किसानों को तीन महीने पहले अलर्ट: क्या है कृषि संकट सूचकांक?
21 मार्च 2025, नई दिल्ली: किसानों को तीन महीने पहले अलर्ट: क्या है कृषि संकट सूचकांक? – कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में किसानों के लिए एक नई पहल की जानकारी साझा की है। लोकसभा में एक लिखित जवाब में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने बताया कि देशभर में किसानों के संकट को मापने के लिए अभी कोई व्यवस्थित “कृषि संकट सूचकांक” (एफडीआई) उपलब्ध नहीं है। हालांकि, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 2020-21 और 2021-22 के दौरान एक पायलट अध्ययन किया गया था, जिसका नाम था- “कृषि संकट और पीएम फसल बीमा योजना: वर्षा आधारित कृषि का विश्लेषण”।
इस अध्ययन का मकसद था एक ऐसा टूल तैयार करना, जो किसानों के संकट को पहले ही भांप सके और नीति-निर्माताओं को सही समय पर कदम उठाने में मदद करे। यह सूचकांक जलवायु परिवर्तन, कीमतों में उतार-चढ़ाव और किसानों की कमजोर आर्थिक स्थिति जैसे कई पहलुओं को ध्यान में रखता है। सूचकांक को सात प्रमुख मानकों- जोखिम, अनुकूलन क्षमता, संवेदनशीलता, शमन रणनीतियाँ, ट्रिगर, मनोवैज्ञानिक कारक और प्रभाव- के आधार पर तैयार किया गया है।
तीन महीने पहले मिलेगी चेतावनी
मंत्रालय के मुताबिक, एफडीआई का लक्ष्य है कि यह एक अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की तरह काम करे, जो संकट आने से तीन महीने पहले अलर्ट दे सके। यह सूचकांक न सिर्फ संकट की गंभीरता को मापेगा, बल्कि प्रभावित इलाकों की पहचान कर वहां समय पर मदद पहुंचाने में भी सहायक होगा। इसके लिए एक स्केलेबल फ्रेमवर्क भी सुझाया गया है, ताकि सरकारी सहायता सही जगह तक पहुंच सके। हालांकि, यह अभी शुरुआती चरण में है और पूरे देश में लागू करने की कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है।
एफडीआई में कई तरह के संकेतकों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे- कीट और बीमारियों से फसल का नुकसान, सूखा या बाढ़ से होने वाली हानि, परिवार के मुखिया की शिक्षा, कर्ज का बोझ, सिंचाई की सुविधा, गैर-कृषि आय, और यहाँ तक कि सामाजिक अलगाव या शराब की लत जैसे मनोवैज्ञानिक पहलू भी। इसका मकसद यह समझना है कि किसान किन-किन वजहों से परेशानी में हैं और उसका असर उनकी जिंदगी पर कैसे पड़ रहा है।
कितना कारगर होगा यह टूल?
हालांकि यह कदम सैद्धांतिक रूप से उपयोगी लगता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसे लागू करना आसान नहीं होगा। ग्रामीण भारत में डेटा जुटाने की चुनौतियाँ, सरकारी योजनाओं का धीमा क्रियान्वयन और जमीनी स्तर पर जागरूकता की कमी इसे प्रभावी बनाने में बाधा बन सकती है। साथ ही, यह सवाल भी उठता है कि क्या यह सूचकांक सिर्फ कागजों तक सीमित रहेगा या वाकई किसानों की जिंदगी में बदलाव लाएगा।
कृषि मंत्रालय का कहना है कि यह टूल न सिर्फ संकट की पहचान करेगा, बल्कि उससे निपटने के लिए जगह-विशिष्ट प्लान भी सुझाएगा। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इसे पूरे देश में कब और कैसे लागू किया जाएगा।
किसानों की बदहाली लंबे समय से चर्चा का विषय रही है। ऐसे में एफडीआई जैसे टूल की जरूरत तो महसूस की जा रही है, लेकिन इसके असर को लेकर संशय बरकरार है। क्या यह सूचकांक किसानों के लिए एक नई उम्मीद बन पाएगा, या फिर यह भी एक और सरकारी योजना बनकर रह जाएगा? इसका जवाब आने वाले समय में ही मिलेगा।
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