अव्यवस्था और खाद-बीज के संकट से किसानों को परेशान होना पड़ रहा है
एक दशक से अधिक समय का अरसा बीत जाने के बाद भी नहीं हो पाए हैं मंडी और सहकारिता चुनाव
20 नवंबर 2025, उज्जैन: अव्यवस्था और खाद-बीज के संकट से किसानों को परेशान होना पड़ रहा है – एक दशक से अधिक समय का अरसा बीतने के बाद भी मंडी और सहकारिता के चुनाव नहीं हो सके है। बता दें कि पूरे प्रदेश के साथ ही उज्जैन जिले में भी मंडी और सहकारिता क्षेत्र की संस्थाएं अफसरों के भरोसे है।
जानकारों के कहना है कि सरकार की उदासीनता के कारण ऐसा हो रहा है। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। मंडियों में अव्यवस्था और खाद-बीज के संकट से किसानों को परेशान होना पड़ रहा है। लेकिन उनकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। जानकारों का कहना है कि अगर मंडी और सहकारिता के चुनाव हुए होते तो किसानों की समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाता। मंडी चुनाव 13 से तो सहकारिता के 12 साल से नहीं हुए हैं। इस कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के स्थान पर कृषि मंडी और सहकारिता की पूरी व्यवस्था अफसरशाही के भरोसे है।
इस समय रबी फसलों की बुवाई का सीजन चल रहा है। प्रदेश के किसान खाद संकट से जूझ रहे हैं। खाद के लिए लंबी लंबी लाइनों में लगे किसानों को पुलिस के डंडे खाने पड़ रहे हैं। कृषि मंडियों में अनाज व्यापारियों की मनमानी से किसानों को औने-पौने दामों में अनाज बेचना पड़ रहा है, लेकिन स्थानीय स्तर पर किसानों की समस्याएं सुनने वाला कोई जनप्रतिनिधि नहीं है। इसकी मुख्य वजह प्रदेश के लाखों किसानों से सीधे तौर पर जुड़े कृषि उपज मंडी समितियों और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से टलते जाना है। मंडी समितियों और सहकारी समितियों के चुनाव का इंतजार एक दशक से अधिक समय से किया जा रहा है। इस दरमियान प्रदेश में तीन सरकारें बदल गईं, लेकिन मंडी व सहकारिता के चुनाव कराने में सरकार की कोई रुचि नहीं है। सरकार की इस उदासीनता का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। सरकार ने सहकारिता और मंडियों की पूरी व्यवस्था अफसरशाही के भरोसे छोड़ दी है, जो किसानों की जमीनी समस्याओं से न तो वाकिफ हैं और न ही उसमें रुचि दिखा रहे हैं। सहकारिता और मंडी के चुनाव नहीं होने से न सिर्फ प्रशासनिक असंतुलन पैदा हुआ है, बल्कि ग्रामीण राजनीति में रुचि रखने वाले किसानों के लिए भी राजनीति के रास्ते बंद हो गए हैं। पहले मंडी और सहकारी समितियों के माध्यम से किसान राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते थे।
अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं रखी जा सकती है
नियमानुसार 2017 में मंडियों के चुनाव कराए जाने थे, लेकिन पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए चुनाव टाल दिए गए। सरकार ने जनवरी, 2019 में मंडी समितियों को भंग कर दिया, तब से प्रशासनिक अधिकारी मंडियों के प्रशासक बने हुए हैं। किसी भी स्थिति में इनकी अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं रखी जा सकती है। इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी लग चुकी है।
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