सरकारी योजनाएं (Government Schemes)राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

मनरेगा: पांच साल के आंकड़े बताते हैं ग्रामीण रोजगार की कहानी

06 अप्रैल 2025, नई दिल्ली: मनरेगा: पांच साल के आंकड़े बताते हैं ग्रामीण रोजगार की कहानी – महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) भारत की एक ऐसी योजना है, जो ग्रामीण परिवारों को रोजगार का सुरक्षा कवच देने का दावा करती है। यह मांग आधारित योजना हर ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिन का अकुशल मजदूरी रोजगार देने की गारंटी देती है। लेकिन क्या यह योजना सच में ग्रामीण भारत की उम्मीदों पर खरी उतर रही है? हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े इसकी कहानी बयां करते हैं। आइए, इन आंकड़ों पर नजर डालते हैं।

रोजगार और फंड का लेखा-जोखा

ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2024-25 तक मनरेगा के तहत रोजगार और फंड में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। 2019-20 में देशभर में 2,652 मिलियन व्यक्ति-दिवस (करीब 2,652 लाख कार्यदिवस) का रोजगार सृजित हुआ। अगले साल 2020-21 में यह आंकड़ा 46% की उछाल के साथ 3,887 मिलियन तक पहुंच गया। इस बढ़ोतरी की बड़ी वजह कोविड-19 महामारी को माना जा सकता है, जब शहरों से लौटे मजदूरों ने गांवों में इस योजना का सहारा लिया। हालांकि, इसके बाद यह संख्या घटती गई और 2024-25 में 2,872 मिलियन पर आकर ठहर गई—जो महामारी से पहले के स्तर से थोड़ा ही ज्यादा है।

Advertisement
Advertisement

फंड की बात करें तो 2019-20 में मजदूरी के लिए 50,300 करोड़ रुपये जारी किए गए, जो 2020-21 में बढ़कर 82,002 करोड़ रुपये हो गए। बाद के वर्षों में यह राशि 63,000 करोड़ रुपये से ऊपर बनी रही। हर साल की शुरुआत में पिछले साल की बकाया देनदारियों का भुगतान भी शामिल होता है, जिससे फंड का आंकड़ा प्रभावित होता है।

कहां कितना रोजगार?

राज्यवार आंकड़े कुछ दिलचस्प तथ्य सामने लाते हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु इस योजना के तहत सबसे ज्यादा व्यक्ति-दिवस सृजित करने वाले राज्य रहे हैं। मिसाल के तौर पर, राजस्थान में 2019-20 में 3,286 लाख व्यक्ति-दिवस का रोजगार पैदा हुआ, जो 2024-25 में घटकर 3,109 लाख रह गया। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल की कहानी अलग है। 2020-21 में यहां 4,140 लाख व्यक्ति-दिवस दर्ज हुए, लेकिन 2022-23 से यह संख्या लगभग शून्य हो गई। वजह? केंद्र सरकार ने 9 मार्च, 2022 से नियमों का पालन न करने के चलते राज्य को फंड देना बंद कर दिया।

Advertisement8
Advertisement

वहीं, गोवा, लक्षद्वीप और पुडुचेरी जैसे छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में व्यक्ति-दिवस की संख्या न के बराबर रही, जो उनके छोटे ग्रामीण क्षेत्रों को दर्शाता है।

Advertisement8
Advertisement

महामारी का असर और उसके बाद

2020-21 में व्यक्ति-दिवस और फंड में आई तेजी से साफ है कि महामारी(Covid-19) के दौरान मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए बड़ा सहारा बनी। लेकिन इसके बाद रोजगार के आंकड़ों में कमी यह सवाल उठाती है कि क्या लोग अब दूसरी नौकरियों की ओर बढ़ रहे हैं, या मांग में कमी आई है? फंड का ऊंचा स्तर बने रहना बढ़ती मजदूरी दरों या बकाया भुगतान का नतीजा भी हो सकता है।

ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री कमलेश पासवान ने राज्यसभा में बताया, “केंद्र सरकार योजना के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मांग के आधार पर फंड उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है।” यह आंकड़े 31 मार्च, 2025 तक के हैं और ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति से लिए गए हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े?

ये आंकड़े दिखाते हैं कि मनरेगा संकट के समय ग्रामीण परिवारों के लिए मददगार रही है, लेकिन इसकी मांग और असर में समय के साथ बदलाव आया है। रोजगार के अवसरों में कमी या फंड का ठहराव इस योजना की सीमाओं की ओर भी इशारा करता है। यह ग्रामीण भारत की रोजगार कहानी का एक हिस्सा भर है—बाकी तस्वीर वहां की जमीनी हकीकत पर निर्भर करती है।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

Advertisement8
Advertisement

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement