Horticulture (उद्यानिकी)

कपास की जैविक खेती

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कपास की जैविक खेती

कपास की जैविक खेती का अपना महत्व है। कपास का भारत में रेशे वाली फसलों में प्रमुख स्थान है और नगदी फसल है। लोग रसायनिक खेती के दुष्परिणामों को जान चुके हैं और रसायनिक तरीके से उत्पादित उत्पादों से दूर जाने लगे हैं। लम्बे रेशा वाले कपास को सर्वोतम माना जाता है जिसकी लम्बाई 5 सेंटीमीटर, मध्य रेशा वाली कपास जिसकी लम्बाई 3.5 से 5 सेंटीमीटर होती है तीसरे प्रकार का कपास छोटे रेशे वाली जिसकी लम्बाई 3.5 सेंटीमीटर होती है। कपास जब जैविक हो उसके रेशे, बिनोले और तेल की महत्ता अपने आप बढ़ जाती है।

जलवायु : कपास के पौधे के लिए उच्च तापमान, साधारण: 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तक है। टिंडे खिलने के समय स्वच्छ आकाश, तेज और चमकदार धूप का होना आवश्यक है। जिससे रेशे में पर्याप्त चमक आ सके तथा टिंडे पूरी तरह खिल सकें और कपास की जैविक खेती के लिए कम से कम 60 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है।

उपयुक्त भूमि : कपास की जैविक खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है, किन्तु इसके लिए उपयुक्त भूमि में अच्छी जलधारण और जल निकास क्षमता होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां इसकी खेती अधिक जलधारण क्षमता वाली मटियार भूमि में की जाती है। इसके लिए उपयुक्त पीएच मान 5.5 से 6.0 है। हालाँकि इसकी खेती 8.5 पीएच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है।

बुवाई समय : कपास की बुआई दो समय पर की जाती है प्रथम विधि में वर्षा से पूर्व सूखे खेत में बोना दूसरा एक बारिश के बाद बुआई करना। वर्षा से पूर्व बुआई को अगेती बुआई भी कहते हैं इसमें मानसून/वर्षा आने के 7-8 दिन पूर्व सूखे खेत में बुआई कर देते हैं। वर्षा के बाद जमाव को देख कर आवश्यकता अनुसार खाली जगह पर पुन: बीज वो देते हैं इस विधि में उत्पादन अधिक मिलता है एवं बीज हेतु कपास उगने के लिए यह विधि उत्तम है सामान्तया यह बुआई 10-20 जून के मध्य होती है दूसरा समय बारिश के बाद बुआई का होता है इसमें पहले खेत को पहले तैयार रखते हैं जैसे ही बारिश होती है बुआई कर देते हैं हल्की बारिश के बाद बुआई करते हैं।

बुवाई विधि : कपास की बुआई पंक्ति में की जाती है देसी कपास की बुआई 30&15 सेंटीमीटर पर करते हैं हाइब्रिड एवं अमरीकन कपास की बुआई 45&90 सेंटीमीटर अथवा 45&120 सेंटीमीटर अथवा 30&120 सेंटीमीटर दूरी पर प्रजाति की अनुसार करते हैं।

बीज की मात्रा : बीज की मात्रा बोई जाने वाली प्रजाति पर निर्भर करता है सामान्तया हाइब्रिड कपास 450-500 ग्राम बीज एक एकड़ खेत के लिये पर्याप्त है देसी कपास की बुआई के लिये 5-6 किलोग्राम बीज एक एकड़ खेत हेतु आवश्यक होता है

खेत की तैयारी : गर्मी में गहरी जुताई करें और खेत को तपने के लिए छोड़ दें, इससे फफूंद जनित रोग व इल्ली का प्रकोप होता है। कपास का खेत तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत पूर्णतया समतल हो ताकि मिट्टी की जलधारण एवं जल निकास क्षमता दोनों अच्छे हों। यदि खेत समतल न हो तो जुताई ढलान के विरुद्ध दिशा में करें, ताकि सभी कतार के बीच के कूड़ खेत में पानी के बहाव में अवरोधक बनते हैं, जिससे पानी को मिट्टी द्वारा सोखने में अधिक समय मिलता है।

फसल बुवाई के लिए खेत के खरपतवारों और पूर्व की फसल अवशेषों की सफाई करें बुवाई से पहले मेड़ों को साफ करें और कीट को संरक्षण देने वाले गाडर, कासकी, अंगेड़ो, जंगली भिंडी आदि खरपतवारकों नष्ट करें।

जैविक खाद एवं जैव-उर्वरक: कपास की जैविक खेती के लिए बुवाई से 15 दिन पूर्व खेत में 30 से 40 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर तथा 500 किलोग्राम घनजीवामृत बिखेरने के बाद खेत की अच्छी जुताई करें एवं पाटा चलाकर खेत समतल कर लें। खाद डालने के बाद खेत को खुला नहीं छोड़ें। जैव उर्वरक राइजोबियम, पीएसबी, पोटाश एवं जिंक घोलक जीवाणु कल्चर का उपयोग बुवाई से पूर्व बीज उपचार करते समय करें। इन कल्चर की मात्रा उत्पादनकर्ता की संस्तुत के आधार पर निश्चित करें।

