खरीफ की शान धान
- सुधांशु पाण्डेय , डॉ. देवेन्द्र पयासी जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय
क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, सागर
12 जुलाई 2021, खरीफ की शान धान –
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है तथा भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या की जीवकोपार्जन का साधन है। खरीफ फसलों में धान का महत्वपूर्ण स्थान है एवं भारत की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या का प्रमुख खाद्यान्न पदार्थ है। इसलिए यह आवश्यक है कि खाद्यान्न की पूर्ति हेतु इकाई क्षेत्र में कम लागत में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर खाद्यान्नों की पूर्ति की जाये। इस परिप्रेक्ष्य में 1983 में फादर हेनरी की लाउनेनी द्वारा मेडागास्कर विधि विकसित की गई।
एसआरआई के अंतर्गत कई विशिष्ठ तकनीकियों को विकसित किया गया, जिनका क्षेत्र के अनुसार परीक्षण आवश्यक बताया गया। इस विधि को अपनाने पर लागत को कम करके 50 से 300 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही यह पद्धति पर्यावरण की दृष्टि से ईको फ्रेंडली व समगतिशील कृषि (स्थिर उत्पादन प्राप्त करने) हेतु उपयोग सिद्ध हुई है। एसआरआई पद्धति से धान उत्पादन के मुख्य बिन्दु निम्र है-
- भरे हुये पानी में इसकी जड़े 6 सेमी की गहराई तक जाती है और पौधे में प्रजनन अवस्था प्रारंभ हो जाती है। इसे रोकने के लिये अच्छी जल निकासी वाली भूमियों का चुनाव करें या खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था हो।
- 15 दिन से अधिक की पौध रोपण करने पर इसकी वृद्धि कम हो जाती है तथा इसमें कल्लों की संख्या भी कम हो जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। अत: 8-14 दिनों की पौध की रोपाई करें
- नर्सरी से पौध को ऐसे निकाला जाये की उसकी जड़ों को नुकसान न हो एवं निकलने के तुरंत बाद (1/2 घंटे के अंदर) ही रोपाई करनी चाहिए।
- पौधे से पौधे के बीच की दूरी अधिक रखने से जड़ क्षेत्र में पर्याप्त वायु संचार होता है एवं जड़ों की वृद्धि अच्छी होती है तथा कल्ले भी अधिक संख्या में निकलते हैं। जिससे की पौधे स्वस्थ होंगे एवं अधिक उत्पादन प्राप्त होगा।
- पौधों की दूरी अधिक होने पर वायु संचार सुचारु होने के कारण सूक्ष्म जीवों का प्रतिस्थापन होगा, जिससे पौधों में कीटों एवं व्याधियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
खेत का चुनाव
इस पद्धति से धान की खेती हेतु जल निकास की व्यवस्था उचित हो ऐसी भूमि का चुनाव करें।
बीज की मात्रा
इस पद्धति से धान की खेती हेतु 5-8 किग्रा प्रति हे. बीज की आवश्यकता होती है जबकि पारम्परिक रोप विधि से धान की खेती हेतु 50-60 कि.ग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
किस्म
पूर्णिमा, दन्तेवरी, आई.आर.64 , एमटीयू-1010, एमटीयू-1081, आईआर-36, क्रांति, महामाया, बम्लेश्वरी, सफरी-17, महसुरी
सुगंधित चावल के लिए उन्नत किस्में
पूसा सुगंधा 4 (पूसा 1121),पूसा सुगंधा 5 (पूसा-2511),पूसा-1509, बासमती 370, पूसा बासमती, तरोरी बासमती, इंदिरा,
संकर प्रजातियां
केआरएच-2, पीएचबी-71, पीए-6444, जेआरएच-4, जेआएव-5, जेआरएच-8
खाद एवं उर्वरक
खेत में हरी खाद के लिए सनई/ ढैंचा की बोनी कर 20-30 दिन बाद इसे खेत में पलट दें। तथा भली-भांति मिट्टी में मिलाकर 3-4 दिनों के लिये छोड़ दें। इसके उपरंात 10-15 टप नाडेप कम्पोस्ट या गोबर की खाद अथवा वर्मी कम्पोस्ट /है. व 1 किग्रा पीएसबी कल्चर मिला दें एवं इसके बाद खेत में पौध की रोपाई करें।
अन्य खाद उपलब्ध न होने पर 80:50:30 एनपीके प्रति हे. दें नाईट्रोजन का प्रयोग तीन भागों में करें। 1/4 भाग रोपाई के एक सप्ताह बाद, 1/2 भाग कल्ले फूटते समय एवं 1/4 भाग गभोट के प्रारंभ होने के समय की जायें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय करें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तेयारी के समय डालें, साथ ही 25 कि. प्रति हे जिंक सल्फेट का प्रयोग किया जाना फायदेेमंद होता है।
सिंचाई या जल प्रबंधन
धान के कंसे निकलने की अवस्था के समय कुछ दिनों (2-6 दिन) तक सूखा छोड़ते है जिससे कि भूमि में हल्के दरार आ जाये। इस प्रक्रिया से पौधों की सम्पूर्ण श्क्ति कल्ले निकलने में लगेगी एवं कल्ले समान निकलते है। बालियां निकलने एवं दाने भरते समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें। जिससे कि अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है।
धान की किस्में
- उच्च उपज वाली किस्म जैसे प्रारंभिक परिपक्व-दंतेश्वरी, जे.आर. 206, जे.आर. 81, सहभागी और एम.टी.यू. 1010 । मध्यम-क्रांति और महामाया (बोल्ड अनाज), आई.आर. 35, आई.आर. 64 (मध्यम अनाज), पूसा बासमती 1 और पूसा सुगंधा 5 (सुगंधित), दीर्घ- एम.टी.यू. 1001, एम.टी.यु. 7029 (स्वर्णा) और बी.पी.टी. 5204
- जेआरएच 5, जेआरएच 19 और इंदिरा सोना जैसे उच्च उपज वाले प्रारंभिक संकर बीज।