Uncategorized

मूँग में कीट व रोग नियंत्रण

मुख्य कीट :
कातरा :
कातरा का प्रकोप विशेष रूप से दलहनी फसलों में बहुत होता है। इस कीट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचाती है। इसके नियंत्रण हेतु खेत के आसपास कचरा नहीं होना चाहिये। कतरे की लटों पर क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव कर देें।

मुख्य रोग – चित्ती जीवाणु रोग
इस रोग के लक्षण पत्तियों, तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देते है। इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसिन 200 ग्राम या स्ट्रेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
पीत शिरा मोजेक रोग
इस रोग के लक्षण फसल की पतियों पर एक महीने के अंतर्गत दिखाई देने लगते हैं। फैले हुए पीले धब्बों के रूप में रोग दिखाई देता है। यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता है। इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल डिमेटान 0.25 प्रतिशत व मेलाथियान 0.1 प्रतिशत मात्रा को मिलाकर प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करना काफी प्रभावी होता है।
तना झुलसा रोग-
इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।
पीलिया रोग
इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतु गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चाहिये।
सरकोस्पोरा पती धब्बा
इस रोग के कारण पौधों के ऊपर छोटे गोल बैगनी लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां, जड़ें व अन्य भाग भी सूखने लगते हैं। इस के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की 1 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चहिये बीज को 3 ग्राम केप्टान या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाइये
किंकल विषाणु रोग
इस रोग के कारण पोधे की पत्तियां सिकुड़ कर इक_ी हो जाती है तथा पौधो पर फलियां बहुत ही कम बनती हैं। इसकी रोकथाम हेतु डाइमिथिएट 30 ई.सी. आधा लीटर अथवा मिथाइल डिमेटॉन 25 ई.सी. 750 मि.ली. प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। जरूरत पडऩे पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चहिये।
जीवाणु पत्ती धब्बा, फफूंदी पत्ती धब्बा और विषाणु रोग
इन रोगों की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान 25 ई.सी.की एक मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये।

मोयला सफेद मक्खी एवं हरा तेला –
ये सभी कीट मूंग की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। इनकी रोकथाम के किये मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए आवश्यकतानुसार दोबारा छिड़काव किया जा सकता है।

Advertisement
Advertisement
दलहनी फसलों में मूंग की बहुमुंखी भूमिका है, इसमे प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है, जो की स्वास्थ के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, मूँग के दानों में 25 प्रतिशत प्रोटीन, 60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 13 प्रतिशत वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता हैं। इसमे वसा की मात्रा कम होती है और यह विटामीन बी कॉम्प्लेक्स, कैल्शियम, खाद्य रेशांक और पोटेशियम भरपूर होता है। मूंग की फसल में कीट व रोगों की वजह से अधिक नुकसान होता है इन कीट व रोगों के रोकथाम से किसान अधिक मुनाफा अर्जित कर सकता है

पत्ती बीटल
इस कीट के नियंत्रण के लिए क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20.25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए।
फलीछेदक:
फली छेदक को नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान या क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर की 20.25 किलो हेक्टेयर की दर से छिड़काव/भुरकाव करनी चहिये। आवश्यकता होने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव/भुरकाव किया जा सकता है।
रसचूसक कीड़े – मूंग की पतियों, तनों एवं फलियों का रस चूसकर अनेक प्रकार के कीड़े फसल को हानि पहुंचाते हैं। इन कीड़ों की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मि.ली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।

लेखक :-

Advertisement8
Advertisement
  • नरेन्द्र कुमार
  • बद्री प्रसाद
  • देशराज सिंह
  • email: narendrarcampuat@gmail.com
Advertisements
Advertisement5
Advertisement