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तिगुना होगा जैविक उत्पादों का बाजार

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अगले 3 वर्ष में

(सुनील गंगराड़े)

भारत का जैविक खाद्य बाजार 25 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और वर्ष 2020 तक ये 12,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा छू सकता है। वर्तमान में बाजार का आकार लगभग 4 हजार करोड़ रु. है। यह दावा एसोचैम द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में किया गया है।

हालांकि भारत में आंकड़ों के मुताबिक केवल 8 लाख 35 हजार जैविक खेती करने वाले किसान हैं, इसके बावजूद विश्व के जैविक बाजार में हमारी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से भी कम है। वैश्विक जैविक उत्पादों का बाजार वर्ष 2016 में 90 बिलियन अमरीकी डॉलर का था। रिपोर्ट के मुताबिक देश में जैविक खेती का कुल रकबा लगभग 15 लाख हेक्टेयर है जबकि ऑस्ट्रेलिया में ढाई करोड़ हेक्टेयर से अधिक में जैविक खेती हो रही है।
जैविक खेती में म.प्र. आगे
जैविक खेती के क्षेत्र में म.प्र. निरन्तर आगे बढ़ रहा है। अब तक लगभग 2 लाख हेक्टेयर से अधिक प्रमाणीकृत क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है तथा उत्पादन लगभग 4 लाख टन से अधिक होने का अनुमान है। प्रदेश में लगभग 28 हजार किसान जैविक खेती में पंजीकृत हैं। वर्ष 2006-07 में राज्य में जैविक खेती 1.60 लाख हेक्टेयर में होती थी इसमें लगभग 40 हजार हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। म.प्र. देश में जैविक खेती के उत्पादन में लगभग 40 फीसदी योगदान देता है जो देश में सबसे अधिक है।
जैविक बाजार की चुनौतियां
जैविक उत्पादों के बाजार की सबसे अहम चुनौती, उनकी विश्वसनीयता है। ग्राहकों को फल, सब्जियों, अनाज के जैविक होने पर संदेह रहता है और इसके प्रमाणीकरण की प्रक्रिया अधिक जटिल है। रसायनिक खेती से जैविक खेती के प्रमाणीकरण में 3 से 4 वर्ष लगते हैं और इस प्रक्रिया की कीमत भी तगड़ी होती है।
हालांकि इस क्षेत्र की 25-30 फीसदी वृद्धि के अनुमानों के बावजूद भारतीय कृषि विशेषज्ञ भविष्य में वृद्धि की निरंतरता को लेकर संशय रखते हैं। इसकी वजह लोगों में जैविक कृषि को लेकर जागरुकता का अभाव होना है। हालांकि केन्द्र सरकार ने पिछले कुछ समय से भारत में जैविक कृषि पर ध्यान दिया है, लेकिन जैविक कृषि से जुड़े किसानों को भी अब भी राज्य सरकारों से प्रोत्साहन की दरकार है।
एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि सरकारी सहयोग की कमी, किसानों में अजैविक भूमि को जैविक में तब्दील करने की इच्छाशक्ति के अभाव और किसानों के मार्गदर्शन के लिए मान्यता प्राप्त विश्वस्तरीय परामर्श प्रदाता की कमी के चलते भारत में जैविक कृषि का भविष्य और किस्मत अधर में है। ऐसे में किसानों को उच्च उत्पादकता हासिल करने के लिए राज्य और केन्द्र सरकारों के पूर्ण सहयोग की आवश्यकता है।
सिक्किम में उत्पादन घटा
हालांकि तमाम राज्य सरकारों द्वारा क्षेत्र में कई प्रयास किए गए हैं लेकिन कोई खास उत्साहवर्धक नतीजे प्राप्त नहीं हुए। सिक्किम देश का पहला राज्य था जिसने 90 के दशक के शुरुआती वर्षों में 100 फीसदी जैविक कृषि नीति को अपना लिया था लेकिन एक दशक के भीतर ही राज्य ने कृषि उत्पादन में कमी दर्ज की। वर्ष 1995-96 में जो उत्पादन स्तर 134,000 टन था वह वर्ष 2013-14 तक घटकर 102200 टन पर पहुंच गया। आगे भी तकरीबन 1 लाख टन की कमी आ सकती है। वर्तमान में पंजाब के भीतर जैविक खेती के अंतर्गत प्रमाणित क्षेत्र में केवल 2000 एकड़ जमीन होने का अनुमान है। हालांकि यह 3000 एकड़ भूमि के उस लक्ष्य से कम है जिसे एक साल पहले राज्य सरकार द्वारा घोषित किया गया था।
जैविक खाद्य वस्तुएं रसायन और उर्वरक के इस्तेमाल से तैयार खाद्य वस्तुओं की अपेक्षा 10 गुना अधिक गुण और पोषक तत्व वाली होती हैं लेकिन जैविक खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित करना आज एक बड़ी चुनौती है। देश की बढ़ती जनसंख्या के बीच सभी को जैविक खाद्य पदार्थ मुहैया कराया नहीं जा सकता। भारत ने हरित क्रांति को अपनाया और उर्वरक और रसायनों के बेहतर इस्तेमाल के देश के अनाज उत्पादन में वृद्धि की और आज खाद्यान्न के स्तर पर देश आत्मनिर्भर है।

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