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ICAR- आइसीएआर के शोध संस्थान 13 जीएम फसलों के विकास में जुटे हैं

24 दिसम्बर 2022, नई दिल्ली: ICAR- आइसीएआर के शोध संस्थान 13 जीएम फसलों के विकास में जुटे हैं – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान और उसके विश्वविद्यालय 13 फसलों जैसे कपास, पपीता, बैंगन,  केला, चना, अरहर, आलू, ज्वार, ब्रासिका, चावल में जैविक और अजैविक तनाव सहिष्णुता, उपज और गुणवत्ता सुधार जैसे विभिन्न लक्षणों के लिए वर्ष 2006 से “फंक्शनल जीनोमिक्स एंड जीनोम मॉडिफिकेशन पर नेटवर्क प्रोजेक्ट” के माध्यम से 11 संस्थानों को शामिल करते हुए फ्लैक्स, गेहूं और गन्ना जैसी जीएम फसलों के विकास के कार्य में गहराई से लगे हुए हैं।

वर्तमान में चार फसलों में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा विकसित पछेती झुलसा प्रतिरोधी आलू; आईसीएआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली द्वारा विकसित अरहर में फली छेदक प्रतिरोध; आईसीएआर भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर द्वारा विकसित कीट प्रतिरोधी चना, और आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन बनाना, तिरचुरापल्ली द्वारा विकसित प्रो-विटामिन और आयरन से भरपूर केला, विभिन्न गुणों वाले जीएम उत्पाद घटक चयन से लेकर जैव सुरक्षा तक अनुसंधान स्तर के परीक्षण विभिन्न चरणों में हैं।

कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग-डीएआरई के सचिव और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने आज जीएम सरसों के विभिन्न मुद्दों पर एक विस्तृत बयान जारी करते हुए कहा कि जीएम के विरोधियों द्वारा डीएमएच 11 अनुमोदन के संबंध में कई मिथक प्रचारित किए जा रहे हैं। जबकि जीएम तकनीक किसी ऐसी समस्या को दूर करने के लिए फसल की विविधता में कोई भी लक्षित परिवर्तन लाने में सक्षम है जिसे हासिल करना मुश्किल या असंभव है और जो मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है। इस प्रकार जीएम प्रौद्योगिकी में भारतीय कृषि में बहुप्रतीक्षित क्रांति की बराबरी की क्षमता है। विशेष रूप से देश में खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन, आवश्यकता और आयात के संबंध में वर्तमान परिदृश्य को देखना महत्वपूर्ण है।

खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता- समय की आवश्यकता:

खाद्य तेल के लिए घरेलू मांग को पूरा करने के लिए भारत का खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 के दौरान हमने 14.1 मिलियन टन खाद्य तेलों के आयात पर 1,56,800 करोड़ रुपये खर्च किए। इनमें मुख्य रूप से ताड़, सोयाबीन, सूरजमुखी और कनोला तेल शामिल हैं जो भारत के 21 मिलियन टन के कुल खाद्य तेल खपत के दो-तिहाई हिस्से के बराबर है। इसलिए कृषि-आयात पर विदेशी मुद्रा व्यय को कम करने के लिए खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता अनिवार्य रूप से आवश्यक है।

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