National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए नई नीति आएंगी- श्री तोमर

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केंद्रीय कृषि मंत्री ने किया नई कृषि प्रौद्योगिकियों एवं किस्मों का विमोचन

31 मई 2021, नई दिल्लीदलहन व तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए नई नीति आएंगी- श्री तोमर – केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत सरकार की सफलता के 7वर्ष पूरे होने के साथ-साथ प्रधानमंत्री जी के दृढ़ संकल्प के परिणामस्वरूप भारत मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है।आमजन की भागीदारी देश के विकास में बढ़ रही है औरहर व्यक्ति के मन में एक जज्बा उत्पन्न हुआ है कि उसे भी अपनी योग्यता, दक्षता,ऊर्जा से देश केलिए कोई ना कोई काम करना चाहिए। श्री तोमर ने कहा कि हमारे देश में खाद्यान्न की प्रचुरता है, यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुसंधान, किसानों के परिश्रम व सरकार कीकृषि हितैषी नीतियों का सद्परिणाम है। हमें दलहन, तिलहन व बागवानी फसलों के क्षेत्र में और काम करने की जरूरत है। दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए नई नीति आएंगी। प्रधानमंत्री जी ने इस बात पर बल दिया है। उनका कहना है कि आयात पर हमारी निर्भरता कम हो तथा हम कृषि उत्पादों का निर्यातज्यादा से ज्यादा बढ़ाएं। बीजों की नई किस्मों का इसमें विशेष योगदान होगा।

केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने यह बात सोमवार को आईसीएआर की उपलब्धियों, प्रकाशनों, नई कृषि प्रौद्योगिकियों एवं कृषि फसलों की नई किस्मों की लांचिंग तथा “कृतज्ञ” (KRITAGYA)हैकाथॉन के विजेताओं को पुरस्कार वितरण के कार्यक्रम में कही। “कृतज्ञ”में प्रतियोगियों ने कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए एक से बढ़कर एक उपयोगी संरचनाएं सृजित कर अपनी योग्यता व क्षमता को साबित किया है।

श्री तोमर नेआईसीएआर की तारीफ करते हुए कहा कि उसके वैज्ञानिक समग्रता से विचार कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों, वर्षा आधारित खेती वाले क्षेत्रों व अन्य प्रतिकूलपरिस्थितियों से हमारे बीज सामना कर सकें तथा किसानों की आय बढ़ा सकें एवं उत्पादन व उत्पादकता कोभी बढ़ाया जा सकें। फसल डायवर्सिफिकेशन का भी विषय विद्यमान है, सरकार इस दिशा में बहुत तेजी के साथ काम कर रही है। कृषि व सम्बद्धअधिकांश क्षेत्रों में दुनिया मेंभारत पहले या दूसरे नंबर पर है, गर्व है कि प्रधानमंत्री जी का चिंतन हमें इस ओर आगे बढ़ने के लिए तेजी सेप्रवृत कर रहा है और किसान भी पूरी उत्सुकता सेकाम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “कृतज्ञ”हैकाथॉनमें जिस तरह से अच्छे से अच्छे आविष्कार पेश किए गए हैं, उसे देखते हुए विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि हिंदुस्तान के नागरिकों में बड़ी से बड़ी परिस्थितियों का सामना करने व उनमें विजयी प्राप्त करने का सामर्थ्य है, यहीं भारत वर्ष की सबसे बड़ी पूंजी व ताकत है।कृषि का क्षेत्र अग्रणी भूमिका निभा सकें, इसमें आईसीएआर से संबंधित वैज्ञानिकगण, अनुसंधान केंद्र, वि.वि., छात्र, नई तकनीक, नए बीजों की किस्में ईजादकरने का निश्चित रूप से बहुत बड़ा महत्व है। इस दिशा में आईसीएआर जिम्मेदारी के साथ काम कर रहा है, यह प्रसन्नता व संतोष का विषय है। उन्होंने इसके लिए देशभर के संस्थानों की टीमों व केवीके की टीमों को बधाई व शुभकामाएं दी।

श्री तोमर ने कहा कि मुंहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD) से देश के पशुओं को मुक्‍त कराने के लिए आईसीएआरसीरो-मॉनीटरिंग के माध्‍यम से महत्‍वपूर्ण सेवा कर रहा है। इसमें और तेजी लाने की आवश्‍यकता है। केवीके ने 5 करोड़ से ज्यादा किसानों तक अपनी पहुंच बनाई है, इसे भी बढ़ाने की जरूरत है। कृषि शिक्षा महत्वपूर्ण पहलू है, जिसके माध्यम से हमें कृषि क्षेत्र का समग्र विकास करना है। केंद्रीय मंत्री नेआईसीएआरको अंतरराष्‍ट्रीय राजा भूमिबोल विश्‍व मृदा दिवस पुरस्‍कार-2020; विश्‍व बौद्धिक सम्‍पदा संगठन (डब्‍ल्‍यूआईपीओ), जेनेवा व संयुक्‍त राष्‍ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा सम्‍मान व डिजीटल इंडिया पुरस्‍कार-2020 प्राप्‍त होने पर बधाई दी।

कार्यक्रम में कृषि राज्य मंत्री श्री परषोत्तम रूपाला, आईसीएआरके महानिदेशक डा. त्रिलोचन महापात्र, विशेष सचिव श्री संजय सिंह, उप-महानिदेशक (शिक्षा) डॉ. आर.सी. अग्रवाल ने भी संबोधित किया।

