Crop Cultivation (फसल की खेती)

लौकी की उन्नत खेती मैं जैविक खाद का उपयोग

Share

लौकी की उन्नत खेती मैं जैविक खाद का उपयोग

 लौकी एक बहुपयोगी फसल है। इसके कच्चे फलों से सब्जियां,जूस व विभिन्न प्रकार की मिठाइयां तैयार की जाती हैं। लौकी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, आसाम, मेघालय और राजस्थान में की जाती है। इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिज लवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाये जाते हैं। स्वास्थ्यवद्र्धक लौकी किसान के लिए भी फायदेमंद है। किसान को कम लागत, कम समय में इस फसल से अधिक उत्पादन मिलता है। जैविक खेती से विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। साथ ही सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रसायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से कास्त लागत में कमी आती है। फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। मिट्टी की दृष्टि से भी जैविक खेती लाभप्रद है। जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है। भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती हैं और भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है। जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभकारी है इससे भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती हैं। मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होती है। किसान भाई रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, लौकी  से अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा।  

भूमि का चयन

अधिक अम्लीय व क्षारीय मिट्टी को छोड़कर सभी तरह की मिट्टी लौकी की खेती के लिए उपयुक्त हैं किन्तु उचित जलधारण क्षमता वाली जीवांश युक्त हलकी दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। उदासीन पीएच मान वाली भूमि इसके लिए अच्छी रहती है। नदियों के किनारे वाली भूमि भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त रहती है। भूमि में जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा के साथ-साथ जल निकास का भी उचित प्रबंध हो। किसान भाई मिट्टी जनित रोगों से बचाव के लिए एक ही खेत में लगातार लौकी नहीं उगायें।

 लौक़ी की उन्नत खेती के लिए उन्नत किस्में  

पूसा समर, प्रोलिफिक लम्बी, संकर पूसा मेघदूत, हिसार सेलेक्शन लम्बी , पंजाब लम्बी, पंजाब कोमल, कोयम्बटूर-1, अर्का बहार, पन्त संकर लौकी-1 (पीबीओजी 1), पूसा संकर-3ए, बीजीएलसी-21, नरेंद्र संकर लौकी-4, आजाद नूतन। गोल किस्में- पूसा समर प्रोलिफिक राउंड, संकर पूसा मंजरी, हिसार सिलेक्शन गोल, पूसा संदेश ।

बुवाई का समय 

ग्रीष्म कालीन फसल के लिए – जनवरी से मार्च, वर्षा कालीन फसल के लिए जून – जुलाई

बीज की मात्रा 

जनवरी – मार्च वाली फसल के लिए 4-6 किलो ग्राम हे., जून- जुलाई वाली फसल के लिए 3-4 किलो ग्रा.हे.

बुवाई 

सामान्यत: बरसात वाली फसल की बुवाई समतल खेत में 3 मीटर की दूरी पर लाईन बनाकर छोटे-छोटे थालों में करते हंै। एक थाले से दूसरे थाले की दूरी 60-70 सेमी. हो। गर्मी की फसल में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए बुवाई नालियों में करना अच्छा रहता है, इसके लिए 3 मीटर के फासले पर एक मीटर चौड़ी नाली बनाते हंै और इन्हीं नालियों के दोनों किनारों पर 70 सेमी की दूरी पर थाले बनाकर बीज की बुवाई कर देते हैं। एक थाले में 4-5 बीज हो। जायद में लौकी की अगेती फसल लेने के लिए लौकी के बीज को 100 गेज पॉलीथिन की 15&10 सेमी आकार की थैलियों में 1 भाग सड़ी गोबर की खाद व 1 भाग मिट्टी का मिश्रण भरकर बीज की बुवाई की जाती है। बोने से पूर्व 100 ग्राम बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा से शोधित कर लें। प्रत्येक पॉलीथिन बैग में पर्याप्त नमी के साथ 4-5 बीज 1.5 सेमी की गहराई पर बोयें। तत्पश्चात पॉलीथिन बैग को घास-फूंस की पलवार से ढक दें। बीज के अंकुरित होने पर पलवार को हटा दें और आवश्यकतानुसार प्रतिदिन सायंकाल फव्वारे से हल्की सिंचाई करते रहें। लौकी की पौध तैयार होने पर खेत में 3 मीटर चौड़ी आवश्यकतानुसार लम्बाई की क्यारियां बनाते हंै। तत्पश्चात मेढ़ के दोनों तरफ 60 सेमी की दूरी पर थाले बनाये जाते हैं। जिसमें लौकी बीज की बुवाई की जाती है। इन थालों की मिट्टी का अमृत पानी से भूमि शोधन करने से मृदा जनित फफूंदी रोगों की रोकथाम हो जाती है। पौधों को पाले से बचाने के लिए उत्तर पश्चिमी दिशा में फूस की बाड़ लगायें।

