पशुपालन (Animal Husbandry)

मुर्गी पालन से अधिक लाभ

  • श्री डी.पी. सिंह, श्री अवधेष कुमार पटेल
    डॉ. शैलेन्द्र सिंह गौतम
    जवाहरलाल नेहरु कृषि विवि.,
    कृषि विज्ञान केन्द्र, डिण्डौरी

6 सितम्बर 2021, मुर्गी पालन से अधिक लाभ – भारत जैसे विकासशील देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। यहां के निवासियों का जीवन स्तर शहरों में रहने वालों की तुलना में अपेक्षाकृत समृद्ध नहीं है। विगत वर्षो में भारत सरकार ने कुक्कुट पालन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुधारने का एक उत्तम साधन मानते हुए इसके विकास हेतु अनेक प्रयास किये है। आज मुर्गीपालन एक दृढ़ उद्योग का रूप ले चुका है। वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे अनुसंधानों से विकसित नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने से मुर्गीपालन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई है।

नस्ल का चुनाव

वास्तव में पारम्परिक कुक्कुट पालन की भारत में अधिक प्रांसगिकता है। इस पद्धति से मुर्गी पालन के लिए उपलब्ध 11 प्रजातियों में कडक़नाथ, नर्मदा निधि वनराजा, ग्रामप्रिया, कृष्णा जे, नन्दनम-ग्रामलक्ष्मी प्रमुख है। देशी प्रजाति के पक्षियों की वृद्धि दर व उत्पादन कम होने की वजह से इनकी लोकप्रियता घटती गई। हाल ही में केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर, बरेली में देशी और उन्नत नस्ल की विदेशी प्रजाति की मुर्गियों को मिलाकर कुछ संकर प्रजातियॉ विकसित की गई है। इनमें कैरी श्यामा, कैरी निर्भीक, हितकारी एवं उपकारी प्रमुख है। ये प्रजातियां भारत के वातावरण एवं परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम साबित हुई है और इनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 180-200 अंडे की है।

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आहार व्यवस्था

अच्छा उत्पादन एवं अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये कुक्कुट पालकों को मुर्गियों के आहार पर ध्यान देना चाहिए। प्राय: देखा गया है कि किसी विशेष मौसम में उत्पादित होने वाला एक विशेष प्रकार का अनाज ही मुर्गियों को खिलाया जाता है, जिससे पक्षियों को आवश्यक पोषक तत्व उचित मात्रा में प्राप्त नही होते है। अत: पक्षियों को वर्ष के दौरान पैदा होने वाले अनाजों को मिश्रित करके खिलाना चाहिए। यदि सम्भव हो तो सम्पूर्ण आहार के रूप में उन्हें प्रोटीन, खनिज लवण व विटामिन भी दे।

प्रजनन व्यवस्था

प्राय: ऐसा देखा जाता है, कि एक बार मुर्गी खरीदने के बाद एक झुंड में उन्हीं से बार-बार प्रजनन करवाया जाता है, जिससे इन ब्रीडिंग (अन्त: प्रजनन) के दुष्प्रभाव सामने आते है। इससे अण्डों की संख्या निषेचन एवं प्रस्फुटन में कमी आती है तथा बच्चों की मृत्यु दर बढ़ती है। अत: इन्हें प्रतिवर्ष बदल देना चाहिए।
मुर्गियों की सुरक्षा के आवश्यक उपाय: बीमारियों से बचाव के सम्बन्ध में जानकारी रखना प्रत्येक मुर्गी पालक के लिए आवश्यक हो जाता है।

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  • मुर्गियों के आवास का द्वार पूर्व या दक्षिण पूर्व की ओर होना अधिक ठीक रहता है जिससे तेज चलने वाली पिछवा हवा सीधी आवास में न आ सके।
  • आवास के सामने छायादार वृक्ष लगवा दे ताकि मुर्गियों को छाया मिल सके।
  • मुर्गियों का बचाव हिंसक प्राणी कुत्ते, गीदड़, बिलाव, चील आदि से करना चाहिए।
  • आवास का आकार बड़ा हो ताकि उसमें पर्याप्त शुद्ध हवा पहुँच सके और सीलन न रहे।
  • मुर्गियाँ समय पर चारा चुग सकें इसलिए बड़े-बड़े टोकरे बनाकर रख लेने चाहिए।
  • कुछ व्याधियाँ मुर्गियों में बड़े वर्ग से फैलकर भंयकर प्रभाव दिखाती है जिसमें वे बहुत बड़ी संख्या में मर जाती है। अत: बीमार मुर्गियों को अलग कर देना चाहिए। उनमें वैक्सीन का टीका लगवा देना चाहिए।
  • मुर्गी फार्म की मिट्टी समय-समय पर बदलते रह और जिस स्थान पर रोगी कीटाणुओं की संभावना हो वहॉं से मुर्गियों को हटा दे।
  • एक मुर्गी फार्म से दूसरे मुर्गी फार्म में दूरी रहनी चाहिए।\
  • मुर्गियॉ खरीदते समय उनका उचित डॉक्टरी परिक्षण करा लेना चाहिए तथा नई मुर्गियों को कुछ दिनों तक अलग रखकर यह निश्चय कर लेना चाहिए कि वह किसी रोग से ग्रस्त तो नहीं है।
  • पूर्ण सावधानी बरतने पर भी कुछ रोग हो ही जाये तो रोगानुसार चिकित्सा करें।
रोगों से बचाव एवं रोकथाम

मुर्गियों को विभिन्न प्रकार से संक्रामक रोगों से बचाने के लिए कुक्कुट पालकों को मुर्गियों में टीकाकरण अवश्य करा देना चाहिए। जहां तक संभव हो एक गांव या क्षेत्र के सभी कुक्कुट पालाकों को एक साथ टीकाकरण करवाने का प्रबन्ध करना चाहिए, इससे टीकाकरण की लागत में कमी आती है। बर्ड फलू जैसी भयानक बीमारीयों से बचने के लिए मुर्गीयों को बाहरी पक्षियों/पशुओं के संपर्क से बचाना चाहिए। इस प्रकार आधुनिक तकनीक अपनाकर पारम्परिक ढंग से मुर्गी पालन कर ग्रामीण परिवारों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है।

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