कृतज्ञहैकाथॉन संबंधी जानकारी-भारत की कृषि शिक्षा और आधुनिक बनेव प्रतिभाओं को पूरा अवसर मिले, इसलिए राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (NAHEP) केतहत”कृतज्ञ”कृषि हैकाथॉन काआयोजन किया गया।महिलाओं के अनुकूल उपकरणों पर विशेष जोर देने के साथ-साथ खेती में मशीनीकरण को बढ़ाने के लिए संभावितप्रौद्योगिकी समाधानों को बढावा देना इस आयोजन का उद्देश्य था। विश्वविद्यालयों, तकनीकीव अन्य संस्थानों के छात्रों, संकायों और नवप्रवर्तकों/उद्यमियों/स्टार्टअप्सने टीमों केरूप में इसमें भाग लिया। इनमें सेहरेक मेंचार प्रतिभागी थे। कुल 784 टीमों ने भाग लिया, जिनमें मुख्यतःआईआईटी, कृषि व अन्य वि.वि. एवंअनुसन्धान संस्थानशामिल थे। प्रस्तावों का मूल्यांकनविशेषज्ञोंनेकिया। 5 लाख रू. का प्रथम पुरस्कार गोवा वि.वि. टीमको मिला, जिसने नारियल/तेल ताड़ की कटाई के लिए ड्रोन बनाया।3 लाख रू. का द्वितीय पुरस्कारICAR-CIAI, भोपाल को प्राप्त हुआ, जिसने पौधों कीबीमारियों का वास्तविक समय में पता लगाने, कीटनाशकों कासाइट-विशिष्ट अनुप्रयोग करने के लिए कंपन संकेत के प्रयोगकासुझाव दिया।1 लाखरू. कातृतीय पुरस्कार दो टीमों को संयुक्त रूप से दिया गयाइनमें बैंगलुरू की टीम ने बैटरीचलित पोर्टेबलकोकून हार्वेस्टर, जो एक हाथ से संचालित तंत्र है, बनाया। वहीं, तमिलनाडु जयललिता फिशरीज यूनिवर्सिटीकीटीम को यह पुरस्कार सेमी-ऑटोमैटिक कटर, जो सूखी मछली को काटते समय मछुआरे की मुश्किलों को कम करता है, बनाने के लिए मिला।

कृषि फसलों की नई किस्मेंव अन्य उपलब्धियां

फसल विज्ञान प्रभागने वर्ष 2020-21 के दौरान एआईसीआरपी/एआईएनपी के माध्यम से 562 नई उच्च उपज देने वाली कृषि फसलों की किस्में (अनाज 223, तिलहन 89, दलहन 101, चारा फसलें 37, रेशेदार फसलें 90, गन्ना 14 और संभावित फसलें 8) जारी की हैं। विशेष गुणों वाली ये 12 किस्में है-जौ-1 (उच्च माल्ट गुणवत्ता), मक्का-3 (उच्च लाइसिन, ट्रिप्टोफोन एवं विटामिन ए, दानों में उच्च मिठास, उच्च फुलाव), सोयाबीन-2 (उच्च ओलीक अम्ल), चना-2 (सूखा सहनशील, उच्च प्रोटीन), दाल-3 (लवणता सहनशील), अरहर-1 (बारानी परिस्थितियों के लिए)

बागवानी प्रभाग द्वारा देश की विभिन्न कृषि जलवायुवीय दशाओं में अधिक उत्पादकता के माध्यम से किसानों की आय में अभिवृद्धि के लिए बागवानी फसलों की 89 प्रजातियों की पहचान की गई है। ये मुख्य प्रजातियां तथा तकनीक है-संकर बैंगन ‘काशी मनोहर’, जिसमें प्रति पौधा 90-100 फल, प्रति फल भार 90 से 95 ग्राम, उत्पादकता 625-650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अंचल VII (मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र ) में उगाने के लिए संस्तुत है। विट्ठल कोको संकर-6, जिसमें उत्पादकता: 2.5 से 3 किग्रा शुष्क बीज/वृक्ष; बीज में वसा : 50 to 55% काला फली सड़्न रोग एवं चाय मशक मत्कुण के प्रति सहनशील केरल में उगाने के लिए संस्तुत है। शिटाके खुम्ब की शीघ्र उत्पादन तकनीक का विकास किया गया है, जिसके लिए आईसीएआर ने पेटेंट लिया है। इस तकनीकी से 45-50 दिनों की अवधि में 110-130% की जैव क्षमता के साथ पैदावार ली जा सकती है।साधारणतः शिटाके खुम्ब की पैदावार की अवधि 90-120 दिन होती है।

पशु विज्ञान प्रभाग- राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार द्वारा अश्व फ्लू के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी-आधारित एलिसा किट-

गाय और भैंस के लिए गर्भावस्था निदान किट- केंद्रीय भैंस अनुसन्धान केंद्र, हिसार ने डेयरी पशुओं के यूरिन से गर्भ जांच करने के लिए प्रेग -डी नामक किट विकिसित की है, जिसमें यूरिन सैंपल से 30 मिनट में मात्रा 10रूपए में टेस्ट किया जा सकता है।

मत्सयकीय प्रभाग- रेड सीवीड से बाइओडिग्रेड्डबल पैकेजिंग फिल्म (बिओप्लास्टिक) बनाने की तकनीक बनाई है, जो बहुत ही कॉस्ट इफेक्टिव है।

अभियांत्रिकी प्रभाग- त्वरित संदर्भ के लिए कृषि उपकरणों पर किसानों के अनुकूल ई-बुक बनाई गई है, जिसमें हाल ही में निर्मित प्रौद्योगिकियों, जिनका व्यावसायीकरण किया जा चुका है, जिन्हें किसान बड़ी आसानी से इस ई-बुक द्वारा सर्च कर सकता है।

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