संपादकीय (Editorial)

मेहंदी की खेती

उत्पादक क्षेत्र – मेहंदी पूरे भारत वर्ष में पायी जाती है। राजस्थान में पाली जिले का सोजत व मारवाड़ जंक्शन क्षेत्र वर्षो से मेहंदी के व्यवसायिक उत्पादन का मुख्य केन्द्र है। यहां करीब 40 हजार हेक्टर भूमि पर मेहंदी की फसल उगायी जा रही है। सोजत में मेहंदी की मण्डी व पत्तियों का पाउडर बनाने तथा पैकिंग करने के कई कारखाने हैं। सोजत की मेहंदी अपनी रचाई क्षमता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। सोजत से विदेशों में बड़े स्तर पर मेहंदी निर्यात की जाती है।

प्रजातियां – कुछ अनुसंधान संस्थानों व कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा मेहंदी में आनुवांशिक सुधार कार्यक्रम के तहत उच्च उत्पादन क्षमता वाले पौधों की पहचान की गई है। लेकिन अधिकारिक तौर पर अभी तक कोई उन्नत किस्म विकसित नहीं हुई है। अत: स्थानीय फसल से ही स्वस्थ, चौड़ी व घनी पत्तियों वाले एक जैसे पौधों के बीज से ही पौध तैयार कर फसल की रोपाई करें।

Advertisement
Advertisement

खेत की तैयारी – वर्षा ऋतु से पहले खेत की मेड़बन्दी करें तथा अवांछनीय पौधों को उखाड़कर लेजर लेवलर की सहायता से खेत को समतल करें। इसके बाद डिस्क व कल्टीवेटर से जुताई कर भूमि को भुरभुरा बना लेवें।

मेहंदी एक बहुवर्षीय झाड़ीदार फसल है जिसे व्यावसायिक रूप से पत्ती उत्पादन के लिए उगाया जाता है। मेहंदी प्राकृतिक रंग का एक प्रमुख श्रोत है। शुभ अवसरों पर मेहंदी की पत्तियों को पीस कर सौन्दर्य के लिए हाथ व पैरों पर लगाते है। सफेद बालों को रंगने के लिए भी मेहंदी की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। इसका सिर पर प्रयोग करने से रूसी (डेंड्रफ) की समस्या भी दूर हो जाती है। इसकी पत्तियां  चर्म रोग में भी उपयोगी है। गर्मी के मौसम में हाथ व पैरों में जलन होने पर भी मेहंदी की पत्तियों को पीसकर लगाया जाता है। इसका उपयोग किसी भी दृष्टिकोण से शरीर के लिए हानिकारक नहीं है। मेहंदी की हेज घर, कार्यालय व उद्यानों में सुन्दरता के लिए लगाते है। मेहंदी शुष्क व अद्र्धशुष्क क्षेत्रों में बहुवर्षीय फसल के रूप में टिकाऊ खेती के सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। मेहंदी की खेती पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है। 

खाद व उर्वरक – खेत की अंतिम जुताई के समय 10 – 15 टन  सड़ी देशी खाद व 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से भूमि में मिलावें तथा 60 किलो नत्रजन व 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टर की दर से खड़ी फसल में प्रति वर्ष प्रयोग करें। फास्फोरस की पूरी मात्रा व नत्रजन की आधी मात्रा पहली बरसात के बाद निराई गुड़ाई के समय भूमि में मिलावें व शेष नत्रजन की मात्रा उसके 25-30 दिन बाद वर्षा होने पर देवें।

Advertisement8
Advertisement

प्रवर्धन- मेहंदी को सीधा बीज द्वारा या पौधशाला में पौध तैयार कर रोपण विधि से या कलम द्वारा लगाया जा सकता है। हेज लगाने के लिए प्रवर्धन की तीनों विधियां काम में ली जाती है। लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए पौध रोपण विधि ही सर्वोत्तम है।

Advertisement8
Advertisement

पौध तैयार करना – एक हेक्टर भूमि पर पौध रोपण के लिए करीब 6 किलो बीज द्वारा तैयार पौध पर्याप्त होती है। इस हेतु 1.5 &10 मीटर आकार की 8 – 10 क्यारियां अच्छी तरह तैयार कर मार्च माह में बीज की बुवाई करें। मेहंदी का बीज बहुत कठोर व चिकना होता है तथा सीधा बोने पर अंकुरण कम मिलता है। अत: अच्छा अंकुरण पाने के लिए बुवाई से करीब एक सप्ताह पहले बीज को टाट या कपड़े के बोरे में भरकर पानी के टेंक में भिगोवें व टेंक का पानी प्रतिदिन बदलते रहें। इसके बाद बीज को कार्बेन्डाजिम 2.50 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर छिटकवां विधि से बुवाई करें।

