चमकदार लिली लगाएं
मिट्टी – हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। दोमट मिट्टी का पीएच 6.0 से 7.0 लिली की खेती के लिए उपयुक्त पाई गई है।
तापमान – तापमान 15-25 डिग्री से.ग्रे. और रात का तापमान 8-10 सेंटीग्रेट उचित है।
प्रकाश तीव्रता – यह कम प्रकाश की तीव्रता में उचित प्रकार से उगता है। इस कारणवश गर्मी के मौसम में जबकि प्रकाश बहुत तीव्र होता है तब 75 प्रतिशत शेडिंग नेट (छाया के लिए जाली) का उपयोग करने की सलाह दी जाती है जिससे प्रकाश की तीव्रता कम हो जाती है।
लगाने की विधि – लिली के कंदों को 15 से.मी. समतल धरती से ऊंची क्यारियों पर लगाना चाहिए और कंदों को सर्दियों में 6-8 से.मी. की गहराई पर और गर्मियों में 8-10 से.मी. की गहराई पर लगाना चाहिए. कंद से कंद की दूरी अधिकतर 15 से.मी. तथा लाईन से लाईन की दूरी 25 से.मी. तक रखी जाती है जो कि कंद के व्यास और मौसम पर भी निर्भर करता है। क्यारियों की चौड़ाई एक मीटर तथा लम्बाई सुविधानुसार रखनी चाहिए वैसे लम्बाई 9 मीटर तक उत्तम पाई गई है।
प्रजातियां – एशियाटिक लिली की कई विदेशी जातियां उपलब्ध हैं कुछ भारतीय मौसमी परिस्थितियों में उगाये जाने वाली प्रजातियां अलास्का, बीट्रिक्स कनेक्टीकट किंग, कोर्डिलिया, ईलीट, जेनेवा, पेरिस, लन्दन, लोटस, मासा, ग्रान, पाराडीसो, फैस्टीवल, मिन्सट्रील, मोना, माउन्टेन, पोलियाना, सोरबर्ट स्टर्लिंग स्टार, वेरियन्ट, विवाल्डी, यैला जायन्ट और येलो पीजन्ट आदि मुख्य हैं। ओरियन्टल लिली की मुख्य तौर से दो प्रजातियां हैं। स्टार गैजर (सफेद) तथा स्टार गैजर (गुलाबी)। |
कंदों का माप – यदि वातावरण अनुकूल हो तो छोटे माप के कंद लगाने चाहिए। जब प्रकाश रहित अन्तराल अधिक हो तो कुछ बड़े कंद होते हैं जैसे 8-10 से.मी., 12-14 से.मी., 14-16 से.मी., 16-18 से.मी., 18-20 से.मी. और 20 से.मी. पाया जाता है।
कंदों के लगाने तथा फल आने का समय
लगाने का समय आने का समय
मैदानी- अक्टूबर-नवम्बर जनवरी-फरवरी
पहाड़ी- अप्रैल-मई जलाई-अगस्त
सहारा देना (स्टाकिंग) – स्टॉकिंग इन पौधों के विकास के समय अति आवश्यक है और विशेषत: जबकि प्रजाति की ऊंचाई 80 से.मी. से अधिक हो। बांस के टुकड़े इस कार्य के लिए उपयोग में लाये जा सकते हैं।
छाया का प्रबंध – लिलियम को प्रकाश की पूरी तीव्रता नहीं चाहिए इसलिए इसकी तीव्रता को आधा करने के लिए सदियों में 50 प्रतिशत का तथा गर्मियों में 75 प्रतिशत यू.वी. स्टेबलाइज शेडिंग नेट लगाना चाहिए जिससे पौधों को प्रकाश तथा छाया उचित मात्रा में मिलती रहे।
लिली कन्दीय वर्ग का एक महत्वपूर्ण फूल है जो कि व्यवसायिक रूप से भारतवर्ष में उगाया जाता है। इसके फूल बहुत ही सुन्दर, आकर्षक, चमकदार तथा विभिन्न रंगों के होते हैं जिनकी फूलदान आयु (वेस लाइफ) काफी लम्बी होती है। लिली की (स्पाइक) पुष्प डंडियां लम्बी व मजबूत होती हैं। अन्य व्यवसायिक पुष्पों की अपेक्षा लिली बाजार में उच्च मूल्य प्राप्त करती है इसमें प्रमुखतया एशियाटिक तथा ओरियंटल हाईब्रिड मुख्य है। इसके पौधे की ऊंचाई एक मीटर से भी अधिक होती है। जिस पर 4 से 5 तक फूल पाये जाते हैं जिसमें फूल का वृत्त (डायमीटर) 10-15 से.मी. होता है पुष्प का रंग लाल, गुलाबी, संतरी, पीला, लेवेण्डर अथवा सफेद होता है। यह अर्धपूर्ण सूर्य के प्रकाश में तथा हल्का छाया में अच्छी प्रकार उगता है। |
खाद की मात्रा – कंदों के लगाने के तीन सप्ताह बाद एक किलोग्राम कैल्शियम, अमोनियम नाइट्रेड (केन खाद) एक किलोग्राम प्रति 100 वर्गमीटर की दर से दें तथा दूसरी खुराक एक माह के बाद दी जानी चाहिए। यदि पौधे नाइट्रोजन की कमी से सर्दी के मौसम में भी मजबूत (प्रबल) न हो तो एक किलोग्राम तुरंत उपलब्ध नत्रजन (यूरिया) प्रति 100 वर्गमीटर की दर से दिया जा सकता है। नाइट्रोजन देने के बाद पत्तियों को झुलसने से बचाने के लिए साफ पानी से फसल को भलीभांति धो देना चाहिए।
पानी लगाना – सूखे समय में पानी की खपत 8-10 लीटर प्रति वर्गमीटर होती है इसलिए फसल को पानी की जब भी आवश्यकता हो तो मिट्टी के प्रकार और मौसम को मद्देनजर रखकर दें।
कटाई – पुष्प डंडियों को अधिकतर जमीन की सतह से 15 से.मी. ऊपर से काटा जाता है जिससे कि मिट्टी में कंदों का विकास ठीक प्रकार से हो सके। पुष्प डंडियों को तब काटा जाना चाहिए जबकि कली थोड़ी सी खिली हो और रंग नजर आए। पुष्प डंडियों का वर्गीकरण डंडी पर फूलों की संख्या डंडी की लंबाई पर निर्भर करता है।
स्टोरेज – लिली के कंदों को विभाजित करने के बाद उपयुक्त तापमान 2.0 से 3.0 सेन्टीग्रेट पर 2 प्रतिशत कैप्टान से उपचारित करके पीटमास में 2 से 3 माह तक 70 प्रतिशत सूखने न पाये।