फसल की खेती (Crop Cultivation)

नेपियर घास एक बार लगाएं पांच साल हरा चारा पाएं

नेपियर घास एक बार लगाएं पांच साल हरा चारा पाएं – नेपियर घास में ऑक्सैलिक अम्ल की मात्रा कुछ अधिक होती है। इसलिए नेपियर घास को ग्वार या लोबिया के साथ मिलाकर पशुओं को खिलायें।

भूमि : इसे विभिन्न प्रकार की भूमि में उगा सकते हैं, परन्तु फसल की उपज भारी भूमियों की अपेक्षा हल्की भूमि मे अधिक होती हैं। उत्तम उपज के लिए दोमट अथवा बलुअर दोमट मृदा उपयुक्त हैं ।

खेत की तैयारी : खेत की तैयार के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती है। इसके बाद 2-5 जुताइयाँ देशी हल से करते हैं। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए प्रत्येक जुताई के बाद पाटे का प्रयोग किया जाता है। भारत में नेपियर घास की फसल रबी की फसल की कटाई के पश्चात खरीफ ऋतु में तथा बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) में बोई जाती है। अत: इन्ही के आधार पर खेती की तैयारी की जाती है।

जातियाँ :

पूसा जाइन्ट नेपियर:- (नेपियर3बाजरा का संकरण) ढ्ढ्रक्रढ्ढ से विकसित हैं) इसका चारा उत्तम गुण वाला होता हैं। प्रोटीन व शर्करा अधिक मात्रा में पाया जाता हैं। चारा मुलायम, अधिक पत्तीदार होता हैं। सहन करने की क्षमता अधिक होती हैं। इसकी जड़ छोटी व उथली हुई होती हैं। जिसके कारण आगामी फसल के लिये खेत की तैयारी में कोई बाधा नहीं होती है।

पूसा नेपियर-1:- सर्दी में चारा देती हैं। IARIU से विकसित
पूसा नेपियर-2:- सर्दी में चारा देती हैं । IARIU से विकसित

नेपियर बाजरा हाइब्रिड ‘NB&21’:- 1500-1800/ वर्ष पौधे लंबे, शीघ्र बढऩे वाले व पत्तियाँ लम्बी, पतली, चिकनी तथा तना पतला, रोएँ नही होते हैं। कल्ले अधिम मात्रा में बनते हैं। पहली कटाई बोने के 50-60 दिन बाद व अन्य कटाई 35-40 दिन के अंतराल पर करते हैं। यह बहुवर्षीय घास एक बार रोपने के बाद 2-3 वर्ष तक चारा देती हैं। नवम्बर से फरवरी तक कोई वृद्धि नही होती हैं। उपरोक्त सभी जातियाँ बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के लिये उपयुक्त हैं।

संकर नस्ल का बीज बांझ होता हैं। एक झुंड में 50 तक कल्ले फूटते हैं। अन्य जातियाँ गजराज, NB&6, NB&17, NB&25, NB&393, NB&8&95, PNB&87, PNB&72, PNB&94, IGFRI&6, IGFRI&7 व RBN&9 विकसित की गई हैं।

बुवाई का समय:

वर्षा ऋतु की बुवाई:- जिन स्थानों पर सिचाई की सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं। वहाँ पर नेपियर घास की बुवाई वर्षा ऋतु में जुलाई से अगस्त तक की जाती हैं।

बसंत ऋतु की बुवाई:- नेपियर घास की बुवाई का यह सबसे उत्तम समय (फरवरी से मार्च) होता है। परंतु इस समय फसल की बुवाई उन स्थानों पर की जाती हैं जहाँ सिंचाई की सुविधायें उपलब्ध हों।

बोने का ढंग एवं बीज की मात्रा: नेपियर घास के बीज में भी अंकुरण शक्ति होती हैं। परंतु बीज की बुवाई करके उगाई गयी फसल में पौधों की वृद्धि अच्छी नहीं होती है। इसलिए नेपियर की बुवाई वानस्पतिक प्रसारण विधि से की जाती है। इस प्रसारण विधि में फसल उगाने के लिए निम्नलिखित तीन पदार्थों का प्रयोग किया जा सकता हैं-

  • भूमिगत तने जिन्हें राइजोम कहते हैं।
  • जड़ौधौं द्वारा
  • तने के टुकड़ों

इन पदार्थों में जड़ौधों पर्याप्त मात्रा में मिलना कठिन होता है और श्रम भी अधिक लगता है। निम्न विधियों द्वारा खेत में लगाया जाता हैं।

