कीटनाशक संशोधन नियम 2015 : एक कदम
भारत सरकार के 5 नवम्बर 2015 के राजपत्र में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि सहकारिता और कृषि कल्याण विभाग की अधिसूचना प्रकाशित हुई। इस अधिसूचना में केन्द्रीय सरकार को कीटनाशी अधिनियम 1968 तथा कीटनाशी नियम 1971 में संशोधन के अधिकार प्राप्त कर लिए हैं। यह आवश्यक हो जायेगा कि पीड़कनाशकों के उत्पादन से लेकर विक्रय तक सभी व्यक्तियों के पास, कृषि या इससे सम्बन्धित विषय की डिग्री होना आवश्यक है। वर्तमान में इससे सम्बन्धित व्यक्तियों को दो वर्ष का समय होगा कि वे आवश्यक डिग्री प्राप्त कर लें। वर्तमान में इस उद्योग के उत्पादन से लेकर ग्रामीण अंचल में पीड़कनाशक विक्रेताओं का कृषि शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है। बहुत ही कम कृषि स्नातक है जिन्होंने पीड़कनाशकों के व्यापार को अपनी जीविका का साधन बनाया है। अन्यथा इसके उत्पादन, वितरण तथा विक्रय में व्यापारी परिवार ही चला रहे हैं, जिनका कृषि ज्ञान उनके व्यापारिक अनुभव तक ही सीमित है। किसानों द्वारा उनकी कृषि समस्याओं के समाधान पर किये गये अध्ययन अनुसार सामान्य किसान सबसे अधिक परामर्श अपने स्थानीय कृषि उत्पाद विक्रेता से ही लेता है क्योंकि वह उसे सरलता से उपलब्ध हो जाता है और उसको आवश्यक कीट, फफूंदी या नींदानाशक उसको उपलब्ध करा देता है। इसमें उसके व्यापारिक हित भी जुड़े रहते हैं। इस प्रक्रिया में बहुधा कृषि सम्बन्धित समस्या के निराकरण हेतु सहा जानकारी नहीं मिलती और इसके साथ-साथ अमानक पीड़कनाशक भी किसान तक पहुंच जाते हैं। जिसका परिणाम हमें पिछली कपास की फसल में पंजाब में देखने को मिला जिसने एक उग्र आंदोलन का रूप ले लिया था। कीटनाशी संशोधन नियम 2015 के आने से आशा है कि इनके विक्रय में कृषि स्नातक आने के बाद 2-3 वर्षों में किसानों को तकनीकी रूप से सही सलाह मिलेगी तथा किसान की आर्थिक स्थिति सुधारने तथा देश के कृषि उत्पादन बढ़ाने में केन्द्रीय सरकार का यह साहसिक कदम एक मील का पत्थर साबित होगा।