फसल की खेती (Crop Cultivation)

धान में नील हरित शैवाल से करें नत्रजन उर्वरकों की बचत

धान में नील हरित शैवाल से करें नत्रजन उर्वरकों की बचत

धान फसल के लिये सबसे अधिक आवश्यकता नत्रजन की होती है। धान की उपज में कमी का मुख्य कारण नत्रजन का भरपूर मात्रा में न मिलना है। रसायनिक उर्वरक द्वारा दिये गये नत्रजन का मात्र 40 प्रतिशत भाग ही धान के पौधे ग्रहण कर पाते है। शेष पानी के साथ बह जाता है। नत्रजन युक्त उर्वरक सबसे मंहगे होते हैं। अत: इनके उपयोग में मितव्ययता लाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। नील हरित काई जैव उर्वरक एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। इसके उपयोग से धान में 20-25 किलो नत्रजन प्रति हेक्टेयर तक की बचत की जा सकती है। साथ ही धान उत्पादन में 10 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। यह खाद नत्रजन की पूर्ति के अलावा पौधों को उगाने में सहायक हारमोन्स एवं विटामिन्स भी उपलब्ध करती है।

यह जैविक खाद सीमांत तथा छोटे किसानों के लिये ज्यादा लाभप्रद हो सकता है जो अपनी अल्प आर्थिक स्थितियों के कारण रसायनिक उर्वरकों का समुचित उपयोग नहीं कर पाते।

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रोपाई पद्धति से धान की खेती करने वाले क्षेत्रों में नील हरित काई जैव उर्वरक की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है क्योंकि हरित काई एवं रोपाई पद्धति से लगाने वाली धान का वातावरण एक सा ही होता है ।

नील हरित काई जमीन में पानी की अधिकता वाले स्थान में उगने वाले बैक्टिरिया जाति के शैवाल है। इनका रंग नीला हरापन लिये हुए होता है। नील हरित काई अपनी आवश्यक नत्रजन के लिये स्वावलम्बी है और जमीन में सडऩे के बाद साथ में उगने वाले धान के पौधों को भी लाभ पहुंचाता है। नील हरित काई के कोषों में वायुमण्डलीय नत्रजन को हेटरोसिस्ट रूप में स्थिरीकृत करने की विशेष क्षमता होती है, जो अन्य कोई में नहीं होती। इस काई में फास्फेट, नाइट्रेट, मैग्नीशियम, कैल्शियम आदि प्रमुख रूप से एवं आयरन, मैग्नीज, जिंक, तांबा तथा मालिब्डिनम आदि सूक्ष्म रूप से विद्यमान होते है।

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धान नील हरित काई के उपयोग की विधि:

  • नील हरित काई खाद को धान की रोपाई के लिये एक सप्ताह बाद ही उपचार करें।
  • 10-12 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से इस खाद का छिड़काव करें। यद्यपि अधिक मात्रा में भी नुकसानदायक नहीं होता।
  • इस खाद के उपयोग के समय खेत में 10-15 से.मी. पानी भरें, जो 15-20 दिन तक बना रहें। इस बीच अनावश्यक बहाव को रोकने के लिये खेत की मेड़ों को अच्छी तरह बांध दें।
  • रोपाई करते समय ही स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा डाल दें। नील हरित काई की वृद्धि के लिये स्फुर की उपस्थिति आवश्यक होती है।
  • 3 से 4 वर्ष तक लगातार उपयोग करने से प्रभाव होता है। उसके बाद इस खाद को डालने की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि यह खेत में स्थिर हो जाती है और उपयुक्त वातावरण मिलने पर फिर से तैयार हो जाती है।

धान फसल को बाली अवस्था में बीमारी व कीटों से सुरक्षा

धान फसल में रोग नियंत्रण:

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बाली निकलते समय नेक ब्लास्ट याने बाली की गर्दन में रोग का प्रकोप सर्वाधिक आता है। खेत के कुछ पौधों में लक्षण दिखाई देते ही ट्रायसाईक्लाजोल 75 प्रति. डब्ल्यू.पी. नामक दवाई का 120 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करेें, क्योंकि यह दवा बीमारी नियंत्रण के अलावा पौधों को भोज्य पदार्थ भी उपलब्ध कराती है, जिससे पौधा तुरंत ठीक हो जाता है।
इसी प्रकार एक बीमारी और आती है जीवाणु जनित झुलसन या बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट। इस बीमारी में पौधों की ऊपरी पत्तियां पैरे के समान सूखती है। इसके लिये तुरंत खेत का पानी बदलें और 15-20 किलो प्रति एकड़ पोटाश खेत में डालें। इस दौरान किसान भाई यूरिया का प्रयोग न करें। बीमारीग्रस्त खेत में स्ट्रेप्टोसाइक्लिन दवा को 12 ग्राम प्रति एकड़ के मान से छिड़काव करें।

झुलसा रोग: पौधे से लेकर दाने बनने तक की अवस्था तक इस रोग का आक्रमण होता है। इस रोग का प्रभाव मुख्यत: पत्तियों पर प्रकट होता है। इस रोग से पत्तियों, तने की गांठों, बाली पर आंख के आकार के लाल धब्बे बनते है, जिससे पौधा झुलस जाता है।
इस रोग के नियंत्रण के लिये कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या हिनोसान 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या ट्रायसाइक्लाजोल 120 ग्राम प्रति एकड़ का उपयोग करें।

कीट: पत्ती लपेटक या पंढरी या बेड्डी यह कीट द्वारा होता है। इसमें सुंडी पत्ती के दोनों किनारों को मोड़कर आपस में मिला देती है और उसका हरा पदार्थ खा जाती है। पहले पहल पत्तियों में सफेद धारियां दिखाई देती है और बाद में पत्तियां सूख जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिये प्रोफेनोफास 50 ई.सी. 250 मि.ली. का छिड़काव प्रति एकड़ करें। आगामी दिनों में भूरा माहू नामक कीट के आक्रमण करने की संभावना है। फुदके तने का रस चूसते हैं। प्राय: यूरिया की अधिकता वाले खेतों में इसका विकराल रूप हापर बर्न के रूप में दिखाई देता है।

नियंत्रण: क्लोरोपाइरीफॉस 500 मि.ली. तथा इमीडाक्लोप्रिड 100 मि.ली. डीडीवीपी के साथ क्लोरोपाइरीफॉस 500 मि.ली. या 250 मि.ली. प्रोफेनोफास का छिड़काव करें ।
फौजी कीट नियंत्रण हेतु सांय के समय 250 मि.ली. डीडीवीपी के साथ क्लोरोपाइरीफॉस 500 मि.ली. या 250 मि.ली. प्रोफेनोफास का छिड़काव करें ।

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