पौध रोपण – जुलाई माह में अच्छी वर्षा होने पर पौधशाला से पौधे उखाड़कर सिकेटियर द्वारा थोड़ी – थोड़ी जड़ व शाखाएं काट दें। खेत में नुकीली खूटी या हलवानी की सहायता से 30&50 सेमी से 50 &50 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में छेद बनावें  तथा प्रति छेद 1-2 पौधे रोपकर जड़े मिट्टी से अच्छी तरह दबा दें। पौध लगाने के बाद अगर वर्षा न हो तो सिंचाई कर देनी चाहिए। मेहंदी में 30 &250 सेमी की दूरी को ट्रैक्टर चलित यन्त्रों द्वारा समय पर निराई गुड़ाई कर प्रभावी रूप से खरपतवार नियंत्रण व क्षेत्र नमी संरक्षण के साथ-साथ पतझड़ की समस्या में कमी व पत्ती उत्पादन में सुधार के उद्देश्य से उपयुक्त पाया गया है।

अन्त: फसलीय पद्धति – मेहंदी की 2 पंक्तियों के बीच खरीफ व रबी ऋतु में दलहन तथा अन्य कम ऊंचाई वाली फसलें उगाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है। अन्त: फसल के उत्पादन एवं आमदनी की दृष्टि से खरीफ में मूंग व रबी में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर इसबगोल व असालिया सबसे उपयुक्त फसलें पायी गई है।

निराई गुड़ाई – मेहंदी के अच्छे फसल प्रबन्धन में निराई गुड़ाई का महत्वपूर्ण स्थान है। जून-जुलाई में प्रथम वर्षा के बाद बैलों के हल व कुदाली से निराई – गुड़ाई कर खेत को खरपतवार रहित बना लेवें। गुड़ाई अच्छी गहराई तक करें ताकि भूमि में वर्षा का अधिक से अधिक पानी संरक्षित किया जा सके। मेहंदी के खेत में कुछ पौधे दीमक कीट, जडग़लन बीमारी व अन्य कारणों से सूख जाते है जिनकी जगह समय-समय पर पौध रोपण कर देना चाहिए अन्यथा उत्पादन कम हो जाता है।

कटाई – पत्ती उत्पादन व गुणवत्ता की दृष्टि से पुष्पावस्था कटाई के लिए सर्वोत्तम है। आमतौर पर मेहंदी की कटाई सितम्बर-अक्टूबर माह में की जाती है। कटाई तेज धार वाले हसिया से हाथ में चमड़े के दस्ताने पहनकर की जाती है। मेहंदी की एक हेक्टर फसल की कटाई के लिए 12 -13 कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। फसल काटने के 18-20 घंटे तक मेहंदी को खुला छोड़े तथा इसके बाद एकत्र कर ढेरी बना लें। ऐसा करने से मेंहदी की गुणवत्ता में सुधार आता है। मेहंदी को सूखने पर हाथ द्वारा डण्डे से पीटकर या झाड़कर पत्तियों को अलग कर लें। पत्तों की झड़ाई का कार्य पक्के फर्श पर करना चाहिए।

Advertisement8
Advertisement

उपज – प्रथम वर्ष मेहंदी की उपज क्षमता का केवल 5-10 प्रतिशत उत्पादन ही प्राप्त हो पाता है। मेहंदी की फसल रोपण के 3-4 साल बाद अपनी क्षमता का पूरा उत्पादन देेना शुरू करती है जो करीब 30-40 वर्षो तक बना रहता है। सामान्य वर्षा की स्थिति में अच्छी तरह प्रबन्धित फसल से प्रति वर्ष करीब 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टर सूखी पत्तियों का उत्पादन होता है। कटाई के समय अगर बारिश आ जाती है तो भी फसल को बहुत नुकसान होता है। वह फसल गुणवता की दृष्टि से निम्न श्रेणी की हो जाती है। मेहन्दी का उत्पादन लगभग 50-70 हजार टन प्रति वर्ष होता है। जिसमे से 8 – 10 हजार टन विदेशों में निर्यात होता है।

  • डॉ. तखतसिंह राजपुरोहित
  • rajpurohitts@rediffmail.com
Advertisements
Advertisement5
Advertisement