क्या बाजार किसान उत्पादक संगठनों के लिए कारगर हो सकता है?
लेखक: डॉ. रवीन्द पस्तोर, सीईओ, ई-फसल
14 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: क्या बाजार किसान उत्पादक संगठनों के लिए कारगर हो सकता है? – कोई भी नया व्यवसाय शुरू करने पर हमसामान्यतः कुछ ग़लतियाँ करते ही है। इन ग़लतियों में पहली गलती हैं कि हम वास्तविक समस्या की पहचान नहीं कर पाते हैं। जैसे किसान उत्पादक संगठन का गठन हम गरीबी समाप्त करने या खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के समाधान के लिए कर रहे है। लेकिन ग़रीबी या खेती की अलाभकारिता शब्द सामान्य शब्द है। इन शब्दों के अनेकों पहलू है। यह विशिष्टता परिभाषित या चिन्हित समस्या के पहलू का स्वरूप नहीं है। इसलिए हम असल समस्या को विशिष्ट रूप से परिभाषित किये समाधान की खोज करते हैं तो वह सामान्य समाधान ही होते है जैसे बिना यह चिन्हित किए कि किसान उत्पादक संगठन का गठन कर हम समस्या के किस पहलू का हल करेंगे। दूसरी गलती है कि हमें समस्या से प्यार हो जाता है। जैसे गरीबी शब्द समस्या का सामान्यीकरण है न कि विशिष्ट समस्या इसलिए “अधूरे विचार” पर अटक जाना एक व्यापक समस्या है जिसका सामना बहुत से संभावित संस्थापक करते हैं। जैसे पहले हम सोचते थे कि स्व सहायता समूहों से ग्रामीण समस्याओं का समाधान हो सकता है लेकिन अनेकों साल तक काम करने के बाद हम जान गये कि इस माडल से ग़रीबी दूर नहीं हो सकती है तो फिर हम ग्राम स्तर पर VO बनाने लगे हमने सहकारी समितियाँ गठित की और अब हम सोचते हैं कि किसान उत्पादक संगठनों FPO के साथ समस्या का आसानी से हल किया जा सकता है। तीसरी गलती यह है कि हम विचार का मूल्यांकन नहीं करते है। हम किसान उत्पादक संगठनों का पंजीकरण सरकार के टार्गेट के आधार पर करते जा रहे हैं। जबकि केवल एक किसान उत्पादक संगठन जो कम्पनी अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं तो उसके माध्यम से पूरे विश्व में बिज़नेस किया जा सकता है। चौथी गलती जो हम करते हैं वह यह जानना है कि क्या हमारे पास बाजार के लिए उपयुक्त रणनीति है? क्या टीम इस रणनीति पर काम करने की योग्यता, अनुभव व साधन रखती है? इसलिए हमें अपनी टीम के लिए एक अच्छा विचार चुनना चाहिए। पाँचवीं गलती में हम यह सुनिश्चित नहीं करते है कि बाजार कितना बड़ा है? छटी गलती है कि हम जिन के लिए काम करना चाहते हैं उनके के लिए यह समस्या कितनी गंभीर है? वे भी क्या समस्या के प्रस्तावित समाधान पर काम करना चाहते हैं? सातवीं गलती है कि हम यह नहीं देखते कि हमारी प्रतिस्पर्धा किन के साथ है? इस कारण हम अनजाने ही प्रतिस्पर्धी के ट्रेडिंग मॉडल की नक़ल कर लागू करना शुरू कर देते है जबकि हमारे पास उनके जैसे संसाधन व अवसर नहीं होते है। तो हमें उनसे उलट सेवा मॉडल अपनाना चाहिए। जिसमें हमें अपने लक्षित समूह से जानना चाहिए कि वे क्या यह चाहते हैं? क्या वे सरकारी सहायता के बिना यह करना चाहते हैं? क्या यह माडल हाल ही में लागू करना संभव या आवश्यक हो गया है? आठवीं गलती यह है क्या यह एक ऐसा विचार है जिस पर हम बिना सरकारी मदद के वर्षों तक काम करना चाहेंगे? और दसवीं गलती यह है कि क्या यह एक स्केलेबल व सेल्फ़ सस्टेनेबल व्यवसाय है? क्योंकि कृषि क्षेत्र आकर्षक क्षेत्र नहीं है, एफपीओ व्यवसाय का विचार आकर्षक विचार नहीं हैं, लेकिन क्या वास्तव में हमारी टीम उसे अच्छा बना सकते हैं। व्यापार करना हमेशा से कठिन विचार रहा है तो क्या हमारे पास ऐसी टीम है जो ऐसे विचार पर काम करने की क्षमता रखती है जिसे शुरू करना कठिन है जो विचार उबाऊ है तथा जो बहुत सारी प्रतिस्पर्धियों वाला विचार है। जिसमें परिणाम बहुत लम्बी अवधि के बाद मिलते है। इन प्रश्नों पर विचार विमर्श किए बिना किसान उत्पादक संगठन शुरू नहीं करना चाहिए।
