राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

कृषि मंत्रालय पारंपरिक जैविक क्षेत्रों को प्रमाणित जैविक उत्पादन केन्द्र में रूपांतरित कर रहा है

27 अप्रैल 2021, नई दिल्ली । कृषि मंत्रालय पारंपरिक जैविक क्षेत्रों को प्रमाणित जैविक उत्पादन केन्द्र में रूपांतरित  कर रहा है – कृषि मंत्रालय  पारंपरिक जैविक क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें प्रमाणित जैविक उत्पादन केन्द्र में बदलने पर काम कर रहा है। भारत सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार के कार निकोबार और द्वीपों के समूह नैनकोवरी के 14,491 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक प्रमाणपत्र दिया है। यह क्षेत्र पीजीएस-इंडिया (पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम) प्रमाणन कार्यक्रम के लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन (एलएसी) योजना के तहत जैविक प्रमाणीकरण से प्रमाणित किए जाने वाला पहला बड़ा क्षेत्र बन गया है।

कार निकोबार और द्वीपों के समूह नैनकोवरी पारंपरिक रूप से जैविक क्षेत्र के रूप में जाने जाते हैं। प्रशासन ने इन द्वीपों में जीएमओ बीज के किसी भी रासायनिक बिक्री, खरीद और उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। एक विशेषज्ञ समिति ने जैविक स्थिति का सत्यापन किया है और पीजीएस-इंडिया सर्टिफिकेट स्कीम के तहत क्षेत्र को जैविक प्रमाण देने की सिफारिश की है।

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इन द्वीपों के अलावा, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तर पूर्वी राज्यों और झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी बेल्ट, राजस्थान के रेगिस्तानी जिले जो रासायनिक वस्तुओं के उपयोग से मुक्त हैं। ये क्षेत्र जैविक खेती के लिए प्रमाणित हो सकते हैं। कृषि मंत्रालय  राज्यों के साथ मिलकर ऐसे क्षेत्रों की पहचान करने और उन्हें जैविक खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र के रूप में प्रमाणित करने का काम करा है। इसके साथ ही ब्रांडिंग और लेबलिंग के माध्यम से उस क्षेत्र की विशिष्ट उत्पाद को पहचान कर मार्केटिंग के जरिये बाजार दिलाने की कोशिश भी कर रहा है।

लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन के माध्यम से जैविक खती के लिए पारंपरिक कृषि क्षेत्र की पहचान

कृषि विभाग ने अपनी प्रमुख योजना परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत इन संभावित क्षेत्रों का इस्तेमाल करने के लिए एक अनूठा त्वरित प्रमाणन कार्यक्रम “लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन” (एलएसी) शुरू किया है।

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जैविक उत्पादन के मानक नियम के तहत, रासायनिक इस्तेमाल वाले क्षेत्रों को जैविक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 2-3 वर्षों के समय लगता है। इस अवधि के दौरान, किसानों को मानक जैविक कृषि मानकों को अपनाने और प्रमाणन प्रक्रिया के तहत अपने खेतों को रख-रखाव करना होता है। सफलता पूर्वक समापन होने पर, ऐसे खेतों को 2-3 वर्षों के बाद जैविक के रूप में प्रमाणित किया जा सकता है। प्रमाणन प्रक्रिया को प्रमाणीकरण अधिकारियों द्वारा विस्तृत डोक्यूमेंटेशन और समय-समय पर सत्यापन की भी आवश्यकता होती है जबकि एलएसी के तहत आवश्यकताएं सरल हैं और क्षेत्र को लगभग तुरंत प्रमाणित किया जा सकता है। एलएसी एक त्वरित प्रमाणन प्रक्रिया है जो कम लागत वाली है और किसानों को पीजीएस जैविक प्रमाणित उत्पादों के विपणन के लिए 2-3 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ता है।

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एलएसी के तहत, क्षेत्र के प्रत्येक गांव को एक क्लस्टर/ग्रुप के रूप में माना जाता है। गांव के अधार पर दस्तावेज सरल बनाए गए हैं। अपने खेत और पशुधन वाले सभी किसानों को मानक आवश्यकताओं का पालन करना होता है और प्रमाणित होने के बाद उन्हें संक्रमण अवधि तक इंतजार नहीं करना होता है। पीजीएस-इंडिया के अनुसार मूल्यांकन की एक प्रक्रिया द्वारा वार्षिक सत्यापन के माध्यम से वार्षिक आधार पर प्रमाणन का नवीनीकरण किया जाता है।

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