सदाबहार आलू की खेती
30 सितम्बर 2024, भोपाल: सदाबहार आलू की खेती – भारत में धान, गेहूं, गन्ना के बाद क्षेत्रफल में आलू का चौथा स्थान है। आलू एक ऐसी फसल है जिससे प्रति इकाई क्षेत्रफल में अन्य फसलों (गेहूं, धान एवं मूंगफली) की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है तथा प्रति हेक्टर आय भी अधिक मिलती है।
भूमि एवं भूमि प्रबंध
आलू की फसल विभिन्न प्रकार की भूमि, जिसका पी.एच. मान 6 से 8 के मध्य हो, उगाई जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट तथा दोमट उचित जल निकास की भूमि उपयुक्त होती है। 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाने से ढेले टूट जाते हैं तथा नमी सुरक्षित रहती है। वर्तमान में रोटावेटर से भी खेत की तैयारी शीघ्र व अच्छी हो जाती है। आलू की अच्छी फसल के लिए बोने से पहले पलेवा करें।
जैविक खाद
यदि हरी खाद का प्रयोग न किया हो तो 15-30 टन प्रति हे. सड़ी गोबर की खाद प्रयोग करने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जो कन्दों की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है।
खाद तथा उर्वरक प्रबंध
सामान्य तौर पर 180 किग्रा नत्रजन, 80 किग्रा फास्फोरस तथा 100 किग्रा पोटाश की संस्तुति की जाती है। मिट्टी विश्लेषण के आधार पर यह मात्रा घट-बढ़ सकती है। मिट्टी परीक्षण की संस्तुति के अनुसार अथवा 25 किग्रा जिंक सल्फेट एवं 50 किग्रा फेरस सल्फेट प्रति हे. की दर से बुआई से पहले कम वाले क्षेत्रों में प्रयोग करें तथा आवश्यक जिंक सल्फेट का छिड़काव भी किया जा सकता है।
बुआई समय
25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड दिन का तापमान आलू की वानस्पतिक वृद्धि और 15-20 डिग्री सेंटीग्रेड आलू कन्दों की बढ़वार के लिए उपयुक्त होता है। सामान्यत: अगेती फसल की बुआई मध्य सितम्बर से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक, मुख्य फसल की बुआई मध्य अक्टूबर के बाद करें।
बीज की बुआई
यदि भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो, पलेवा करना आवश्यक होता है। बीज आकार के आलू कन्दों को कूडों में बोया जाता है तथा मिट्टी से ढंककर हल्की मेड़ें बना दी जाती हैं। आलू की बुआई पोटेटो प्लान्टर से किये जाने से समय, श्रम व धन की बचत की जा सकती है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार को नष्ट करने के लिए निराई-गुड़ाई आवश्यक है।
सिंचाई प्रबंध
पौधों की उचित वृद्धि एवं विकास तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है। यदि आलू की बुआई से पूर्व पलेवा नहीं किया गया है तो बुआई के 2-3 दिन के अन्दर हल्की सिंचाई करना अनिवार्य है। भूमि में नमी 15-30 प्रतिशत तक कम हो जाने पर सिंचाई करें। अच्छी फसल के लिए अंकुरण से पूर्व बलुई दोमट व दोमट मृदाओं में बुआई के 8-10 दिन बाद तथ भारी मृदाओं में 10-12 दिन बाद पहली सिंचाई करें। अगर तापमान के अत्यधिक कम होने और पाला पडऩे की संभावना हो तो फसल में सिंचाई अवश्य करें। आधुनिक सिंचाई पद्धति जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिप से पानी के उपयोग की क्षमता में वृद्धि होती है। कूँड़ों में सिंचाई की अपेक्षा स्प्रिंकलर प्रणाली से 40 प्रतिशत तथा ड्रिप प्रणाली से 50 प्रतिशत पानी की बचत होती है और पैदावार में भी 10-20 प्रतिशत वृद्धि होती है।
खुदाई
अगेती फसल से अच्छा मूल्य प्राप्त करने के लिए बुआई के 60-70 दिनों के उपरान्त कच्ची फसल की अवस्था में आलू की खुदाई की जा सकती है। फसल पकने पर आलू खुदाई का उत्तम समय मध्य फरवरी से मार्च द्वितीय सप्ताह तक है। 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान आने से पूर्व ही खुदाई पूर्ण कर लें।
भण्डारण
आलू की सुषुप्ता अवधि भण्डारण को निर्धारित करती है। भिन्न-भिन्न प्रजातियों के आलू की सुषुप्ता अवधि भिन्न-भिन्न होती है, जो आलू खुदाई के बाद 6-10 सप्ताह तक होती है। यदि आलू को बाजार में शीघ्र भेजना है तो शीतगृह में भण्डारित करने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए कच्चे हवादार मकानों, छायादार स्थानों में आलू को स्टोर किया जा सकता है। केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला में थोड़ी अवधि के भण्डारण के लिए जीरो एनर्जी कूल स्टोर का डिजाइन विकसित किया है, जिसमें 70-75 दिनों तक आलू को भण्डारित रख सकते हैं।
आलू की किस्म एवं पकने की अवधि | |
प्रजाति परिपक्वता अवधि (दिवस में) | |
अगेती फसल | |
चन्द्रमुखी | 80-90 |
पुखराज | 60-75 |
सूर्या | 60-75 |
ख्याति | 60-75 |
अलंकार | 65-70 |
बहार 3792ई. | 90-110 |
अशोका पी.376जे. | 60-75 |
जे.एफ.-5106 | 75-80 |
मुख्य फसल | |
नवताल जी. 2524 | 90-110 |
बहार 3792ई. | 90-110 |
आनन्द | 90-110 |
बादशाह | 90-110 |
सिन्दूरी | 90-110 |
सतलुज जे.-5857 | 90-110 |
लालिमा | 90-110 |
अरूण | 90-110 |
सदाबहार | 90-110 |
पुखराज | 90-110 |
अगेती फसल | |
सतलुज जे.-5857 | 110-120 |
बादशाह | 110-120 |
आनन्द | 110-120 |
प्रसंस्करण योग्य प्रजातियाँ | |
सूर्या | 100-120 |
चिप्सोना-1 | 100-120 |
चिप्सोना-3 | 100-120 |
चिप्सोना-4 | 100-120 |
फ्राईसोना | 100-120 |
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