दलहनी फसलों मेें सिंचाई
चना प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि बुआई के 45 दिन (फूल आने के पहले) या 75 दिन के बाद एक सिंचाई करने से चने की उपज 30 से 35 प्रतिशत अधिक होती है। अगर रबी मौसम में सर्दियों
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंनवीनतम फसल की खेती (Crop Cultivation) की जानकारी और कृषि पद्धतियों में नवाचार, बुआई का समय, बीज उपचार, खरपतवार नियन्तारन, रोग नियन्तारन, कीटो और संक्रमण से सुरक्षा, बीमरियो का नियन्तारन। गेहू, चना, मूंग, सोयाबीन, धान, मक्का, आलू, कपास, जीरा, अनार, केला, प्याज़, टमाटर की फसल की खेती (Crop Cultivation) की जानकारी और नई किस्मे। गेहू, चना, मूंग, सोयाबीन, धान, मक्का, आलू, कपास, जीरा, अनार, केला, प्याज़, टमाटर की फसल में कीट नियंतरण एवं रोग नियंतरण। सोयाबीन में बीज उपचार कैसे करे, गेहूँ मैं बीज उपचार कैसे करे, धान मैं बीज उपचार कैसे करे, प्याज मैं बीज उपचार कैसे करे, बीज उपचार का सही तरीका। मशरुम की खेती, जिमीकंद की खेती, प्याज़ की उपज कैसे बढ़ाए, औषदि फसलों की खेती, जुकिनी की खेती, ड्रैगन फ्रूट की खेती, बैंगन की खेती, भिंडी की खेती, टमाटर की खेती, गर्मी में मूंग की खेती, आम की खेती, नीबू की खेती, अमरुद की खेती, पूसा अरहर 16 अरहर क़िस्म, स्ट्रॉबेरी की खेती, पपीते की खेती, मटर की खेती, शक्ति वर्धक हाइब्रिड सीड्स, लहसुन की खेती। मूंग के प्रमुख कीट एवं रोकथाम, सरसों की स्टार 10-15 किस्म स्टार एग्रीसीड्स, अफीम की खेती, अफीम का पत्ता कैसे मिलता है?
चना प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि बुआई के 45 दिन (फूल आने के पहले) या 75 दिन के बाद एक सिंचाई करने से चने की उपज 30 से 35 प्रतिशत अधिक होती है। अगर रबी मौसम में सर्दियों
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंपौधों के लिये जल की आवश्यकता – छोटे बढ़ते हुए पौधों में 85 से 90 प्रतिशत भाग केवल जल ही होता है। जल ही पौधों को कोशिकाओं में विद्यमान जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) का एक आवश्यक अंग है। जीव द्रव्य में जल
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंमनुस्मृति में कहा गया है – अक्षेत्रे बीजमुत्सृष्टमन्तरैव विनश्यति। अबीजकमपि क्षेत्रं केवलं स्थण्डिलं भवत्।। सुबीजम् सुक्षेत्रे जायते संवर्धते उपरोक्त श्लोक द्वारा स्पष्ट किया गया है कि अनुपयुक्त भूमि में बीज बोने से बीज नष्ट हो जाते हैं
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंआलू का अगेती अंगमारी रोग यह रोग आल्टनेरिया सोलेनाइ नामक फफूंद से उत्पन्न होता है। हर वर्ष लगभग सभी खेतों में थोड़े से अधिक मात्रा में पाया जाता है। अधिक प्रकोप हो जाने पर फसल की उपज में 50 –
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंभोपाल। खरीफ फसलों में सर्वोच्च सोयाबीन पर कृषकों का कम रुझान हो गया है। सीजन में सोयाबीन उड़द, मक्का, मूंग, धान फसलों के उत्पादन में उड़द की भरपूर आवक मण्डी में देखी गई। पिछले वर्ष खरीफ में उड़द 1.94 क्विं.
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंउपयुक्त जलवायु क्षेत्र गेहूँ मुख्यत: एक ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की फसल है अत: फसल बोने के समय 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड से बढ़वार के समय इष्टतम ताप 25 डिग्री सेंटीग्रेड से तथा पकने के समय 14 से 15
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंरबी मौसम कृषि कार्य योजना बनाकर सभी कार्य समय पर कर सकते हैं। जिसमें बुआई, सिंचाई, जल निकास, खरपतवार प्रबंधन, अन्तरशस्य क्रियायें, मिट्टी चढ़ाना, खाद/उर्वरक देना तथा सूर्य प्रकाश की उपलब्धता का होना, जिससे पौधों के बढ़वार में पूरी अनुकूलता
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंभूमि का चुनाव एवं तैयारी – मसूर सभी प्रकार की भूमि में उगार्ई जा सकती है। किन्तु दोमट और भारी भूमि इसके लिये अधिक उपयुक्त है। भूमि का पी.एच. मान 6.5 से 7.0 के बीच होना चाहये तथा जल निकास
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंके.जे. एजुकेशन सोसायटी की टीम को जैसीनगर ब्लॉक के ग्राम सींगना के कृषक प्रेम सिंह लोधी ने बताया कि विगत वर्ष सोसायटी द्वारा हमारे खेत में प्याज का प्रदर्शन लगवाया था जिसकी बेहद अच्छी पैदावार हुई थी बाद में अन्तर्राज्यीय
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करेंभूमि एवं भूमि की तैयारी:- जलनिकास युक्त बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। भूमि की तैयारी के लिये भूमि को अच्छी तरह 3-4 जुताई करके पाटे की सहायता से समतल एवं भुरभुरी बना लेना चाहिये। अफ्रीकन गेंदा:- इस प्रजाति के
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