टेड टॉक पर बिल ग्रॉस नामक एक इन्वेस्टर ने सेकडों सफल एवं असफल कंपनियों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला है की सफलता अनुपात के लिए ज़िम्मेदार कारकों में सही समय 42%, टीम/निष्पादन 32%, विचार “सत्य” आउटलायर 28%, बिजनेस मॉडल 24%, फंडिंग 14% ज़िम्मेदार कारण होते है। मुक्केबाज़ माइक टायसन कहते है कि हर किसी के पास एक योजना होती है जब तक कि उनके चेहरे पर मुक्का न पड़ जाए। किसान उत्पादक संगठन शुरू करने में मुख्य चार बाधाएँ है – 1. मनोवैज्ञानिक बाधा 2. किसान समुदाय की समस्याओं की बाधा जैसे उत्तराधिकार का कानून – भूमि का विभाजन – दोनों सिरों पर कम मात्रा – बाजार की चुनौतियां – बड़ी मात्रा, समान गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धी मूल्य 3. वैधानिक अनुपालन की बाधा – कंपनी कानून 2013, जीएसटी, आयकर, उर्वरक नियंत्रण आदेश, बीज अधिनियम, कीटनाशक अधिनियम, मंडी अधिनियम, आदि 4. व्यापारिक समुदाय की बाधा जैसे उत्पादक कम्पनियों की डीलरशिप लेने की समस्या, बेचने की समस्या क्योंकि वे बाज़ार में एकाधिकार के माडल पर काम करते है।
व्यवसाय कभी भी प्रस्कृपटिव Prescriptive माडल पर सफल नहीं हो सकता। इसी तरह सभी किसान उत्पादक संगठनों की व्यवसायिक रणनीति एक जैसी नहीं हो सकती क्योंकि किसान उत्पादक संगठन के बाजार में अंतर होता है, उनके लिए उत्पाद बाजार फिट अलग-अलग होगा, उनका एमवीपी – न्यूनतम व्यवहार्य उत्पाद अलग-अलग होंगे इसलिए उनके आर्टिकल आफ एसोसिएशन एओए और मेमोरंडम आफ एसोसिएशन एमओए एक जैसे नहीं होने चाहिए लेकिन अगर हम वर्तमान में पंजीकृत किसान उत्पादक संगठनों के पेपर देखें तो वे लगभग एक जैसे ही है। क्योंकि यह डाकूमेंट कोई नहीं पड़ता है। तो यदि हमें अपने किसान उत्पादक संगठन को सफल बनाना है तो हर किसान उत्पादक संगठन को क्षेत्र की फसल विशिष्टता के आधार पर काम करना चाहिए। जिसमें एक फ़सल का चयन, एक बेरायटी का बीज, एक जैसी पैकिज आफ प्रेकटिस की रणनीति को विकसित कर काम करना चाहिए। हर किसान उत्पादक संगठन का ऑपरेशन मैनुअल अलग-अलग होना चाहिए। उनकी यूएसपी – अद्वितीय बिक्री प्रस्ताव अलग-अलग होंगे इसलिए उनकी ब्रांडिंग रणनीति अलग-अलग होनी चाहिए। गरीबी की कहानी मार्केटिंग के लिए अच्छी कहानी नहीं हो सकती। बाज़ार में कोई भी ग़रीब से व्यवसाय नहीं करना चाहता , सभी ग़रीबों से सहानुभूति रख सकते है लेकिन व्यवसाय नहीं करना चाहते। अनेकों कम्पनियाँ जैसे वालमार्ट, आईटीसी, रिलायंस, इफ़को आदि कम्पनियाँ किसान उत्पादक संगठन का गठन कर सपोर्ट तो कर रही है लेकिन किसान उत्पादक संगठनों के उत्पादन को ख़रीद नहीं रहीं है। सरकार बाज़ार में सबसे बड़ी ख़रीदार होने के बावजूद किसान उत्पादक संगठन द्वारा उत्पादित उत्पाद नहीं ख़रीदते है। जब टाटा कम्पनी द्वारा नेनो कार को सबसे सस्ती गरीब की कार के साथ मार्केटिंग की कहानी बना कर बेचने का प्रयास किया गया तो वह फेल हो गए। इसलिए किसान उत्पादक संगठनों के उत्पाद उपयोगिता व गुणवत्ता के आधार पर ही बेचे जा सकते है।
