राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

धान की जगह मक्का-बाजरा, नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

आईएसबी प्रोफेसर की स्टडी में खुलासासही फसल चयन से जलवायु जनित नुकसान 11% तक घट सकता है

10 मार्च 2025, हैदराबाद: धान की जगह मक्का-बाजरा, नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा – भारत में धान की खेती से हटकर अगर किसान बाजरा, मक्का और ज्वार जैसी वैकल्पिक फसलों की ओर बढ़ें, तो इससे उनकी आमदनी में इजाफा होने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के असर को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। हाल ही में नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।

स्टडी के मुताबिक, किसान कौन-सी फसल उगाते हैं, इसका बड़ा कारण बाजार में उसकी कीमत होती है। अगर सरकार सही नीतियां अपनाए और किसानों को आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करे, तो वे धान की जगह उन अनाजों की खेती को प्राथमिकता देंगे, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने में ज्यादा सक्षम हैं।

यह अध्ययन अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर के भूगोल और स्थानिक विज्ञान विभाग के डोंगयांग वेई, कोलंबिया यूनिवर्सिटी की लेस्ली ग्वाडालूपे कास्त्रो, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी), हैदराबाद के अश्विनी छत्रे, इटली के पोलिटेक्निको डी टोरीनो की मार्टा ट्यूनिनेट्टी और यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर के काइल फ्रेंकल डेविस द्वारा किया गया है।

भारत में पारंपरिक रूप से किसान धान को ही सबसे ज्यादा उगाते हैं क्योंकि इसे आर्थिक रूप से सुरक्षित माना जाता है। लेकिन यह भी सच है कि धान की खेती जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। इसके मुकाबले, बाजरा, मक्का और ज्वार जैसी फसलें सूखे और अनिश्चित मौसम को बेहतर तरीके से सहन कर सकती हैं और लंबी अवधि में आर्थिक रूप से फायदेमंद भी साबित हो सकती हैं।

स्टडी के मुताबिक, अगर धान के तहत आने वाले खेतों का संतुलित तरीके से इस्तेमाल किया जाए और कुछ हिस्से में वैकल्पिक अनाजों की खेती की जाए, तो जलवायु परिवर्तन से होने वाले उत्पादन घाटे को 11% तक कम किया जा सकता है। साथ ही, किसानों को उनकी फसल से बेहतर दाम भी मिल सकते हैं।

सरकारी नीतियों में बदलाव से आएगा बड़ा फर्क

शोधकर्ताओं का कहना है कि किसान कीमतों को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं, यानी अगर वैकल्पिक अनाजों के लिए बाजार में अच्छी कीमत मिलेगी, तो वे स्वाभाविक रूप से उन फसलों की ओर बढ़ेंगे। इसी वजह से सरकार अगर सही नीतियों के तहत आर्थिक प्रोत्साहन दे, तो इस बदलाव को तेजी से लागू किया जा सकता है।

स्टडी के प्रमुख लेखक डोंगयांग वेई का कहना है, “अगर भारत में रणनीतिक रूप से धान की खेती को कम कर वैकल्पिक अनाजों का दायरा बढ़ाया जाए, तो इससे न सिर्फ उत्पादन में स्थिरता आएगी, बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी। खास बात यह है कि इससे देश में कुल अनाज उत्पादन पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।”

वहीं, आईएसबी के प्रोफेसर अश्विनी छत्रे ने कहा, “हमारी रिसर्च बताती है कि नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि किसान केवल परंपरा से नहीं, बल्कि आर्थिक पहलुओं को देखकर फसल चुनते हैं। ऐसे में अगर सरकार जलवायु-सहिष्णु फसलों को बढ़ावा देने वाली योजनाएं लागू करे, तो यह बदलाव संभव है।”

धान के MSP पर निर्भरता घटाने की जरूरत

स्टडी में यह भी बताया गया है कि सरकार द्वारा दिए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अन्य सब्सिडी धान को बढ़ावा देती हैं, जिससे किसान बाकी फसलों की ओर ध्यान नहीं दे पाते। अगर सरकार वैकल्पिक अनाजों के लिए भी ऐसी ही लाभकारी नीतियां अपनाए, तो देश में कृषि व्यवस्था को अधिक टिकाऊ बनाया जा सकता है।

भारत जैसे देश में, जहां अनाज उत्पादन के लिए धान पर अत्यधिक निर्भरता है, यह स्टडी नीति निर्माताओं को एक नई दिशा देने का काम कर सकती है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए अब वक्त आ गया है कि कृषि क्षेत्र में बड़ा सुधार किया जाए और किसानों को उन फसलों की ओर प्रोत्साहित किया जाए, जो न केवल जलवायु संकट से निपटने में मददगार हैं, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ा सकती हैं।

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