PMFBY में नया बदलाव: अब जंगली जानवरों से फसल नुकसान और धान में बाढ़ का कवर
19 नवंबर 2025, नई दिल्ली: PMFBY में नया बदलाव: अब जंगली जानवरों से फसल नुकसान और धान में बाढ़ का कवर – कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत दो नई कवरेज को मंजूरी दी है। अब जंगली जानवरों द्वारा फसल नुकसान और धान की फसल के जलभराव से होने वाले नुकसान को योजना में शामिल किया जाएगा।
नए प्रावधानों के अनुसार, जंगली जानवरों के हमले को स्थानीय जोखिम श्रेणी के अंतर्गत पाँचवें ऐड-ऑन कवर के रूप में मान्यता दी गई है। राज्यों को ऐसे जंगली जानवरों की सूची जारी करनी होगी जो फसल नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, और ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर संवेदनशील जिलों या बीमा इकाइयों की पहचान करनी होगी। किसानों को नुकसान की सूचना 72 घंटे के भीतर क्रॉप इंश्योरेंस ऐप के माध्यम से भू-टैग फोटो अपलोड कर देनी होगी।
ये निर्णय कई राज्यों की लंबे समय से चली आ रही मांगों के बाद लिए गए हैं। मंत्रालय द्वारा तैयार की गई नई प्रक्रिया PMFBY के ऑपरेशनल गाइडलाइंस के अनुसार है और इसे पूरे देश में खरीफ 2026 से लागू किया जाएगा।
देश के कई हिस्सों में किसान हाथी, जंगली सुअर, नीलगाय, हिरण और बंदरों जैसे जानवरों से फसल नुकसान का सामना करते रहे हैं, विशेष रूप से जंगलों, वन-मार्गों और पहाड़ी इलाकों के पास। अब तक ऐसे नुकसान फसल बीमा में शामिल नहीं थे। इसी तरह, तटीय और बाढ़–प्रभावित क्षेत्रों में धान की फसल अक्सर भारी बारिश और पानी भरने से नष्ट होती रही है। 2018 में धान जलभराव को स्थानीय आपदा श्रेणी से हटाया गया था, जिससे इन किसानों को बीमा सुरक्षा नहीं मिल पाती थी।
इन चुनौतियों को देखते हुए कृषि विभाग ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी। समिति की सिफारिशों को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंजूरी दे दी है। नए प्रावधानों से किसानों को तकनीक आधारित और समयबद्ध दावा निपटान मिल सकेगा।
जंगली जानवरों से होने वाले फसल नुकसान की कवरेज ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों—असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश—के किसानों को लाभ देगी। इन क्षेत्रों में मानव–वन्यजीव संघर्ष के मामले अधिक हैं।
धान के जलभराव को फिर से PMFBY के स्थानीय आपदा श्रेणी में शामिल करने से ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तराखंड जैसे तटीय और बाढ़–प्रभावित राज्यों के किसानों को राहत मिलेगी, जहां धान की फसल पर पानी भरने की समस्या बार–बार होती है।
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