Horticulture (उद्यानिकी)

मिर्च के कीट व्याधियां तथा उनका नियंत्रण

Share

मिर्च के कीट व्याधियां तथा उनका नियंत्रण

मिर्च के कीट व्याधियां तथा उनका नियंत्रण

बीमारियां – मिर्च की फसल पर पौध तैयार करने से तक की स्थिति में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रकोप हो फलस्वरूप फसल सुरक्षा हेतु विभिन्न प्रकार की दवाओं का  करना पड़ता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत काफी बढ़ जाती है। 

आद्र्रगलन – यह रोग नर्सरी की स्थिति में पीथियम एवं फाइटोप्थोरा फफूंद कारण होती है। पौधों का क्यारियों में निचला तना एवं जड़ गल जाती है। पौधा सूख जाता है, इसमें कुछ बीज उगने के पूर्व सड़ जाते हैं। उगने के बाद सड़कर गिर जाते हैं। यह बीमारी बरसात के समय काफी उग्र हो जाती है।

नियंत्रण- 

  • नर्सरी में मिट्टी का उपचार तथा बीज का उपचार कार्बेन्डाजिम 0.25 प्रतिशत की दर से उपचारित करके बुआई करें। 
  • जल निकास उचित रखें।
  • अंकुरण के उपरांत भूमि को बाविस्टीन या बोर्डो मिक्सचर या केप्टान से उपचारित करें। नर्सरी बेड को 3 ग्राम दवा प्रति लीटर घोल बनाकर प्रति वर्ग मीटर के मान से 5 लीटर घोल से अच्छी तरह तर कर दें।
  • भूमि का उपचार 4:4:50 बोर्डो मिक्सचर से करें।
  • बीज को उगने के पश्चात् 2 पत्ती वाली अवस्था में एक बार मेन्कोजेब 2 ग्राम लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 

एन्थ्रेक्नोज – यह बीमारी कोलोटोट्राइकेम कैप्सिसी (श्याम वर्ण) डाई बैक नामक कवक के कारण होता है। छोटे और अधपके फलों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। पौधों की छोटी टहनियां धीरे-धीरे सूखती जाती हैं तथा इसकी पत्तियां झड़ जाती हैं, रोगग्रसित मिर्च काली एवं मुलायम होकर गल जाती है। तने एवं पत्तियों पर भी धब्बे हो जाते हैं। यह बीमारी सितंबर से अक्टूबर के माह में आती है पौधे का ऊपरी शिरा गलकर नीचे की तरफ बढ़ता है तथा क्रमश: ऊपरी शीर्ष गिरने लगता है सुबह के समय इस पर रोयेंदार बढ़वार दिखाई देती है। 

नियंत्रण- बीज को 2 से 3 ग्राम थाइरम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करें। 

रोपण के पूर्व भी बाविस्टीन के घोल में जड़ों को 30 मिनिट तक उपचारित कर रोपाई करें। मिर्च की रोपाई के बाद ब्लाइटाक्स, फाइटोलान, जिनेब अथवा डाइथेन एम 45 (इण्डोफिल-45) का छिड़काव तथा 25-30 दिन बाद दूसरा छिड़काव 2 किग्रा. दवा प्रति हेक्टर की दर से स्प्रेयर के आधार पर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

लीफकर्ल (चुर्डा-मुर्डा) – यह बीमारी विषाणु द्वारा फैलती है इस बीमारी के प्रकोप से पत्तियां छोटी होकर अनियमित रूप से सिकुड़ कर पीली पड़कर मुड़ जाती हैं, पौधा बौना हो जाता है, शीर्ष पर गुच्छा बन जाता है। फल बनते हैं तो विकृत हो जाते हैं। फूल फल बनना कम हो जाता है। यह सफेद मक्खी द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैलती है।

रोकथाम – रोगोर 4 मिली. एवं घुलनशील गन्धक (सल्फेक्स) 0.3 प्रतिशत घोल का (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) छिड़काव करें। बैक्टीरियल विल्ट (बीजाणु क्लार्क रोग)- इस रोग के कारण पौधे मुरझा कर सूख जाते हैं. अधिक तापमान एवं आद्र्रता से बीमारी बढ़ती है। 

नियंत्रण – स्वस्थ बीज उपयोग करें. 4:4:50 बोर्डो मिक्सचर का छिड़काव करें। 

मिर्च के कीट – मिर्च की फसल को रस चूसने वाले कीटों से क्षति पहुंचती है इनके द्वारा बीमारी फैलती है। इसके अतिरिक्त फल छेदक से भी क्षति होती है। इसके नियंत्रण हेतु फरवरी माह में थायोडान 2 मि. ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। थ्रिप्स एवं एफिड के नियंत्रण हेतु दिसम्बर माह में डाइमिथिएट 0.025 प्रतिशत का छिड़काव करें। जैविक नियंत्रण हेतु परभक्षी क्राइसोपर्मा तथा क्राक्सीनेत्जा, माहू सफेद मक्खी तथा जैसिड का अच्छा नियंत्रण करते है। 

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *