National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

देश में कृषि विज्ञान केंद्रों ने पूसा डीकंपोजर, वर्मी कम्पोस्टिंग को बढ़ावा देने 900 गांवों को गोद लिया है

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29 अक्टूबर 2022, नई दिल्ली: देश में कृषि विज्ञान केंद्रों ने पूसा डीकंपोजर, वर्मी कम्पोस्टिंग को बढ़ावा देने 900 गांवों को गोद लिया है – देश में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) ने माइक्रोबियल (सूक्ष्मजीव) आधारित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन व वर्मीकम्पोस्टिंग (कृमि उर्वरक) को प्रदर्शित करने और इसे बढ़ावा देने के लिए 900 गांवों को गोद लिया है। गत एक माह में स्वछता अभियान के तहत 22 हज़ार से अधिक  किसानों के सामने कृषि अवशेषों (पराली आदि) के सूक्ष्मजीव आधारित डीकंपोजर और कृषि अवशेषों व अन्य जैविक कचरे को कृमि उर्वरक में बदलने  से संबंधित तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। किसानों के अलावा 3000 स्कूली बच्चों में वर्मी कम्पोस्टिंग  के बारे में जागरूकता उत्पन्न की गई।

वर्मी कम्पोस्ट 

मृदा के स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता में सुधार के लिए उचित रूप से अपघटन के बाद उपयोग किए जाने पर फसल अवशेष मूल्यवान जैविक पदार्थ हैं। अधिकांश फसल अवशेषों की प्राकृतिक उर्वरक बनने की प्रक्रिया की लंबी अवधि के कारण किसान इसे जलाकर निपटाने का काम करते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक मूल्यवान संपत्ति की बर्बादी के अलावा इससे पर्यावरण प्रदूषण भी होता है। कंपोस्टिंग तकनीकें “पूसा डीकंपोजर ” जैसे कुशल सूक्ष्मजीवी अपघटक का उपयोग करके अपघटन प्रक्रिया को तेज करती हैं, जिससे  कम अवधि में उच्च गुणवत्ता वाली जैविक उर्वरक प्राप्त होती है। अवशेषों की राख की जगह इससे निर्मित जैविक उर्वरक मृदा में कार्बनिक कार्बन व अन्य जरूरी पोषक तत्वों को पौधों के उपलब्ध करवाता है और मिट्टी में सूक्ष्मजीव आधारित गतिविधि को बढ़ावा देता है। फसल के अवशेष और अन्य कृषि अपशिष्ट जैसे कि गाय के गोबर और रसोई के कचरा आदि के आंशिक रूप से सड़ने के बाद इसमें केंचुओं की कुशल प्रजातियों का उपयोग करके इन्हें कृमि उर्वरक में बदला जा सकता है। कृमि उर्वरक पौधों को जरूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति करता है, मिट्टी के लाभकारी सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देता है और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करता है। इसके अलावा अतिरिक्त आय के लिए बचे हुए  वर्मी कम्पोस्ट  को बाजार में बेचा भी जा सकता है।

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