मुख्य खेत में बनाये गये थाले गड्ढों के बीच में लौकी की रोपाई फरवरी माह के अंत में अथवा मार्च माह प्रथम सप्ताह में जब पौध में दो पत्तियां पूर्ण रूप से विकसित हो जाये करें। ध्यान रखें कि रोपाई करते समय पॉलीथिन बैग को एक तरफ से चाकू की सहायता से काटकर पॉलीथिन को हटा दें। पॉलीथिन को अलग करने के पश्चात मिट्टी सहित पौधे की रोपाई कर दें। तत्पश्चात तुरंत ही खेत की सिंचाई कर दें।

सिंचाई

ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 4-6 दिन के अंतर से सिंचाई की आवश्यक होती है जबकि वर्षाकालीन फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता वर्षा न होने पर पड़ती है। ठंड में 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करें। फल के पूर्ण विकसित अवस्था में आवश्यकता पडऩे पर ही सिंचाई करें। फसल में कभी भी गहरी व अधिक सिंचाई न करें। पानी कभी भी फलों के संपर्क में नहीं आना चाहिए।

लौक़ी की फसल मैं खरपतवार नियंत्रण

लौकी की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते हैं उनकी रोकथाम के लिए लौकी की फसल में साधारणत: 2-3 निंदाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली निंदाई बुवाई रोपाई के लगभग 20-25 दिन बाद तथा दूसरी व तीसरी निंदाई-गुड़ाई क्रमश: 35-40 एवं 50-55 दिन बाद करें। यदि खेत में खरपतवार की संख्या अधिक है तो चौथी गुड़ाई 70-75 दिन बाद करें। जनवरी-मार्च वाली फसल में 2-3 बार और जून-जुलाई वाली फसल में 3-4 बार निराई करें।

लौकी की उन्नत खेती मैं जैविक खाद  का उपयोग

लौकी की अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद की पर्याप्त मात्रा हो इसके लिए खेत तैयार करते समय 200-220 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद अथवा 100-110 क्विंटल नाडेप कम्पोस्ट अथवा 70-80 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट प्रति एकड़ की दर से खेत में मिलायें। सड़ी गोबर की खाद अथवा खेत की मिट्टी में मिलाकर अंतिम जुताई के समय नमी की अवस्था में मिट्टी में मिला दें। पॉलीथिन बैग से खेत में बनाये गये गड्ढे थाले में पौध की रोपाई करने से पूर्व 3-4 किलो ग्राम सड़ी गोबर की खाद नाडेप कम्पोस्ट को गड्ढे की मिट्टी में मिलाकर पौध की रोपाई करें। गौ-मूत्र के 10 प्रतिशत घोल का पहला छिड़काव रोपाई सीधी बिजाई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरा छिड़काव 40-45 दिन पर करें। पहली निकाई-गुड़ाई के समय गड्ढों में पौधे के चारों तरफ जड़ों के पास 1 किलोग्राम प्रति गड्ढे की दर से नाडेप वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग करें। वर्मीवाश के 10 प्रतिशत घोल के 3 छिड़काव क्रमश: फूल आने से पहले दूसरा फल बनते समय एवं तीसरा छिड़काव फल विकसित होने की अवस्था में करने से लौक के फल बड़े, ठोस एवं चमकीले बनते हैं।

लौकी  की फसल और अधिक पैदावार लेने के लिए उसमें कम्पोस्ट खाद का होना बहुत जरुरी है इसके लिए एक हे. भूमि में लगभग 40-50 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद और 20 किलो ग्राम नीम की खली वजन और 30 किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर खेत में बुवाई के पहले इस खाद को समान मात्रा में बिखेर दें और फिर अच्छे तरीके से खेत की जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बुवाई करें।

और जब फसल 20-25 दिन की हो जाए तब उसमें नीम का काढ़ा और गौमूत्र लीटर मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और हर 10-15 दिन के अंतर पर छिड़कें।

  • डॉ. प्रियंका कुमावत,सहायक प्राध्यापक, 

एस.के. एन. कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर (राज.)
priyanka91_agri@rediffmail.com

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *