आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25: ग्रामीण भारत में विकास का दावा, लेकिन कितनी हकीकत?
03 फ़रवरी 2025, नई दिल्ली: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25: ग्रामीण भारत में विकास का दावा, लेकिन कितनी हकीकत? – वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में ग्रामीण भारत के विकास को लेकर कई दावे किए गए हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक, सरकार ‘विकसित भारत 2047’ की दिशा में काम कर रही है और इसका लक्ष्य ‘सभी के लिए कल्याण’ है। इस रिपोर्ट में खासतौर पर ग्रामीण बुनियादी ढांचे, आजीविका, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
क्या कहता है आर्थिक सर्वेक्षण?
ग्रामीण आवास: सर्वेक्षण के अनुसार, 2016 से अब तक प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) के तहत 2.69 करोड़ घर बनाए गए हैं। यह योजना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDG) 11.1 से जुड़ी है, जिसका उद्देश्य सुरक्षित और किफायती आवास उपलब्ध कराना है। इस योजना के तहत हर घर के निर्माण में लगभग 314 व्यक्ति-दिवस का प्रत्यक्ष रोजगार सृजित होता है। शुरुआती दो वर्षों में 4.82 करोड़ व्यक्ति-दिवस का कुशल और 7.60 करोड़ व्यक्ति-दिवस का अकुशल रोजगार उत्पन्न हुआ। हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि क्या सभी पात्र लाभार्थियों को इस योजना का वास्तविक लाभ मिल पाया है या नहीं।
सड़क और कनेक्टिविटी: ग्रामीण बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत 8,000 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) को प्राथमिकता दी गई है और जनसंख्या मानकों में छूट दी गई है ताकि छोटे गाँवों को भी सड़कों से जोड़ा जा सके। हालांकि, जमीनी स्तर पर कई गाँव अब भी पक्की सड़कों से वंचित हैं और मौजूदा सड़कों की स्थिति भी सवालों के घेरे में है।
ग्रामीण आजीविका मिशन: गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से शुरू किए गए दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के तहत अब तक 10 करोड़ गरीब परिवारों को 90.90 लाख स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में संगठित किया गया है। इन SHGs ने 9.85 लाख करोड़ रुपये का बैंक ऋण प्राप्त किया है, जिससे छोटे कारोबार और स्वरोजगार को बढ़ावा दिया गया है। सरकार का दावा है कि यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में बड़ी भूमिका निभा रही है, लेकिन कई रिपोर्टों में यह सामने आया है कि कई जरूरतमंद महिलाओं को अभी भी इन लाभों से वंचित रहना पड़ता है।
मनरेगा के तहत डिजिटल भुगतान: मनरेगा के तहत भुगतान प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए डिजिटल सुधार किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 96.3% सक्रिय मजदूरों को आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (APBS) के माध्यम से वेतन दिया गया है। इसके अलावा, 99.98% भुगतान राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (NeFMS) के जरिए किया गया है। 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सोशल ऑडिट यूनिट्स स्थापित की गई हैं ताकि योजनाओं में गड़बड़ी को रोका जा सके। लेकिन बीते वर्षों में मनरेगा में मजदूरी के भुगतान में देरी और कई जगहों पर काम की उपलब्धता को लेकर मजदूरों की शिकायतें सामने आती रही हैं।
स्थानीय SDGs: क्या ग्रामीण विकास वैश्विक लक्ष्यों से मेल खा रहा है?
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्थानीय स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को लागू करने से ग्रामीण विकास को गति मिलेगी। सरकार का मानना है कि सभी को आवास, स्वच्छता, जल आपूर्ति और विद्युतीकरण प्रदान करने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं। इसके तहत ‘सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद’ की नीति को अपनाते हुए राज्यों को अधिक अधिकार दिए गए हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के तहत केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर योजनाओं को लागू कर रही हैं ताकि ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता पर जोर
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति को सुधारने के लिए DAY-NRLM के तहत ‘FNHW’ (Food, Nutrition, Health & WASH) कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम 5,369 ब्लॉकों और 682 जिलों में लागू किया गया है। इसके अलावा, 32 राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLMs) लैंगिक समानता और सामाजिक समावेशन के मुद्दों पर भी काम कर रहे हैं। महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण, स्वच्छता, और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाएं लागू की गई हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं की कमी अब भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
न्याय तक पहुंच: क्या ग्रामीण भारत को न्याय मिल रहा है?
ग्रामीण इलाकों में न्याय प्रणाली को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के तहत गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जा रही है। ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत स्थानीय स्तर पर त्वरित न्याय के लिए 313 ग्राम न्यायालय स्थापित किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2024 तक इन न्यायालयों के माध्यम से 2.99 लाख मामलों का निपटारा किया गया है। हालांकि, जमीनी हकीकत यह भी है कि कई ग्रामीण इलाकों में कानूनी सहायता तक पहुंच बेहद सीमित है और न्याय मिलने में सालों लग जाते हैं।
विकास के दावे, लेकिन कितनी हकीकत?
सरकार का कहना है कि ग्रामीण भारत में डिजिटलाइजेशन, बुनियादी सुविधाओं और आजीविका के अवसरों पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये योजनाएं वाकई में जरूरतमंदों तक पहुंच रही हैं? क्या PMAY-G के 2.69 करोड़ घर वास्तव में पूरी तरह से तैयार हो चुके हैं? क्या SHGs को मिले 9.85 लाख करोड़ रुपये का सही उपयोग हो रहा है? MGNREGS में आधार-आधारित भुगतान प्रणाली मजदूरों के लिए कितनी फायदेमंद साबित हुई है?
आर्थिक सर्वेक्षण में दिए गए आंकड़े सरकार की नीतियों को दर्शाते हैं, लेकिन इनकी जमीनी सच्चाई को परखे बिना इन्हें पूर्ण रूप से सफल नहीं कहा जा सकता। ग्रामीण भारत में बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं, स्वच्छ जल आपूर्ति, रोजगार और न्याय व्यवस्था की चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं।
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