कुंडों में बुवाई : खेत को अच्छी तरह से तैयार करते हैं। खेत में उपयुक्त मात्रा में नमी हो। 90 सेमी की दूरी पर हल से कूँड बनाकर कूँड़ में टुकड़े डाल देते हैं और पटेला लगाकर उसे ढ़क देते हैं। 10-15 दिन बाद जब टुकड़े उग जाते हैं तब खेत की सिंचाई कर देते हैं। इस विधि में 7-10 हजार तने के टुकड़े प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता हैं। 10-15 क्विंटल जड़ौधौं (4-5 हजार जड़ों के टुकड़े) या तनों के टुकड़े प्रति हे. तक बोने के काम आते हैं।

45 अंश के कोण पर राइजोम अथवा तनों के टुकड़ों को गाडऩा : इस विधि में खेत में लगभग 50 सेमी की दूरी पर हल से कूँड़ बनाये जाते हैं। इन कूँड़ों में 45 अंश का कोण बनाते हुये टुकड़े इस प्रकार गाड़े जाते हैं कि झुकाव उत्तर कि तरफ रहे तथा टुकड़े में उपस्थित दो कली में से एक कली भूमि के अंदर रहे जिससे जड़ें निकाल सके तथा दूसरी कली भूमि के ऊपर रहेे जिससे शाखा उत्पन्न हो सके।

खाद : नेपियर घास अधिक मात्रा में उपज देने के कारण अधिक मात्रा में भूमि से पोषक तत्व शोषित करता हैं। पौधों की अच्छी वृद्धि एवं अधिक उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में भूमि में पोषक तत्व विभिन्न खाद एवं उर्वरकों द्वारा दें। सामान्य अवस्था में 120-150 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50-70 किलोग्राम फास्फोरस प्रति वर्ष फसल में दें। भारतीय भूमि में पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है इसलिए नेपियर घास को पोटाश देने की आवश्यकता नहीं होती हैं। नाइट्रोजन और फास्फोरस की कुछ मात्रा फसल को गोबर की खाद से देें। गोबर की खाद का प्रयोग खेत की तैयारी के समय करते हैं। नाइट्रोजन व फास्फोरस की आधी मात्रा का प्रयोग अमोनियम सल्फेट और सुपर फास्फेट से करना बहुत अधिक लाभदायक है।

सिंचाई : अच्छी उपज लेने के लिए खेत में नमी पर्याप्त मात्रा में हो। विशेषत: शीतकाल में पाले से बचाने के लिये गर्मी मे सूखे से बचाने के लिये प्रति कटाई के बाद इसमें सिंचाई कर दें। हल्की भूमि में भारी भूमि की अपेक्षा सिंचाई जल्दी करें। वर्षा ऋतु में सिचाई की जरूरत नहीं होती हैं। ग्रीष्मकाल में 10-12 दिन और अन्य मौसम में 20-25 दिन में सिंचाई करें।

मिश्रित खेती व फसल चक्र : नेपियर घास में ऑक्जैलिक अम्ल की मात्रा अधिक होती हैं। ऑक्जैलिक अम्ल की मात्रा को कम करने के लिये इसके साथ दलहन फसल को मिश्रित रूप मे उगाते हैं। मिश्रित फसल में दो लाइन के बीच 2.0 मीटर का अंतर रखेें। रबी में बरसीम, लुर्सन, जापानी सरसों, मैथी, जई, सैंजी, जौ व मटर तथा गर्मियों में लोबिया व ग्वार इस फसल के साथ मिश्रित रूप में उगा सकते हैं।

निराई-गुड़ाई : बुआई के 15 दिन बाद अंधी गुड़ाई करें। प्रत्येक कटाई के करने के बाद देशी हल, कल्टीवेटर या फावड़े से निराई-गुड़ाई करते हैं जिससे खरपतवार नष्ट हो जाता हैं।

कटाई : सिंचाई एवं उर्वरता का उचित रूप से प्रयोग करने पर नेपियर घास की प्रथम कटाई बुआई के लगभग 70-80 दिन बाद करते हैं। फसल की अन्य कटाई 6-7 सप्ताह के अंतर से की जाती है। पौधे की कटाई भूमि की सतह से 8-10 सेमी ऊपर से करें। सामान्य अवस्था में प्रतिवर्ष लगभग 4-6 कटाई मिल जाती हैं। फसल को दो-तीन साल से अधिक समय तक एक खेत में नहीं रखें।

उपज : हरे चारे की उपज साधारणतया 1000 क्विंटल/हेक्टे. होती है। परंतु अच्छी फसल से 2500 क्विंटल/हेक्टे. उपज प्राप्त हो जाती है।

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