धानुका एग्रीटेक ने किसानों को दी झुलसा व फफूंदी रोगों से आलू फसल की सुरक्षा के उपाय
30 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: धानुका एग्रीटेक ने किसानों को दी झुलसा व फफूंदी रोगों से आलू फसल की सुरक्षा के उपाय – जैसे ही रबी सीजन की शुरुआत हो रही है, देशभर के आलू किसान बुआई की तैयारियों में जुट गए हैं। आलू एक उच्च मूल्य वाली नगदी फसल है, जिसकी खेती में बुआई से लेकर खुदाई तक विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। बदलते मौसम, रोग और कीट संक्रमण से फसल की उपज व गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में, धानुका एग्रीटेक ने किसानों को सलाह दी है कि वे वैज्ञानिक फसल प्रबंधन और सुरक्षा उपायों को अपनाकर स्वस्थ और लाभदायक फसल सुनिश्चित करें।
सही बुआई के उपाय
मजबूत और रोग-मुक्त फसल के लिए किसानों को हमेशा प्रमाणित और रोगमुक्त बीज कंदों का उपयोग करना चाहिए। मध्यम आकार के स्वस्थ बीज कंद बेहतर अंकुरण देते हैं। क्षेत्र और तापमान के अनुसार, बुआई का सही समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक माना जाता है। मिट्टी भुरभुरी, जैविक पदार्थों से भरपूर और जल निकासी वाली होनी चाहिए। गहरी जुताई और समतलीकरण जलभराव रोकने के लिए आवश्यक है, जिससे कंद सड़ने से बचते हैं। पौधों के बीच 20–25 सेंटीमीटर और कतारों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें, जिससे पौधों को पर्याप्त वायु और विकास का स्थान मिले।
रोगों से फसल की सुरक्षा
स्वस्थ बीज ही स्वस्थ फसल की नींव होता है। बीज को प्रारंभिक रोगों जैसे ब्लैक स्कर्फ और स्कैब से बचाने के लिए बीज उपचार बेहद जरूरी है। आलू की फसल को सबसे बड़ा खतरा प्रारंभिक व देर से झुलसा (ब्लाइट) रोग से होता है, जो नमी और ठंडे मौसम में तेजी से फैलता है और उपज व गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करता है। इससे बचाव के लिए किसानों को अंकुरण के तुरंत बाद रोकथाम के तौर पर फफूंदनाशी का छिड़काव शुरू करना चाहिए और वैज्ञानिक सलाह के अनुसार दोहराना चाहिए।
बीज उपचार के लिए थायोफेनेट मिथाइल 38% + कसुगामाइसिन 2.21% और पत्तियों पर छिड़काव के लिए एमिसलब्रोम 20% एससी, मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी तथा कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% डब्ल्यूपी का उपयोग प्रभावी माना गया है। एमिसलब्रोम देर से झुलसा रोग से मजबूत सुरक्षा देता है, मैनकोजेब व्यापक प्रभाव वाला संपर्क फफूंदनाशी है जो फफूंद के बीजाणुओं के अंकुरण को रोकता है, वहीं कार्बेन्डाजिम-मैनकोजेब मिश्रण बीज व मिट्टी जनित रोगों पर नियंत्रण रखता है। समय पर छिड़काव, फसल चक्र का पालन और खेत की स्वच्छता से रोगों की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
नमी और पोषक तत्व प्रबंधन
कंद विकास के लिए समान नमी बनाए रखना जरूरी है। खेत में जलभराव न हो, इसके लिए उचित निकासी व्यवस्था करें। स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई अपनाने से नमी समान रूप से बनी रहती है। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे प्रमुख पोषक तत्वों के साथ जैविक खाद का संतुलित उपयोग पौधों की वृद्धि और गुणवत्तापूर्ण कंद उत्पादन में सहायक होता है।
माइकोराइजा जैसे जैव उर्वरक भी फसल द्वारा नमी और पोषक तत्वों के बेहतर अवशोषण में सहायक पाए गए हैं।
स्मार्ट और सुरक्षित खेती
धानुका एग्रीटेक के उन्नत फसल सुरक्षा उत्पाद—जैसे पर्यावरण अनुकूल फफूंदनाशी, प्रणालीगत कीटनाशी और बायोस्टिमुलेंट्स—किसानों को फसल सुरक्षा के प्रभावी समाधान प्रदान करते हैं। सही बुआई पद्धति, समय पर सुरक्षा उपाय और वैज्ञानिक प्रबंधन अपनाकर किसान आलू की फसल को रोगों और कीटों से बचा सकते हैं, जिससे अधिक उपज और बेहतर आय सुनिश्चित की जा सकती है।
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