उद्यानिकी (Horticulture)

आंवला की लाभकारी खेती

  • राजेश कुमार मिश्रा
    पूर्व वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी, सागर
    मो. : 8305534592

 

13 सितम्बर 2022, आंवला की लाभकारी खेती – आंवला का वैज्ञानिक नाम अम्बेलिका आकिसिनेलिस है। यह मध्यम आकार का औषधीय पौधा है। आयुर्वेद की महत्वपूर्ण औषधि त्रिफला इससे बनाई जाती है। इस वृक्ष का धार्मिक महत्व भी है कार्तिक के माह में इस वृक्ष के नीचे खाना बनना शुभ माना गया है। इसे घर के पीछे एवं छोटे उद्यानों में भी उगाया जाता है। इस वृक्ष के समस्त भाग जैसे फल, पत्ते, जड़ तथा छाल उपयोग में लाये जाते है। पौराणिक ग्रंथों में भी इसका महत्व बतलाया गया है पद्यम पुराण में कहा गया है कि जहाँ-जहाँ आंवले के वृक्ष होते हैं वहाँ-वहाँ अलक्ष्मी का नाश हो जाता है। सभी देवता आंवले के वृक्ष से अत्यंत संतुष्ट होते हैं और वे प्रसन्न होकर आंवले के वृक्ष में स्थिर रहते हैं तथा एक क्षण को भी उस स्थान का त्याग नहीं करते हैं।

Advertisement
Advertisement

वर्तमान में आंवले की खेती कृषि वानिकी के रूप में की जा रही है आंवला के फल का अचार, जेली, मुरब्बा तथा आयुर्वेदिक दवाइयों में विशेष महत्व है। हाल ही में की गई शोध से ज्ञात हुआ है कि आंवला रक्त में मौजूद घातक कोलेस्टाल क स्तर घटाने में विशेष भूमिका अदा करता है। आंवला मुख्य धमनी की भीतरी दीवार में फलक नहीं जमने देता और इस तरह रक्त का प्रवाह सुनिश्चित कर हृदय धात की आशंका से छुटकारा दिलाता है इसके फल में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में रहता है। आंवला के फल के रस में संतरे से प्राप्त रस से 20 गुना अधिक विटामिन सी रहता है।
उचित जल विकास वाली बलुई दोमट से मटियार दोमट मिट्टी इसके रोपण के लिए उपयुक्त है। 5.5 से 8.5 पी.एच. वाली अम्लीय से क्षारीय भूमि इसके रोपण के लिए उपयुक्त है। इसे जुलाई से सितम्बर तक तथा पानी होने पर फरवरी से मार्च तक लगाया जा सकता है।

भूमि

आंवला रोपण हेतु 8&8 मीटर का रोपण अंतराल उपयुक्त माना गया है इस आधार पर प्रति हेक्टर क्षेत्र में 156 पौधे रोपित होंगे गड्ढे का आकर उपजाऊ मिट्टी में 30&30&30 से.मी. और पड़त भूमि में 50&50 से.मी. रखें। गड्ढे खोदते समय ऊपरी एक फीट की मिट्टी को अलग रखें, शेष मिट्टी से पत्थर कंकड़ अलग कर लें एवं गोबर खाद व बीएचसी मिला कर गड्ढे भरें।

Advertisement8
Advertisement
उर्वरक

एक वर्ष के आंवले के पौधे में 20 कि.ग्रा. गोबर खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस तथा 75 से 100 ग्राम पोटेशियम डालें यही मात्रा हर वर्ष इसी अनुपात में बढ़ाते हुए आंवले के पौधे 10 वर्ष तक डालें।

Advertisement8
Advertisement

आंवले के पूर्ण विकसित फल वृक्षों हेतु गोबर की खाद 35 कि.ग्रा., अमोनियम सल्फेट 250 ग्राम, सुपर फास्फेट 400 ग्राम, व म्यूरेट आफ पोटाश 100 ग्राम दें।
गोबर, खाद पौधे में जनवरी माह में नाइट्रोजन पोटाश की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा जनवरी या फरवरी में पुष्पन होने के पूर्व डाली जाये बाकी आधी नाइट्रोजन, पोटाश पौधे में अगस्त माह के अंत में डालें। खाद पौधे के चारों और फाबड़े से मिट्टी खोदकर मिलायें तथा खाद डालने में तुरंत बाद पौधे में सिंचाई किया जाना आवश्यक है।

