं लेकिन जब कृषि की उपज की कीमतों पर चर्चा होती है तो बात न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आकर टिक जाती है। भारत में सकल घरेलु उत्पाद का करीब 17.7 प्रतिशत कृषि का हिस्सा है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 10 करोड़ से अधिक परिवार कृषि पर निर्भर हैं। यदि जनसंख्या के हिसाब से देखें तो यह कुल आबादी का करीब 60% के आसपास होता है। देश में किसानों की संख्या भी करीब 14 करोड़ से अधिक है जिसमें से 80 से 85 प्रतिशत लघु और सीमांत किसान हैं, जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन है। देश के प्राय: सभी किसान कृषि उपज को बेचने के लिए मंडी, खुले बाजार और सरकार के भरोसे ही रहते हैं। मंडी में कृषि उपज की कीमत बिचौलियों और व्यापारी तय करते हैं। खुले बाजार में भले ही किसान अपनी उपज की कीमत स्वयं तय करते हैं लेकिन खाद्यान्न के मामलों में अंतत: सरकार द्वारा घोषित और अधिसूचित फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य या इसके आसपास ही कीमत मिल पाती है। सब्जियों के मामलों में किसान तो पूरी तरह बिचौलियों / आढ़तियों पर ही निर्भर होते हैं।
किसान जब खेती करता है तो जमीन का किराया, मेहनत – मजदूरी, बीज, दवाई, पानी, बिजली आदि पर होने वाले खर्च को कृषि उपज के मूल्य में नहीं जोड़ता है बल्कि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य को ही मानने को मजबूर रहता है। ठीक इसके विपरीत कारखाने और उद्योगों में कृषि उपज से बनाए जाने वाले उत्पादों के मूल्य तय करते समय कृषि उपज की कामत, बिजली, पानी, मजदूरी, टैक्स सहित अन्य खर्चो के साथ अपना मुनाफा भी जोड़कर मूल्य निर्धारित करते हैं। यहां यह विरोधाभास भी है कि कृषि उपज के मूल्य उत्पादक यानी किसान तय नहीं करते हैं जबकि कृषि उपज से बनने वाले उत्पादों की कीमतें सरकार नहीं बल्कि उत्पाद बनाने वाले निर्माता तय करते हैं।
बाजारों में गुणवत्ता के आधार पर उत्पादों, सामानों आदि की कीमतें होती हैं और उपभोक्ता भी गुणवत्ता के आधार पर ही सस्ता या महंगा सामान खरीदते हैं. । कृषि के मामले में भी गुणवत्ता ही कीमतें तय करने का प्रमुख आधार होता हैव वैसे आमतौर पर सभी किसान बेहतर गुणवत्ता के खाद्यान्न और फल सब्जियां आदि बाजार में विक्रय के लिये ले जाते हैं। बावजूद इसके उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। बहुत ही कम ऐसे अवसर आते हैं जब कभी प्राकृतिक आपदा या अन्य कोई अनापेक्षित कारण के कारण उत्पादन कम होने से कृषि उपज के उम्मीद से काफी अधिक दाम मिल जाते हैं।
किसानों की सबसे बड़ी समस्या कृषि लागत है जिसे कम करना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। इसके लिये कृषि का व्यवसायीकरण करना बहुत जरूरी है और यह तभी सम्भव है जब कृषि को उद्योग की दर्जा दिया जाये। कृषि को उद्योग का दर्जा दिये जाने से भारतीय कृषि का परिदृश्य ही बदल जाएगा। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। स्पर्धा बढ़ने से निश्चित ही किसान और जागरूक होंगे। वे संगठित होकर कृषि लागत को कम करने के लिए इमानदारी से प्रयास करेंगे। कृषि में उन्नत तकनीक, मशीनीकरण, सिंचाई के लिये जल, उन्नत बीज सहित अन्य जरूरी आवश्यक वस्तुयें किसानों को उपलब्ध हो सकती है जिससे देश में घरेलु मांग की पूर्ति के अलावा निर्यात के लिये भी उत्पादन करने में सफलता मिल सके।
वर्तमान में अधिकांश किसान अपनी जरूरत की पूर्ति के लिये खेती कर रहे हैं और थोड़ी बचत कर अन्य जरूरी कार्य कर पाते हैं। जब कृषि का व्यवसायीकरण होगा और कृषि को उद्योग का दर्जा मिलेगा तो किसान बाजार की मांग के अनुरूप खेती करेंगे जिससे उन्हें अधिक मुनाफा होगा। किसान संगठित होकर निर्यात के लिये भी प्रेरित होंगे और वैश्विक जरूरतों के मुताबिक भी खेती करने के लिये आगे आयेंगे। सरकार प्राकृतिक खेती और मोटा अनाजों के उत्पादन और इनके उपयोग करने को बढ़ावा दे रही है। जनसंख्या के दबाव के कारण कृषि भूमि का आने वाले वर्षों में रकबा भी कम होने लगेगा। ऐसी स्थिति में कृषी को उद्योग का दर्जा देकर ही देशवासियों की जरूरत के मुताबिक ने केवल कृषि का उत्पादन बढ़ा सकेंगे बल्कि वैश्विक मांग के अनुरूप भी उत्पादन करने में सक्षम हो सकेंगे। इसके अलावा युवा नौकरी के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन नहीं करेंगे। गांवों में ही रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। युवा जब कृषि कार्यों में रूचि लेंगे तो नवाचार को बढ़ावा मिलेगा जिससे कृषि का धंधा पुन: गौरव और उत्तम स्थान हासिल कर सकेगा।
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