राज्य कृषि समाचार (State News)

अरहर की खेती उन्नत तकनीक से करें- उप संचालक कृषि सीधी

16 जुलाई 2024, सीधी: अरहर की खेती उन्नत तकनीक से करें- उप संचालक कृषि सीधी – उप संचालक कृषि द्वारा सीधी जिले के किसानों को अरहर की खेती उन्नत तकनीक से करने की सलाह दी गई है। उप संचालक ने  बताया कि खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर प्रमुख फसल है, जो प्रोटीन के रूप में भोजन का अभिन्न अंग है। अरहर की खेती उन्नत तकनीक से करने पर उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है, जिसके लिये उन्नत विधियों का प्रयोग अपनाना चाहिए।

बोनी का समय व तरीका-  अरहर की बोनी समुचित जल निकासी वाली मध्यम से गहरी काली भूमि में वर्षा प्रारंभ होने के साथ ही कर देना चाहिए। कतारों के बीच की दूरी शीघ्र पकने वाली जातियों के लिए 60 से.मी. व मध्यम तथा देर से पकने वाली जातियों के लिए 70 से 90 से.मी. रखना चाहिए। कम अवधि की जातियों के लिए पौध अंतराल 15-20 से.मी. एवं मध्यम तथा देर से पकने वाली जातियों के लिए 25-30 से.मी. रखना चाहिए।

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बीज की मात्रा व बीज उपचार–  जल्दी पकने वाली जातियों का 20-25 किग्रा. एवं मध्यम पकने वाली जातियों का 15-20 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए। बोनी के पूर्व फफूंद नाशक दवा 2 ग्राम थायरम 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम या विटावेक्स 2 ग्राम 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें, तत्पश्चात उपचारित बीज को राइजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लगाना चाहिए।

उर्वरक का प्रयोग-  बुआई के समय 20-50 किग्रा. नत्रजन, 40-50 किग्रा. स्फुर, 20-25 कि.ग्रा. पोटाश व 20 किग्रा. गंधक प्रति हेक्टेयर कतारों में बीज के नीचे दिया जाना चाहिए। खेतो में प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार 25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट को आखिरी बखरनी पूर्व भुरकाव करने से पैदावार में अच्छी वृद्धि होगी।

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निंदाई गुड़ाई-  खरपतवार नियंत्रण के लिए 20-25 दिन में पहली तथा फूल आने से पूर्व दूसरी निंदाई करें। 2-3 कोल्पा चलाने से नीदांओं पर अच्छा नियंत्रण रहता है व मिट्टी में वायु संचार बना रहता है। नीदानाशक पेन्डीमेथिलीन 1.25 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर बोनी के बाद प्रयोग करने से नींदा नियंत्रण होता है। नीदा नाशक प्रयोग के बाद एक निंदाई लगभग 30-40 दिन की अवस्था पर करना लाभदायक होता है।

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सिंचाई-  जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, वहाँ एक हल्की सिंचाई फूल आने पर व दूसरी फलियाँ बनने की अवस्था पर करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है।

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