किसान उत्पादक संगठनों द्वारा कृषि आदानों का व्यवसाय शुरू किया गया लेकिन बाज़ार की चुनौतियों के कारण चला नहीं पा रहे हैं इस में मुख्य चुनौतीयां हैं उपलब्धता व मूल्य। इस चुनौती का अग्रिम बुकिंग, अग्रिम उठाव , किसानों के साथ अग्रिम स्टॉकिंग व ग्रुप में ख़रीद कर सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है। किसान उत्पादक संगठन को उनके कृषि उत्पाद बेचने के लिए यदि लम्बी सप्लाई चेन को कम करना है तो एक जैसे पैकिंज आफ प्रैक्टिस को अपना कर बाज़ार की तीन मूलभूत शर्तों- बड़ी मात्रा, एक जैसी गुणवत्ता व प्रतिस्पर्धी मूल्य का हल करना चाहिए। बिक्री के लिए टीएएम कुल बिक्री योग्य बाजार का जानना आवश्यक है। किसान उत्पादक संगठन को अपना कार्य क्षेत्र इसी के आधार पर निर्धारित करना चाहिए। सीएसी ग्राहक अधिग्रहण लागत, एमएयू – मासिक सक्रिय उपयोगकर्ता, छोड़ने की दर, ग्राहक प्रतिधारण, ग्राहक आजीवन मूल्य, औसत ऑर्डर आकार एवं एमआरआर – मासिक आवर्ती दर आदि अवधारणाओं की समझ होनी चाहिए।
किसान उत्पादक संगठन को वित्तीय अनुशासन को कड़ाई से अपनाने से ही वे लम्बे समय तक चलने के योग्य होंगे। तो उन्हें बिना सरकारी अनुदान के चलने की क्षमता विकसित करने के लिए स्टार्टअप जैसी रणनीति तैयार करने की कोशिश करना होगी जिसमें रनवे – सूखा पाउडर, बर्न दर, मासिक आवर्ती राजस्व, ARR – वार्षिक रन रेट, GM सकल मार्जिन, शुद्ध लाभ, वित्तीय मीट्रिक, ब्रेक ईवन, ऋण से इक्विटी अनुपात, ROI निवेश पर रिटर्न, P & L लाभ एवं हानि पत्रक हर साल प्रारंभ से तैयार कर संचालक मण्डल की बैठक में रखना चाहिए।
निरंतर निगरानी व मूल्यांकन के लिए KPI – भारत सरकार द्वारा विकसित निगरानी प्रणाली अपनाने की ज़रूरत है। सबसे बड़ी बात यह है कि किसान उत्पादक संगठन के सदस्य निर्माता और ग्राहक दोनों है अतः शुरू में उन्हें स्थानीय बाज़ार में अपने उत्पादों को बेचने का अनुभव लेने की कोशिश कर फिर शहरी बाज़ार, फ़्यूचर बाज़ार, संगठित बाज़ार ई-बाज़ार व निर्यात के क्षेत्र में कदम रखना चाहिए।
किसान उत्पादक संगठन को एक उत्पाद एक कंपनी की अवधारणा पर काम करने के लिए अन्य किसान उत्पादक संगठन से प्रतिस्पर्धा न कर सहयोग विकसित करने की कोशिश करना चाहिए। समूह खरीद – समूह बिक्री – अभ्यास का एक ही पैकेज तैयार करने के लिए कृषि आदान निर्माता कम्पनियों से सहयोग लेने की ज़रूरत है। एक सहयोगी प्लेटफ़ॉर्म विकसित करने के लिए ई-फसल सहायता कर रहा है जिसके तहत मार्केटिंग एक्ज़ीक्यूटिव तैयार किये जा रहे हैं। किसान उत्पादक संगठनों के साथ ई – हरित व्यापार केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं तथा 90% तक लाभ साझा किया जाना प्रस्तावित है और सॉफ्टवेयर, भुगतान गेटवे, उत्पाद पोर्टफोलियो, दिया जा रहा है। किसान उत्पादक संगठन को कोई लाइसेंस नहीं लेना है, कोई निवेश नहीं, कोई इन्वेंट्री नहीं, कोई जोखिम नहीं केवल नेटवर्किंग कर व्यवसाय शुरू करना है। ई-फसल FAQ प्रमाणन के साथ ग्रेडिंग पैकिंग सुविधा, नमूना आधार बिक्री – गोदाम, कोल्ड-स्टोरेज, रसीद पर ऋण – राष्ट्रीय स्तर के स्टॉकिस्ट, प्रोसेसर, निर्यातकों के साथ ऑनलाइन ऑफ लाइन मार्केटिंग लिंकेज उपलब्ध कराने की पहल है। क्योंकि बाजार को परवाह नहीं है कि आप कौन हैं? बाजार केवल मात्रा का सम्मान करता है इसलिए अगर हम एक साथ आ सकते हैं, तो बाजार निश्चित रूप से हमारे लिए काम करता है अन्यथा हममें से प्रत्येक को अपना हिस्सा पाने के लिए संघर्ष करते रहना होगा। तों आईए साथ मिलकर बाज़ार से किसान उत्पादक संगठनों के लिए काम कराया जाए।
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