फसल की खेती (Crop Cultivation)

आओ करें खरीफ की तैयारी

वर्ष 2015 का खरीफ शुरू होने को है। खरीफ का महत्व क्षेत्रफल तथा फसल विविधता की दृष्टि से विशेष है। खरीफ में पैदा किये जाने वाली प्रमुख फसलें धान, सोयाबीन, मूंगफली, मूंग, उड़द तथा अरहर है जिनमें से सबसे अधिक रकबा सोयाबीन का होता है। सोयाबीन ने 4 दशक पहले प्रदेश में अपना स्थान बनाया था जो दिन दूना रात चौगुना की रफ्तार से आज बढ़कर 60 लाख हेक्टर के आसपास हो गया।

अमूमन खरीफ के कुल रकबे का करीब आधा। प्रदेश की कृषि के अर्थशास्त्र की रीढ़ की हड्डी यदि सोयाबीन को कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि इस विशाल रकबे की बुआई के लिये खेत की तैयारी गंभीरता से की जाये तो आधी जंग जीत ली मानी जाये। शेष आधी में उन्नत बीज, बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन का यदि तोड़ मिल जाये तो उत्पादकता सरलता से बढ़ाई जा सकती है। सोयाबीन के बीज में अंकुरण क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है।

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अंकुरण परीक्षण के उपरांत ही यदि बीज दर निर्धारित हो तो प्रति इकाई पौध संख्या पर्याप्त होकर उत्पादन की सीढ़ी चढऩा सरल हो जायेगा। इसके बीज पर 20-30 प्रकार की फफूंदी होती है जो अंकुरण प्रभावित करती है इस कारण बीजोपचार फफूंदनाशी से, कल्चर से तथा भूमि में जमे फास्फेट को क्रियाशील करने के उद्देश्य से पीएसबी से उपचार भी महत्वपूर्ण है। इस फसल में ग्रंथियों द्वारा वायुमंडल से नत्रजन जमा करने की क्षमता होती है। इस कारण नत्रजन उर्वरक की जरूरत कम होती है परंतु स्फुर व पोटाश भरपूर सिफारिश के अनुसार दिया जाना चाहिए।

अंकुरण उपरांत दो कोपलों की पक्षियों से सुरक्षा भी एक अहम बात है जो आम किसान आज भी नहीं करता है। उल्लेखनीय है कि इन दो कोपलों में कोमल पौधों के विकास विस्तार के लिये संचित भोजन प्रकृति द्वारा उपलब्ध किया गया होता है। ताकि जब तक जड़ों में सजगता नहीं आई हो इस भोजन से जीवन चलायें परंतु यदि इन्हीं दो कोपलों को यदि पक्षी खा लेते है तो पौधों के प्राथमिक विकास में बाधा उत्पन्न अवश्य होगी। उर्वरकों का उपयोग भूमि में बीज के नीचे अग्गा/पिच्छा पोर के उपयोग से किया जाये ताकि बीज भूमि में अलग खाद/उर्वरक के ऊपर गिरे। राखड़ खाद का उपयोग यदि खेत में फेंक कर किया गया हो तो समझ लो बेकार हो गया। महंगे उर्वरकों का उपयोग और उसके समुचित उपयोग में फर्क है।

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उर्वरक यदि बीज के नीचे जाता है तो उसकी उपयोगिता सौ प्रतिशत होती है। इसी प्रकार धान के पानी से भरे खेतों में यूरिया का उपयोग फूटे घड़े में पानी भरने के समान ही होगा। बी.टी. कपास के आ जाने से 80 प्रतिशत कपास सुरक्षित हो गई। शेष के रखरखाव क्षेत्र के कृषक भलीभांति जानते हैं।

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लघु धान्य कोदो, कुटकी, रागी के महत्व को समझ कर उसका रकबा बढ़ाया जाना आवश्यक होगा। खरीफ फसलों की बुआई मानसून के मिजाज के कारण गड़बड़ा जाती है। इस देरी के कारण फसल की कटाई और रबी के लिये खेत की तैयारी पर भी असर होता है। इस कारण यथासम्भव समय से बोनी की जाये। धान की नर्सरी में जाति की अवधि के अनुरूप 20 से 30 दिनों के अंदर ही रोपे मुख्य खेत में लगा दिये जाये। अरहर की बोनी मेढ़ों पर की जाये।

खेतों में जल निकास नालियों की व्यवस्था की जाये ताकि अतिरिक्त जल का निकास होकर छोर पर जल का संरक्षण भी किया जाना संभव हो सके। खरीफ मौसम में अधिक आद्र्रता, धूप की कमी के कारण कीट/रोग अधिक जोर दिखाते हैं। इस कारण पौध संरक्षण के लिये कमरकसी रखना जरूरी होगा। खरीफ – रबी का आईना है। जितना उज्जवल वह रहेगा उसमें रबी का प्रतिबिम्ब उतना ही सजीव दिखेगा।

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