बिगड़ती जलवायु का संकट और घटता बजट
लेखक: शशिकांत त्रिवेदी, लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार
12 अगस्त 2024, भोपाल: बिगड़ती जलवायु का संकट और घटता बजट – नई सरकार ने नए बजट में कृषि में उत्पादकता और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिए बजट की प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के लिए 132000 करोड़ रूपये या कुल व्यय का 2.7% व्यय रखा है. लेकिन इसकी गहराई से पड़ताल करने पर पता चलता है कि यह वित्त वर्ष 20 के बजट से लगभग 5% घटा है.
वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि मंत्रालय को 1,32,470 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो केंद्र सरकार के कुल बजटीय व्यय का 2.7% है। वित्त वर्ष 2024-25 में मंत्रालय का व्यय 2023-24 के संशोधित अनुमान 1,26,666 करोड़ रुपए की तुलना में 5% अधिक होने का अनुमान है। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग को 2020-21 में 1,34,400 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2019-20 के संशोधित अनुमान से 32% अधिक था ।
जबकि कृषि मंत्रालय को वित्त वर्ष 2013 में 27,049 करोड़ रुपए मिले, जो वर्ष के संशोधित अनुमान से 22 प्रतिशत अधिक था । किसानों के संघ, और विशेषज्ञ इस पर कुछ माध्यम से चिंता जाहिर कर चुके हैं.वित्त वर्ष 2013-14 के मुकाबले किसानों को सीधे या किसी अन्य तरह से मिलने वाले लाभ में अच्छी बढ़ोतरी हुई है. सरकार के किसान-केंद्रित बजट पर सरसरी नजर डाली जाये तो खेती के लिए निर्धारित बजट 2007-14 के दौरान ₹1.37 लाख करोड़ से 5 गुना बढ़कर 2014-25 के दौरान ₹7.27 लाख करोड़ हो गया। सन 2014 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहली बार सत्ता में आने के बाद से, कृषि विकास औसतन 3.7% प्रति वर्ष रहा है, जबकि हर तरह की कीमतों में बढ़ोतरी लगभग 5.8% रही है। इसी बीच खेती पर बिगड़ती जलवायु का नया संकट आ पड़ा है.
भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट से निपटने के लिए बजट भाषण में घोषणा की गई है कि लगभग एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती में शामिल किया जाएगा, लेकिन प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय मिशन के लिए बजट आवंटन पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों में 459 करोड़ रुपये से 100 करोड़ रुपये कम कर दिया गया है और अब यह 366 करोड़ रुपये है। इसी तरह खेती के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे उपायों में बजट दिए जाने का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि वे एनडीए सरकार द्वारा 2014 से लाखों किसानों से एकत्र किए जा रहे आंकड़ों के आधार पर एग्रीस्टैक जैसी चल रही नई पहल पर आधारित हैं। हालांकि, इस क्षेत्र की घटती हिस्सेदारी और अनुसंधान एवं विकास पर सीमित खर्च को देखते हुए, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि खेती पर निर्भर लोगों के लिए इसका कितना असर हुआ है.
मंत्रालय में कृषि और किसान कल्याण और कृषि अनुसंधान और शिक्षा (डीएआरई) के दो विभाग हैं। डीएआरई का परिव्यय लगभग 10,000 करोड़ रुपये है. विशेषज्ञों और रिपोर्ट्स के मुताबिक यह बजट दोगुना करने की ज़रूरत है. कृषि और किसान कल्याण विभाग के लिए 122000 लाख करोड़ रुपये का आवंटन भी पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों से केवल 5% अधिक है, जो वास्तविक रूप कम हुआ है जबकि इसका बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि , संशोधित ब्याज छूट योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना जैसी प्रमुख योजनाओं के लिए है. ये सभी योजनाएं किसी न किसी हद तक उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए बहुत आवश्यक हैं.
हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई और ज़्यादा उपज देने वाली फसलों की किस्मों को विकसित करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों से आग्रह किया था. बजट भाषण में इस दिशा में कुछ कदम उठाये जाने के संकेत हैं जैसे किसानों द्वारा खेती के लिए 32 क्षेत्र और बागवानी फसलों की 109 नई उच्च उपज वाली और जलवायु-लचीली किस्में जल्द ही बाजार में लाई जाएंगी; साथ ही रकार उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु-के अनुसार अच्छी पैदावार वाली किस्मों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सरकार खेती में हो रहे शोध की समीक्षा करेगी।
अगर सरकारी सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो सरकार इस साल के खरीफ धान के 25% क्षेत्र में ऐसे बीजों के परिणाम देखने जा रही है जिन पर बिगड़ती जलवायु का कोई असर न हो. सूत्रों के मुताबिक गेहूं की फसल के लिए अभी-अभी समाप्त हुए रबी सीजन में उनकी सफलता सरकार को मिल चुकी है. सरकार के खेती में इस तरह के सकारात्मक दखल से किसी को गुरेज तब तक नहीं है जब तक कि बजट में दिया जाने वाला पैसा किसानों को जलवायु और दूसरी मुसीबतों से सुरक्षित रखे. जलवायु संकट, भारत जैसे विशाल देश में किसानों के लिए बहुत चिंता का विषय है, अधिक धन के बिना किसानों के लिए लागू सभी योजनाएं संकट में आ सकती हैं.
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