ट्रैक्टर से खेती और आत्मनिर्भरता तक: परमहजीत कौर की मिसाल
29 सितम्बर 2025, सीतापुर: ट्रैक्टर से खेती और आत्मनिर्भरता तक: परमहजीत कौर की मिसाल – करीब 40 साल की उम्र तक परमहजीत कौर ने कभी साइकिल तक नहीं चलाई थी। उनका जीवन घर-परिवार तक ही सीमित था। लेकिन साल 2015 ने उनकी ज़िंदगी को पूरी तरह बदल दिया। उसी साल उनके पति धरमपाल का निधन हो गया और परमहजीत के सामने बड़ा सवाल खड़ा हो गया—90 एकड़ ज़मीन की देखभाल कौन करेगा?
परिवार और रिश्तेदारों ने सलाह दी कि ज़मीन बेचकर वह पंजाब लौट जाएँ। लेकिन परमहजीत को यह मंज़ूर नहीं था। खेतों में दिन-रात पसीना बहाते अपने पति की तस्वीरें उनकी आँखों के सामने थीं। धरमपाल का सबसे प्रिय साथी उनका सवराज ट्रैक्टर था, जिसे उन्होंने 2002 में खरीदा था। बाद में उन्होंने 2007 और 2014 में दो और ट्रैक्टर लिए। परमहजीत कहती हैं— “मैं इस सवराज को कभी नहीं बेचूँगी। यह मेरे पति की याद और मेरे लिए उनकी निशानी है। इसी के साथ उनकी आत्मा बसती है।”
पति के जाने के बाद 50 वर्ष की आयु में परमहजीत ने वही किया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। उन्होंने खुद ट्रैक्टर का स्टीयरिंग संभाला। शुरुआत मुश्किल थी लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने ट्रैक्टर चलाना सीखा और खेतों की बागडोर अपने हाथ में ले ली।
आज परमहजीत न सिर्फ़ खेती संभाल रही हैं बल्कि उसे आगे भी बढ़ा रही हैं। उन्होंने गन्ने की पौध का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया। पहली बार 50,000 गांठें बोईं, जिनमें से 30,000 की बिक्री हुई। इसके बाद उन्होंने एक लाख पौधों की नर्सरी तैयार की और अच्छा मुनाफ़ा कमाया। इस सफलता ने उन्हें और मज़बूत बना दिया।
परमहजीत ने पति की बीमारी के समय लिए गए कर्ज़ को चुकता किया और खेती में निवेश किया। उन्होंने एक कृषि उपकरण बैंक बनाया, जिससे आसपास के किसानों को भी मदद मिली। इसके साथ ही उन्होंने स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) बनाए और दो दर्जन से अधिक महिलाओं को इस कारोबार से जोड़ा। आज ये महिलाएँ आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और अपने परिवार की आर्थिक रीढ़ बनी हुई हैं।
परमहजीत कौर की कहानी सिर्फ़ खेती तक सीमित नहीं है। यह साहस, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की मिसाल है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि इरादे मज़बूत हों तो कोई भी कठिनाई इंसान को रोक नहीं सकती। धरमपाल का सपना आज परमहजीत के हाथों और उनके ट्रैक्टर के स्टीयरिंग से नई दिशा पा रहा है।
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