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शुष्क क्षेत्र में कैक्टस, मसूर, जौ लगाने से बढ़ेगी आमदनी

 

इकार्डा के मोरक्को अनुसंधान केन्द्र में कृषि उत्पादन आयुक्त श्री मीना

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हाल ही में मोरक्को स्थित इकार्डा अनुसंधान केन्द्र की विजिट कर लौटे मध्यप्रदेश के अपर मुख्य सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त श्री प्रेमचन्द मीना ने बताया कि मोरक्को में कैक्टस की विभिन्न किस्मों का संवर्धन कर पशु चारे के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इकार्डा द्वारा जौ, मसूर की सूखा रोधी किस्मों पर अनुसंधान किया जा रहा है। आपने आशा व्यक्त की कि ये किस्में मध्यप्रदेश के सूखाग्रस्त इलाके बुंदेलखंड के लिए उपयुक्त हो सकती है। बुंदेलखंड में निरंतर कम वर्षा की संभावना और मिट्टी के अनउपजाऊ होने के कारण मसूर, जौ, कैक्टस की विभिन्न अनुसंधानित सूखारोधी किस्में क्षेत्र में परिवर्तन ला सकती है। यहां के लघु और सीमांत किसान इन्हें अपना सकते हैं और आमदनी में इजाफा कर सकते हैं।
कमाल का कैक्टस
श्री मीना ने बताया कि इकार्डा द्वारा कैक्टस पर गहन अनुसंधान किया जा रहा है। रेगिस्तानी क्षेत्र में लगने वाले ये कांटेदार पौधे पशु चारे के रूप में उपयोगी है। आकार में छोटे पर लंबी उम्र लिए इनकी जल सोखने की क्षमता बहुत होती है और इन पौधों से जल का क्षय भी कम होता है। सूखे की स्थिति में भी पशु चारे के रूप में कम खर्च वाली आसानी से लगने वाली फसल है कैक्टस। पोषक तत्वों से भरपूर और औषधि में भी प्रयोग होने वाले कैक्टस पर इकार्डा में अनुसंधान जारी है।
मसूर की गेरूआ रोधी किस्में
इसी प्रकार मसूर की विभिन्न सूखा रोधी किस्में भी इकार्डा के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की जा रही है जो मध्यप्रदेश की शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होगी। मसूर की विपुल उत्पादन देने वाली और गेरूआ रोधी किस्में मोरक्को में विकसित की जा रही है। साथ ही जल्दी पकने वाली मसूर अधिकतम 80 दिन पर भी अनुसंधान चल रहा है। श्री मीना ने बताया कि मसूर का उत्पादन बढऩे से किसानों को अच्छा पोषण भी मिलेगा और आमदनी में भी बढ़ौत्री होगी।
जौ की उत्पादकता बढ़ाना
मध्यप्रदेश के लिए इकार्डा द्वारा जौ की कुछ किस्में विकसित की जा रही है, जो छोटे किसानों के खाद्यान्न, उनके पशु चारे के लिए भी उपयुक्त है। कुछ किस्मों की ट्रायल इकार्डा के मध्यप्रदेश के अमलाहा स्थित, अनुसंधान केन्द्र पर पूर्व से चल रही हैं।

(कृषक जगत विशेष)
बदलते मौसम, बढ़ती आबादी, घटते प्राकृतिक संसाधनों ने छोटे किसानों की जीवनशैली और आजीविका याने खेती को प्रभावित किया है। साथ ही इन परिवर्तनों ने सूखी खेती वाले इलाकों में खाद्यान्न संकट भी पैदा कर दिया है। विविध मिट्टी एवं जलवायु की इन्हीं विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिये किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इकार्डा द्वारा फसल उत्पादन तकनीक पर गहन अनुसंधान किया जा रहा है।

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विश्व के बड़े रेगिस्तानों में से एक सहारा डेजर्ट से लगे, लिपटे देश मोरक्को में इंटरनेशनल सेन्टर फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च इन द ड्राय एरियाज इकार्डा अनुसंधान केन्द्र की विजिट से लौटे म.प्र. के अपर मुख्य सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त श्री प्रेमचंद मीना ने अपने अनुभव कृषक जगत से विस्तार से साझा किए। उल्लेखनीय है कि इकार्डा का विश्वस्तरीय दलहन अनुसंधान केन्द्र भोपाल से 60 किमी दूर अमलाहा में गत फरवरी 2016 से कार्य कर रहा है। (मोरक्को में इकार्डा के वैज्ञानिकों से चर्चा करते हुए श्री पी.सी. मीना )

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