मिश्रित खेती वर्तमान की जरूरत
सदियों से भारतीय कृषि में छोटे रूप में मिश्रित खेती का समावेश हुआ करता था। खेत की तैयारी से लेकर बुआई, कटाई, गहाई सभी कार्यों के लिये प्राय: हर कृषक के पास एक बैल जोड़ी, अनाज को स्थानान्तरण के लिये बैलगाड़ी, घरू आवश्यकता के लिये एक या दो गाय, भैंस का होना सामान्य बात हुआ करती थी। तत्कालीन समय में हमारी जनसंख्या सीमित थी और खेती का रकबा बड़ा, उससे जो खाद्यान्न उत्पादन होता था पर्याप्त होता था परंतु धीरे-धीरे हम पर जनसंख्या का बोझ बढ़ा, हमारी आवश्यकता बढ़ी और बढ़ती मांग की पूर्ति के लिये कृषि से अधिक उत्पादन की जरूरत पडऩे लगी। हमने कृषि के लिये उन्नत बीज तैयार किये, उक्त बीज के पेट भरने के लिये रसायनिक उर्वरक तथा सिंचाई जल की आवश्यकता बढ़ती गई और परिणामस्वरूप छोटे, मध्यम तथा बड़े बांधों का निर्माण शुरू हुआ ताकि कृषि की प्रमुख आवश्यकता जल की भरपाई की जा सके। कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के प्रमुख तीन श्रोत अच्छा बीज, भरपूर उर्वरक तथा जल को पाकर उत्पादन की क्षमता दो-तीन गुना बढग़ई एक और जहां हम अनाज बाहर से बुलाते थे अब बाहर भेजने के लिये भी हमारी क्षमता बढ़ गई। बढ़ती जनसंख्या, पारिवारिक बंटवारे से घटती खेती की जोत और कृषि के लिये प्रमुख आदानों की बढ़ती कीमतों से हमारी कृषि नफा के बजाय नुकसान देने लगी। कृषि में नवीनीकरण की दौड़ में हमारी प्रगति तो हुई इसमें कोई शंका नहीं परंतु लाभकारी खेती में हम पिछड़ गये तब जाकर हमें हमारी कृषि की पुरानी पद्धति याद आई जिसमें हम पशुपालन, करके खेती से मिले अवशेषों का भरपूर उपयोग करके अतिरिक्त आय भी करते थे। मशीनीकरण नि:संदेह हमारी जरूरत है परंतु पशुपालन को त्यागना हमारी मजबूरी कतई नहीं थी। बड़े बुजुर्ग कहते थे हमारे देश में दूध की नदियां बहती थीं वह कल्पना सिमट कर दूध के पैकेट में रह गई, खैर देर आये दुरूस्त आये आज की स्थिति में अकेली खेती से हमारी आवश्यकतायें पूरी होना असंभव है खेती के साथ पशुपालन, पशु होंगे तो गोबर होगा, मूत्र होगा, गोबर के उपयोग से अच्छी गुणवत्ता का जैविक खाद, गोबर गैस को बनाने के लिये गोबर ताकि धुआं रहित रसोई हो सके और हमारा जीवन स्तर ऊंचा उठ सके। खेती के अवशेषों का पर्याप्त उपयोग करने के लिये बकरी पालन भी किया जा सकता है जिस पर अल्प खर्च में बड़ा पैसा हाथ लग सकता है। वर्तमान में कृषि से जुड़ा मधुमक्खी पालन एक ऐसी जरूरत है जिसमें हमारी कृषि का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। मधुमक्खी पालन से आम के आम गुठलियों के दाम वाली बात चरितार्थ होती है। मधुमक्खी पालन करने से शहद के अलावा हमारी कृषि के उत्पादन में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हंै। सूर्यमुखी फसल में तो यदि मधुमक्खी की क्रियाशीलता ना हो तो बड़े-बड़े फूल दाने विहीन पोचे रह जायेंगे। सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि कम से कम 100 फसलों के फूलों से परागकण का स्थानान्तरण इस कीट के द्वारा करके उन्हें दाने बनने की क्रिया में मदद मिलती है।
कृषक कुटिया के आसपास पड़ी जमीन पर मशरूम पालन करना कोई कठिन बात नहीं है। उल्लेखनीय है कि उक्त दोनों कार्यों के लिये प्रशिक्षण की पुख्ता व्यवस्था शासन द्वारा की जाती है। मशरूम की खरीदी आसपास के नगर के होटलों में अच्छी कीमत पर की जाती है। तथा घर उपयोग करके कुपोषण की समस्यायें निजात हो सकती हैं। खेत में यदि कुछ भूमि में फल वृक्ष लगा लिये जायें तो पैसा ही मिलेगा। नींबू के पौधों को थोड़ी सी देखभाल के बाद फलों के क्रय से अच्छी आमदनी मिल सकती है। सामान्य रूप से एक रुपये के दो नींबू तक आसानी से बिक जाते हैं। वहीं नींबू ग्रीष्मकाल में 5/- प्रति नग तक की कीमत दिलाता है। इस प्रकार यदि हम अपनी कृषि को मिश्रित खेती में परिवर्तन कर लें तो उसे लाभ का धंधा बनाना कोरी कल्पना नहीं रह जायेगी।