State News (राज्य कृषि समाचार)

मूंग में तीन आवश्यक प्रबंधन

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20 अप्रैल 2023, मूंग में तीन आवश्यक प्रबंधन – मूंग भारत की पारंपरिक दलहन फसल है इस फसल की खेती 2200 ईसा पूर्व से देश में की जा रही है। संभवत मूंग का उद्गम एवं विकास भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ है। अच्छी पैदावार के लिए मूंग फसल में पोषक तत्व प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन और खरपतवार प्रबंधन  आवश्यक है, जो इस प्रकार हैं –

पोषक तत्व प्रबंधन

मूंग की फसलों को नत्रजन की अधिक आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह फसलें स्वयं वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण करके भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाती हैं यह कार्य इनकी जड़ों में उपस्थित जीवाणु करते हैं इससे भूमि में नत्रजन की मात्रा बढ़ जाती है और फसल इसका उपयोग कर अच्छी उपज देती है मूंग के लिए प्रति हेक्टेयर 10 किग्रा नत्रजन, 40 से 50 किग्रा फास्फोरस, 20 से 25 किग्रा पोटाश तथा 20 से 25 किग्रा गंधक बुवाई के समय देना चाहिए बसंतकालीन मूंग की खेती यदि मटर सरसों या आलू के बाद की जा रही हो तो उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है।

सिंचाई प्रबंधन

मूंग में मौसम तथा मृदा की किस्म के अनुसार पलेवा के बाद दो-तीन और सिंचाईयों की आवश्यकता होती है बलुई मिट्टी तथा तेज लू चलने के कारण अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

खरपतवार प्रबंधन

मूंग की बुवाई के प्रारंभिक 4-5 सप्ताह तक खरपतवार की समस्या अधिक रहती है। इसलिए  पहली निराई, बुवाई के 20-25 दिन तक दूसरी आवश्यकतानुसार करें। फसल की बुवाई के तुरंत पश्चात (अंकुरण से पहले) खरपतवारनाशी रसायन जैसे पेंडीमिथालीन का ढाई  से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करने से 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवार नहीं निकलते हैं। घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिए फ्लूक्लोरोलीन 45 ईसी नामक रसायन की 2.22 लीटर मात्रा को आवश्यक पानी में घोलकर या प्रति हेक्टेयर एलाक्लोर की 4 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरंत बाद या अंकुरण से पहले छिडक़ाव कर देंं उपरोक्त के संभावना होने की स्थिति में 20 से 25 दिन के बाद एक निराई अवश्य कर दें।

  • (स्रोत और चित्र- दलहन ज्ञान मंच, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर )
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