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सोयाबीन से अधिक उपज के लिए 60 दिन तक खरपतवारों से बचायें

– डॉ. एस.डी. बिल्लौरे – डॉ. बी.यू. दुपारे
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इन्दौर

सोयाबीन की खेती में मुख्य रूप से खरपतवार, कीट व रोगों के प्रकोप से उत्पादन में कमी आती है, जिनमें अधिकतम 35 से 70 प्रतिशत तक हानि केवल खरपतवारों के कारण होती है। खरपतवार नैसर्गिक संसाधन जैसे प्रकाश, मृदा, जल, वायु के साथ-साथ पोषक तत्व इत्यादि के लिये भी फसल से प्रतिस्पर्धा कर उपज में भारी कमी लाते हैं। खरपतवार का प्रकार, सघनता तथा इनकी आयु फसल के उत्पादन में नुकसान करने की क्षमता निर्धारित करती है। प्राय: यह देखा गया है कि खेत में फसल के लिये उपयोगी उर्वरकों का 20 से 50 प्रतिशत तक हिस्सा खरपतवारों द्वारा अवशोषित किया जाता है।

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सोयाबीन फसल में प्रमुख रूप से दो प्रकार के खरपतवार पाये जाते हैं –

(1) सकरी पत्ती वाले/एक बीज पत्रीय खरपतवार जैसे

  • (1) बन्दरा-बन्दरी,
  • (2) छोटा चिकिया,
  • (3) खेतपपरा,
  • (4) दूब,
  • (5) धान भाजी,
  • (6) सॉवा घास,
  • (7) क्रेब घास,
  • (8) कारना घास,
  • (9) कांस,
  • (10) दिवालिया,
  • (11) बोकना/कनकउआ,
  • (12) मकरा,
  • (13) पेरा घास,
  • (14) मोथा आदि।

(2) चौड़ी पत्ती वाले (द्विबीज पत्रीय) खरपतवार जैसे

  • (1) बड़ी एवं छोटी दूधी,
  • (2) जंगली चौलाई,
  • (3) सफेद मुर्ग,
  • (4) राममुनीया,
  • (5) कुप्पी,
  • (6) हजारदाना,
  • (7) छोटी एवं बड़ी लुनीया,
  • (8) जंगली जूट एवं सन,
  • (9) भंगरा,
  • (10) ग्राउण्डचेरी,
  • (11) सेसुलिया आदि।

उत्पादन में होने वाली कमी के बचाव हेतु सोयाबीन की फसल को बोनी के 60 दिन तक खरपतवारों से अवश्य बचाना चाहिए। इस समय फसल का विकास कम गति से होता है तथा सोयाबीन की फसल में प्राय: पाये जाने वाले सकरी पत्ती वाले खरपतवार, अधिक प्रतिस्पर्धी होते हैं। अत: सोयाबीन की अच्छी पैदावार लेने के लिये इनका समेकित प्रबंधन आवश्यक है जो कि मुख्यत: निम्न दो विधियों द्वारा किया जा सकता है।

यांत्रिक विधियां (श्रमिकों से निंदाई एवं डोरा)

सोयाबीन की फसल में 20-25 तथा 40-45 दिनों पर दो बार निंदाई करना आवश्यक है। सुविधानुसार फसल में डोरा/कुल्पा का उपयोग बुवाई से 30 दिन से पहले करना चाहिये। उपयोग के समय यह सावधानी रखनी चाहिये कि पौधे/ पौधे की जड़ों को किसी प्रकार की हानि ना हो।

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खरपतवारनाशक रसायन का उपयोग

कई बार लगातार वर्षा होने से खरपतवार का यांत्रिक नियंत्रण संभव ही नहीं हो पाता है। ऐसी परिस्थितियों में खरपतवारनाशकों का प्रयोग उपयुक्त होगा। अपने खेत में पाये गये खरपतवार का प्रकार एवं उनकी सघनता के आकलन के आधार पर उपयुक्त रसायन का चयन करें। पूरे खेत में समान रूप से छिड़काव करना होना आवश्यक है। अत: अनुशंसित खरपतवारनाशक की मात्रा का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव यंत्र में ‘फ्लेट फेन या फ्लेट जेट’ नोजल लगाकर नमीयुक्त भूमि पर ही छिड़काव करना चाहिए। सोयाबीन की फसल हेतु अनुशंसित खरपतवारनाशक रसायनों में से किसी एक का उपयोग करें (तालिका)। यह सलाह भी दी जाती है कि एक ही खरपतवारनाशक का प्रयोग बार-बार न करें।