उन्नतशील प्रजातियां

आंवला की उन्नतशील जातियों में बनारसी किस्म के पेड़ सीधे बढऩे वाले होते है तथा फलों का आकार मध्यम से लेकर बड़ा होता है इसके फल का औसत वजन 40-45 ग्राम है फल के गूदे में रेशे की मात्रा बहुत कम होती है। फ्रांसिस या हाथीझूल किस्म के वृक्ष भी वनारसी की तरह ऊपर की ओर बढऩे वाले होते है इसके फल बड़े 50-60 ग्राम के होते हंै। इसके फलों में शुष्क विगलन समस्या अधिक है चकइया किस्म की डालिया किनारे की तरफ अधिक बढ़ती है जिससे पौधों में फैलाव अधिक होता है यह सबसे अधिक फल देने वाली किस्म है किन्तु फलों का आकार छोटा 25-30 ग्राम का होता है।
कृष्णा या एन.ए. 4 किस्म का चुनाव बनारसी के बीजू पौधों से किया गया है इसके फल 40-45 ग्राम वजन के होते हंै।
कंचन (एन.ए. 5) किस्म का चुनाव चकईया किस्म के बीजू पौधे से किया गया है यह अधिक फल देने वाली किस्म है। फल छोटे से मध्यम आकार के 30-34 ग्राम के चपटे लम्बे होते हैं यह अचार के लिये एक अच्छी किस्म है।
एन.ए.7 किस्म के फलों का आकार मध्यम से बड़ा होता है तथा यह किस्म प्रत्येक वर्ष फल देती है पौधे ऊपर की ओर बढऩे वाले होते है।

सिंचाई

आंवला के रोपण में केवल खाद एवं उर्वरक डालने के पश्चात की सिंचाई की आवश्यकता है पौधों में पुष्पन के समय में सिंचाई नहीं की जाना चाहिए परंतु फल आने के बाद सिंचाई की जा सकती है। इस प्रकार सर्दी में फल आने के पश्चात एक माह तथा गर्मी में तीन माह तक माह में तीन बार की दर से सिंचाई की जाये सितंबर से दिसंबर तक 15-20 दिन में अंतर पर सिंचाई करें जिससे फल कम झड़ते हैं व अधिक बनते हैं एवं ग्रीष्म ऋतु में 8 से 10 दिन से अंतर से सिंचाई करें।
अक्टूबर तथा अप्रैल में गुड़ाई या जुताई करें। आंवला का पूर्ण विकसित वृक्ष 12 वर्ष में 200 क्विंटल तक उपज देता है।

उत्पादन

उद्यानों में 4-5 वर्ष के पश्चात आंवले का उत्पादन शुरू हो जाता है पहले पांच वर्षों में आंवले का उत्पादन 15 क्विं. प्रति हेक्टेयर आता है। बाजार में इसकी विक्रय दर 5001 क्विंंटल रहती है। आंवले के फल को सुखाकर आंवला वल्व रू. 25/कि., बीज रू. 200/कि. बिकता है।

कटाई छटाई

आंवला के वृक्ष में अच्छे फल प्राप्त करने के लिए आंवले के पौधे में बराबर दूरी पर अच्छी टहनियां रख कर बाकी टहनियों को जमीन से 75 से.मी, ऊँचाई से काट देें ताकि आंवला के पौधे चारों ओर बराबर बढक़र एक अच्छे छाते वाले वृक्ष की शक्ल में विकसित हो सके।

Advertisement8
Advertisement

आंवला फल से अच्छे बीज की प्राप्ति के लिये आंवला का फल माह जनवरी-फरवरी में वृक्ष से तोड़ा जाये उस समय फलों से प्राप्त बीज का रंग काला भूरा होता है। हल्के, पीले, भूरे रंग का बीज अपरिपक्व होता है फलों को तोडक़र 20-25 दिनों तक धूप में सुखाने पर लकड़ी के हैंडिल से हल्के तौर पर पीटने से बीज प्राप्त होते हैं। प्रत्येक फल से औसत 5 बीज प्राप्त होते हैं एक किलो ग्राम में औसतन आंवले के 45 से 50 फल आते हैं तथा 200 किलो आंवला फल से एक किलो ग्राम बीज (42000-45000) प्राप्त होता है। आंवले के बीज का अंकुरण एक वर्ष तक 50 से 70 प्रतिशत रहता है जो कि एक वर्ष बाद घटता जाता है। आंवला लगाने के बाद कम से कम दो बार निदाई, गुड़ाई जून-जुलाई तथा जनवरी-फरवरी में करायें।

 

Advertisements
Advertisement5
Advertisement