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जल संरक्षण का एक बेहतरीन तरीका ड्रिप सिंचाई

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कृषि के लिए जल एक महत्वपूर्ण निवेश है जिसमें देश के समग्र जल संसाधनों की 80 प्रतिशत से ज्यादा खपत होती है। यद्यपि जल एक पुन: सर्जित एवं नीवीनकरण होने वाला संसाधन है और विभिन्न क्षेत्रों से इसकी बढ़ती हुई मांगों के कारण उच्च गुणवत्ता तथा पर्याप्त मात्रा में इसकी उपलब्धता गंभीर रूप से दबाव ग्रस्त स्थितियों में है। जलप्रवाह तथा सिंचाई के पारम्परिक तरीके से जल उपयोग के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है क्योंकि इसमें सिर्फ पानी व्यर्थ नहीं होता बल्कि अनेक समस्याएं जैसे जलमग्नता, लवणता तथा मृदा अवक्रमण जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं जो उपजाऊ कृषि भूमि को अनुपजाऊ बनाती है। अत: सिंचाई के तरीकों जैसे ड्रिप (टपका) एवं छिड़काव को अपनाया जाए तो इनकी हानियां को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई को अनेक फसलों विशेषकर सब्जियों, बागानी फसलों, पुष्पों और रोपण फसलों में व्यापक रूप से उपयोग में लाया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई में मीटर तथा ड्रिपर्स की मदद से पानी पौधों की जड़ों में डाला जाता है या मिट्टी की सतह अथवा उसके नीचे पहुंचाया जाता है। ड्रिप सिंचाई ज्यादातर अधिक कीमत वाली फसलों में लगायी जाती है। ड्रिप सिंचाई का प्रयोग पंक्ति में उगने वाली फसलों, पेड़ों तथा बेलों में एक या ज्यादा मीटर से किया जा सकता है। इससे 2-20 लीटर प्रति घंटा तक पानी पौधों को दिया जा सकता है। ड्रिपर सिंचाई करके मृदा में नमी का स्तर अनुकूलित रखा जाता है। ड्रिप सिंचाई को किसी भी ढलान वाली या समतल भूमि में लगाया जा सकता है। ड्रिप को सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। चिकनी मिट्टी में पानी का प्रवाह धीमी गति से किया जाना चाहिये। ताकि पानी बहे नहीं और तल बना रहें। रेतीली मिट्टी में मीटर से ज्यादा प्रवाह होने से मिट्टी में अच्छी नमी हो जाती है।
आज देश में इस विधि के उपयोग से अंगूर, अमरूद, आम, आंवला, केला, अनार, चीकू, नींबू, आलू, भिंडी, गोभी, कपास, नारियल, गुलाब, औषधीय सुगंधित पौधों, मसाले आदि में उच्च पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

     सिंचाई करने का समय
 क्र.  जलवायु  मृदा का प्रकार   
 रेतीली                  हल्की दोमट 
1 गरम और शुष्क दिन में दो बार दो दिन में एक बार दो या तीन दिन में
2 मध्यम प्रतिदिन दो या तीन दिन में एक बार तीन दिन में
3 ठंडी प्रतिदिन दो या तीन दिन में एक बार चार दिन में

ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें

  • ड्रिप यूनिट की संभावित लागत
  • उपलब्ध ऊर्जा का प्रकार, उसकी नियमितता और कीमत
  • खेत का क्षेत्रद्य फसल का प्रकार, किस्म, जल की मांग
देखभाल

बिना किसी बाधा के लम्बे समय तक ड्रिप सिस्टम को चलाने के लिये देखभाल अत्यंत आवश्यक है।

  • फिल्टर्स की रबड़, वाल्व और फिटिंग की जांच समय-समय पर करते रहना चाहिये।
  • बरसात के समय सभी लेट्रल पाइप को हटा लेना चाहिये।
  • पाइप को हटाते समय उसे सही से गोले के आकार में छोडऩा चाहिये ताकि वो उलझे नही।

प्रतिदिन होने वाली देखभाल

  • फसलों को जल देने से पूर्व पम्प को पांच मिनट तक चलाना चाहिये।
  • जालीदार फिल्टर को जाली में जमा कचरे को साफ कर देना चाहिये।
  • सभी ड्रिपों से एक समान जल का प्रवाह तथा जल का दबाव ठीक होना चाहिये।

सप्ताह में होने वाली देखभाल

  • बलुई फिल्टर की सफाई रसायनिक प्रक्रिया या हाथ से करनी चाहिये।
  • मुख्य व उपमुख्य पाइप की सफाई सप्ताह में एक-दो बार होनी चाहिए।
  • सप्ताह में एक बार लेट्रल पाइप्स की सफाई होनी चाहिए।

अगर ऊपर वाली सभी बातों का ध्यान रखा जाए तो ड्रिप संयंत्र उपयोग करने में किसी प्रकार की                 परेशानी नहीं आती है।

  • अंकुश  
  • विक्रम सिंह चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृ.वि.वि., हिसार

         email : ktankdhnda@gmail.com

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