राष्ट्रीय दलहन मिशन को मंत्रिमंडल की मंजूरी, ₹11,440 करोड़ का बजट – लेकिन किसानों की असली मुनाफ़ेदारी पर सवाल
03 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: राष्ट्रीय दलहन मिशन को मंत्रिमंडल की मंजूरी, ₹11,440 करोड़ का बजट – लेकिन किसानों की असली मुनाफ़ेदारी पर सवाल – प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय दलहन मिशन को मंजूरी दी है और इसके साथ ही रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी बढ़ा दिया गया है।
केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि इस मिशन का उद्देश्य देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना, पोषण सुरक्षा को मजबूत करना और किसानों की आमदनी बढ़ाना है। सरकार ने वर्ष 2030–31 तक 35 मिलियन टन दलहन उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जो 2024–25 में अनुमानित 24.2 मिलियन टन से कहीं अधिक है।
यह मिशन देश के 416 ज़िलों में लागू होगा, जिसमें धान की परती ज़मीनों का उपयोग, उन्नत बीज, अंतरवर्तीय फसलें, सिंचाई सहायता और अरहर, उड़द व मसूर जैसी दालों की 100% सरकारी खरीद शामिल है। मिशन के लिए वर्ष 2025–26 में ₹11,440 करोड़ का बजट तय किया गया है।
किसानों के लिए असली सवाल: MSP, उत्पादन और बढ़ती लागत
योजना सुनने में आकर्षक है — MSP बढ़ाया गया है और दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष मिशन भी चलाया जाएगा। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इससे किसानों की जेब में सच में मुनाफ़ा बढ़ेगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि दलहन की खेती की लागत तेज़ी से बढ़ रही है। खाद-बीज, सूक्ष्म पोषक तत्व, सिंचाई और मशीनरी का खर्च साल दर साल बढ़ता जा रहा है। जहाँ MSP में चना और मसूर जैसी दालों के लिए 4–6% की बढ़ोतरी की गई है, वहीं खेती की लागत 8–12% तक बढ़ जाती है, जिससे किसान की मार्जिन घट जाती है।
देश में कई नई किस्में और जलवायु अनुकूल दालें विकसित हुई हैं, लेकिन उनकी पैदावार अब भी लागत की रफ़्तार को पकड़ नहीं पाई है। किसान जब प्रमाणित बीज, खाद और सिंचाई में निवेश करते हैं, तो उन्हें अक्सर वास्तविक लाभ कम ही मिलता है, चाहे सरकार खरीद की गारंटी क्यों न दे।
एक कृषि अर्थशास्त्री ने कहा, “मुद्दा केवल MSP बढ़ाने का नहीं है। असली समाधान तभी होगा जब उत्पादकता लागत से तेज़ बढ़े। जब तक बीज तकनीक, मशीनीकरण और लागत-कुशलता में सुधार नहीं होगा, दलहन मिशन किसानों की स्थायी आय की बजाय एक और सब्सिडी योजना बनकर रह जाएगा।”
तेलहन बनाम दलहन: नीति में असमानता
आंकड़ों से साफ है कि तेलहन और मोटे अनाज को ज़्यादा समर्थन मिलता दिख रहा है, जबकि दलहन को अपेक्षाकृत कम। जैसे – सरसों व रेपसीड का MSP 4.2% बढ़ा, जबकि मसूर का केवल 4.48% और चने का 3.98%। वहीं कुसुम (सैफ्लॉवर) की MSP वृद्धि 10% से भी अधिक है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार दलहन के उत्पादन लक्ष्य को हासिल कर पाएगी, जब तक MSP और प्रोत्साहन दोनों में बराबरी नहीं होगी?
MSP वृद्धि: समर्थन तो मिला, पर संतुलन नहीं
सरकार ने रबी फसलों के MSP में ताज़ा बढ़ोतरी की है। इसमें सबसे बड़ी वृद्धि कुसुम (सैफ्लॉवर) की हुई है, जबकि गेहूँ, जौ, चना और मसूर जैसी फसलों में वृद्धि सीमित रही।
MSP तुलना तालिका (2025–26 बनाम 2026–27)
फसल | MSP 2025–26 (₹/क्विंटल) | MSP 2026–27 (₹/क्विंटल) | वृद्धि (₹) | वृद्धि (%) |
---|---|---|---|---|
गेहूँ | 2,425 | 2,585 | 160 | 6.60% |
जौ | 1,980 | 2,150 | 170 | 8.59% |
चना | 5,650 | 5,875 | 225 | 3.98% |
मसूर | 6,700 | 7,000 | 300 | 4.48% |
रेपसीड और सरसों | 5,950 | 6,200 | 250 | 4.20% |
कुसुम | 5,940 | 6,540 | 600 | 10.10%* |
मिशन बड़ा है, पर किसान की आमदनी पर सवाल बाकी
राष्ट्रीय दलहन मिशन निश्चित रूप से पोषण सुरक्षा और आयात घटाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। ₹11,440 करोड़ का बजट, ज़िला स्तर पर फोकस और 100% सरकारी खरीद की गारंटी इसे सशक्त बनाती है।
लेकिन किसानों के लिए मुख्य चुनौती जस की तस है — लागत MSP से तेज़ बढ़ रही है। किसान MSP बढ़ने से खुश हैं, लेकिन असली लाभ तब होगा जब उनकी पैदावार और उत्पादन दक्षता भी बढ़े।
दलहन मिशन तभी सफल होगा जब सरकार दाम और खरीद के साथ-साथ बीज, तकनीक, सिंचाई और लागत कम करने के उपायों पर भी उतना ही ध्यान दे। तभी किसान को वास्तविक मुनाफ़ा मिलेगा और भारत दालों में आत्मनिर्भर बन पाएगा।
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