भूमि और बीजोपचार: बीजोपचार और भूमि उपचार इस प्रकार करें-

भूमि उपचार- कपास की जैविक खेती हेतु भूमि शोधन के लिए 2.5 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा विरिडी को 150 से 200 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट अथवा गोबर खाद (अच्छी प्रकार सड़ी एवं छान कर) जिसमें पर्याप्त नमी हो में मिलाकर मोटी पॉलीथिन सीट से ढककर 10-12 दिन तक छाया में रखते हैं 3-4 दिन के अंतराल पर इसे पुन: आपस में मिला कर ढक दें इसके पश्चात् बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में समान रूप बिखेर कर मिला दें।

बीज उपचार – बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 5-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी से बीज को उपचारित करें इससे जड़ सडऩ, तना सडऩ, डैम्पिंग आफ, उकठा, झुलसा आदि फफूंद जनित रोगों से छुटकारा मिलेगा। इसके पश्चात् बीज को एजोटोबैक्टर, पी. एस. बी. एवं पोटाश जैव-उर्वरक (एनपीके जैव-उर्वरक) से उपचारित कर छाया में सुखाकर बोना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो जिंक के जैव उर्वरक उपब्ध हैं इनका उपयोग कर सकते हैं। जैव उर्वरक मात्रा का प्रयोग उत्पादक के अनुमोदन के अनुसार करते हैं।

सल्फर का प्रयोग : कपास की जैविक की फसल में सल्फर बहुत आवश्यक है इसके लिए फूल निकलने से पूर्व आर्गेनिक प्रमणित घुलनशील सल्फर 2 प्रतिशत का घोल फसल पर स्प्रे करते हैं, 7 दिन के अंतराल पर दो बार करते हैं।

तरल जैविक खाद : कपास एक अधिक पोषण वाला फसल है। इसको ज्यादा तत्व की जरूरत होती है। इसलिए अच्छी जैविक फसल हेतु खड़ी फसल में तरल खाद आवश्यक होता है। बुवाई के 20 दिन बाद पहली बार तरल खाद जीवामृत 100 लिटर, वेस्ट डी कंपोजर 100 लीटर का ड्रैंचिंग करते हैं ! इसके पश्चात 8-10 दिन के के अंतराल पर चार पांच बार जीवामृत 200 लीटर, वेस्ट डी कंपोजर 200 लीटर, प्रयोग करते हैं। जीवामृत 1 लीटर तथा वेस्ट डी कंपोजर 1 लीटर पानी 12 लीटर मिला कर कड़ी फसल पर स्प्रे करते हैं। मटका खाद 50 लीटर अधिक प्रयोग करते हैं। अन्य तरल खाद का प्रयोग उसकी संस्तुत के अनुसार करते हैं।

सिंचाई एवं जल प्रबंधन : यदि वर्षा न हो अंकुरण के बाद पहली सिंचाई 20 से 30 दिन में कीजिये। इससे पौधों की जड़ें ज्यादा गहराई तक बढ़ती है। बाद की सिंचाईयां 20 से 25 दिन बाद करें। इस बात का विशेष ध्यान दें कि फूल और फल या टिंडे बनते समय पानी कि कमी न हो मध्य सितम्बर में यदि खेत में नमी न हो तो हलकी सिंचाई करनी चाहिए, ऐसा करने से टिंडे शीघ्र फटते हैं। ध्यान रखें फसल बढ़वार के समय वर्षा का पानी खेत में न रुकने दें। सिंचाई करते समय पानी हल्का लगाये यदि पौधों के पास पानी रुक जाए, तो यथा शीघ्र निकाल दें खेत में जल निकास हेतु एक नाली रखें। कपास की जैविक फसल में टपक सिंचाई प्रभावी पाई गई है। इससे पैदावार अधिक और पानी की भी बचत होती है।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण : फसल बढ़वार बुवाई के 25 से 25 दिन बाद पहली गुड़ाई कसोले तथा ट्रैक्टर चालित कल्टीवेटर या बैल चालित कल्टीवेटर करते से हैं। शेष निराई-गुड़ाई 2 से 3 बार फूल व टिंडे बनने के पहले ही समाप्त कर लेना आवश्यक है। इस बात का विशेष ध्यान दें कि कपास की फसल बढ़वार वाली अवस्थाओं में पूरी तरह खरपतवार रहित हो।
यदि फसल में बोई किस्म के अलावा दूसरी किस्म के पौधे मिले हुए दिखाई दें तो उन्हें निराई के समय उखाड़ दीजिए क्योंकि मिश्रित कपास का मूल्य कम मिलता है।

कपास की चुनाई – कपास में टिंडे पूरे खिल जायें तब उनकी चुनाई कर लीजिये। प्रथम चुनाई 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर शुरू करें और दूसरी शेष टिण्डों के खिलने पर करें।

पैदावार – उपरोक्त उन्नत विधि से खेती करने पर देशी कपास की 20 से 25, संकर कपास की 25 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार ली जा सकती है।

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