राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

सरकार की थानेदारी से त्रस्त बीज व्यापार

(विशेष प्रतिनिधि)

5 अप्रैल 2021, नई दिल्ली । सरकार की थानेदारी से त्रस्त बीज व्यापार – एक तरफ सरकार कृषि और किसानों को अनावश्यक शिकंजों से मुक्ति की बात करती है, वहीं दूसरी ओर कृषि व्यापार को अनेकानेक बंधनों से जकड़े भी रखती है। बीटी कॉटन व्यापार में सरकार की नाकेबंदी से सीड इंडस्ट्री हलाकान है। बीटी कॉटन सीड की रायल्टी और वाजिब दामों को लेकर बीज व्यापार जगत में हमेशा अनिश्चितता का माहौल रहता है। इन्हीं कारणों से निजी क्षेत्र द्वारा बीज अनुसंधान के क्षेत्र में भी कोई उल्लेखनीय निवेश और काम नहीं हो रहा है।

फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के महानिदेशक श्री राम कौंडिन्य के मुताबिक कपास हायब्रिड बीजों के शोध कार्य में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है। उन्होंने निराशा व्यक्त की कि देश में कपास हायब्रिड बीजों को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है और नहीं कोई भविष्य की रूपरेखा है।
गत 5 वर्षों में कपास अनुसंधान में जुटी कंपनियों की रायल्टी खत्म कर दी गई है, वहीं बीटी कॉटन बीज कंपनियों के पास अपने प्रोडक्ट के दाम तय करने का अधिकार भी नहीं है। श्री कौंडिन्य के मुताबिक व्यापार की इन विपरीत परिस्थितियों में कोई भी उद्यमी जोखिम लेने से हिचकता है और नवीन शोध-अनुसंधान में निवेश रुक जाता है।

Advertisement
Advertisement

भारत में, कपास फसल में 90-95 प्रतिशत बीटी कॉटन सीड उपयोग में लाया जाता है और यह एक प्रकार से सेचुरेशन पाईंट पर पहुंच गया है। कॉटन सीड का कुल व्यापार लगभग 4 हजार करोड़ रु. का है। बीज उद्योग की मांग है कि बीज के दाम तय करने में सरकार का दखल न हो। अनावश्यक शासकीय प्रतिबंधों से न किसानों का भला हो रहा है न कंपनियों के हित पुष्ट हो रहे हैं। बीज उद्योग कारोबार में सरकार की थानेदारी से भी त्रस्त हैं।

उल्लेखनीय है कि भारत में कपास एक प्रमुख नकदी फसल है। देश में लगभग 130 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई होती है। कपास उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। कॉटन कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के अनुसार वर्ष 2020-21 में कपास का उत्पादन 371 लाख गांठ अनुमानित है।
(1 गांठ-170 किलोग्राम)।

Advertisement8
Advertisement

दूसरी ओर अन्य जीएम फसलों के फील्ड ट्रायल को हरी झंडी न मिलने से सीड इंडस्ट्री के अलावा कृषि वैज्ञानिकों में भी निराशा व्याप्त है। इस आधुनिक टेक्नॉलाजी से दलहनी-तिलहनी फसलों के आयात पर निर्भरता कम हो सकती है। विभिन्न वैज्ञानिक कमेटियों की अनुशंसा के बावजूद राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित फसलें जिसमें मूंगफली, सरसों, बीटी बैंगन भी शामिल हैं, प्रयोगशालाओं में कैद है। पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी, फील्ड ट्रायल अनुमति का निर्णय लेती है।

Advertisement8
Advertisement

 

Advertisements
Advertisement5
Advertisement