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समेकित खरपतवार प्रबंधन

निरंतर उत्पादन, जैव विविधता एवं वातावरण दूषित होने के खतरे को ध्यान में रखते हुए अनुशंसित विभिन्न विधियों के माध्यम से समेकित खरपतवार प्रबंधन को अपनाकर उत्पादन में निरंतरता हेतु प्रयास करें।

  •  रबी फसल की कटाई के पश्चात/गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करें। यदि यह प्रत्येक वर्ष संभव न हो, दो या तीन वर्ष के अंतराल में यह क्रिया आवश्यक रुप से करें। इससे कीट, रोग एवं खरपतवारों के अवशेष भूमि की सतह पर आते हंै जो कि गर्मी की कड़ी धूप लगने से निष्क्रिय हो सकते हैं।
  •  सोयाबीन की बोवनी से पहले खेत में एक बार बक्खर अवश्य चलाना चाहिए। इस क्रिया के दौरान अनुशंसित उर्वरक व कीटनाशक डाले जा सकते हैं।
  •  बोवनी पूर्व एवं बोवनी के तुरन्त बाद उपयोगी खरपतवारनाशक दवा के छिड़काव करने पर सोयाबीन की फसल में 20-25 दिन के बीच एक बार डोरा अवश्य चलाएं।
  •  सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के लिये, फसल-चक्र/अंतरवर्तीय फसल अवश्य अपनाना चाहिये। एक ही खेत में लगातार सोयाबीन नहीं लेनी चाहिए।
  •  उपर्युक्त विधियों से खरपतवार नियंत्रण अपनाने पर सोयाबीन में खरपतवार से होने वाली उपज में कमी को रोका जा सकता है। उचित खरपतवार प्रबंधन से आगामी मौसम में खरपतवार तो कम होंगे ही साथ में फसल पर कीट तथा रोग का प्रकोप भी कम होगा।
सोयाबीन की फसल में अनुशंसित खरपतवारनाशक
खरपतवारनाशक रसायनिक नाम व्यापारिक नाम मात्रा/हेक्टे.
बोवनी पूर्व उपयोगी ट्राईफ्लूरोलीन ट्रेफलान, त्रिनेत्र, 2.00 ली.
(पीपीआई) तूफान, फ्लोरा
बोवनी के तुरन्त बाद पेण्डीमिथालीन स्टॉम्प, पनीडा 3.25 ली.
उपयोगी (पीई) डायक्लोसुलम स्ट्रांग आर्म 26 ग्राम
बोवनी के 10-12 दिन बाद क्लोरीम्मयुरान इथाइल क्लोबेन, क्यूरीन 36 ग्राम
(पीओई)
बोवनी के 15-20 दिन बाद इमेझेथायपर परस्यूट 1.00 ली.
(पीओई) क्विजालोफाप इथाइल टरगा सुपर 1.00 ली.
क्विजालोफाप-पी’ टेफ्युरील रेन्गो 1.00 ली.
फेनाक्सीफाप-पी- इथाईल व्हिप सुपर 0.75 ली.

खरपतवार नियंत्रण के लिये आवश्यक सावधानियां:

  •  खरपतवारनाशी के उपयोग का पूर्ण लाभ लेने के लिये अनुमोदित पानी की मात्रा (500 लीटर / हेक्टेयर) का ही उपयोग करना चाहिए। स्वच्छ पानी का ही उपयोग करें।
  • अनुमोदित नोजल (फ्लेट फेन या फ्लेट जेट) का ही उपयोग करना चाहिए।
  • खरपतवारनाशक का उपयोग नम एवं भुरभुरी भूमि पर ही करना चाहिए।
  • पूर्ण क्षेत्र में समान रूप से छिड़काव करना चाहिए।
  • एक ही खरपतवारनाशक का बार-बार उपयोग न करें। प्रत्येक बार नये रसायन का उपयोग करना चाहिए अर्थात् रसायन-चक्र अपनाना चाहिए।
  • केवल अनुमोदित खरपतवारनाशक का ही उपयोग करना चाहिए।
  • उपयोग में आने वाली तिथि के पहले ही खरपतवारनाशक का उपयोग करें ।
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