अक्टूबर-नवंबर में किसान ऐसे करें मूंगफली की खेती, कम लागत में होगा लाखों का मुनाफा; जानिए पूरी जानकारी
28 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: अक्टूबर-नवंबर में किसान ऐसे करें मूंगफली की खेती, कम लागत में होगा लाखों का मुनाफा; जानिए पूरी जानकारी – मूंगफली की खेती वर्ष में दो बार होती है। लेकिन सर्दियों के मौसम में मूंगफली की अधिक मांग रहती है। ऐसे में अक्टूबर-नवंबर में बड़े पैमाने पर किसान मूंगफली की खेती करते हैं। इस प्रमुख तिलहनी फसल से किसान कम लागत में अधिक मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। सही तकनीक, मिट्टी की तैयारी और समय पर बीजाई के साथ, यह फसल ना केवल जल्दी तैयार होती है, बल्कि लागत के मुकाबले उच्च लाभ भी देती है। अगर आप भी कृषि में स्मार्ट निवेश करना चाहते हैं, तो जानिए कैसे अक्टूबर-नवंबर में मूंगफली की खेती से अपनी आय बढ़ाई जा सकती है।
खेत की तैयारी– मूंगफली की अच्छी फसल उगाने के लिए सही मौसम और मिट्टी दोनों जरूरी हैं। इसके लिए दिन का तापमान लगभग 70–90°F होना चाहिए और परिपक्व होने के समय रात में हल्की ठंड फसल के लिए लाभकारी रहती है। साल भर में 50–125 सेमी बारिश पर्याप्त मानी जाती है। मिट्टी अच्छी जल निकासी वाली, नरम और ढीली दोमट या रेतीली दोमट होनी चाहिए, जिसमें कैल्शियम और जैविक पदार्थ अच्छे मात्रा में हों। मिट्टी का पीएच 5 से 8.5 के बीच होना फसल के लिए अनुकूल रहता है।
सामान्यत: मूंगफली की खेती के लिए 12 से 15 सेमी गहरी जुताई उपयुक्त होती है।
बीज की मात्रा एवं बुवाई– मूंगफली की बुवाई का उपयुक्त समय सिंचित क्षेत्र में जून प्रथम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह है। और जिसे अक्टूबर-नवंबर में कटाई होती है। इसके बाद, दूसरी फसल अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती है, और मार्च-अप्रैल में कटाई होती है।
बीज– मूंगफली की बुवाई के लिए झुमका किस्म का लगभग 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल किया जाता है, जबकि विस्तारी और अर्ध-विस्तारी किस्मों के लिए 60–80 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। झुमका किस्म में कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधों के बीच की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिए। वहीं विस्तारी और अर्ध-विस्तारी किस्मों में कतार से कतार की दूरी 45 सेमी और पौधों के बीच की दूरी 15 सेमी उपयुक्त होती है। इस तरह सही दूरी और बीज की मात्रा का ध्यान रखने से फसल स्वस्थ और अधिक उपज देती है।
किस्म– मूंगफली की खेती के लिए एसबी-11, जे.एल-24, जे.38(जीजी-7),टीएजी-24,जीजी-2,आरजी-138,आरजी-141, कादरी-3 ,एचएनजी-10, आरएसबी -87,एम-13,एम -335,एमए-10, चन्द्रा, सीएसजीएम 84-1 (कौशल) जैसे उन्नत किस्में उपयुक्त है।
बीजोपचार– बीज को कवक एवं जीवाणु इत्यादि के प्रभाव से बचाने के लिए क्रमश: कवकनाशी (3 ग्राम थाईरम या कार्बेन्डाजिम या 2 ग्राम मेंकोजेब से प्रति किलो बीज की दर) से, कीटनाशी (एक लीटर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी से प्रति 40 किग्रा बीज की दर) से और अंत में राइजोबियम कल्चर एवं फास्फेट विलेयक जीवाणु खाद से उपचारित करें।
उर्वरक – मूंगफली के लिए 43 किग्रा यूरिया, 250 किग्रा स्फूर एवं 100 किग्रा म्यूरेट पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग होना चाहिए। फास्फोरस, पोटाश एवं आधी मात्रा नत्रजन की भूमि में अंतिम जुताई के साथ लाईनों में बुवाई कर दें।
सिंचाई– फसल में शाखा बनते, फूल निकलते एवं फली का विकास होते समय सिंचाई देना नितांत आवश्यक है क्योंकि ये अवस्थाएं अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। इन अवस्थाओं पर नमी की कमी पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। फव्वारा सिंचाई पद्धति जायद मूंगफली के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है।
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