फसल की खेती (Crop Cultivation)

गर्मियों में भिंडी की खेती का सही तरीका, किसान ध्यान दें

लेखक: अंजली द्विवेदी, परास्नातक छात्रा (उद्यानिकी), सी बी यस यम यस यस, झींझक, सी यस जे यम यू, कानपुर, उत्तर प्रदेश एवं, डॉ. प्रदीप कुमार द्विवेदी, वैज्ञानिक (पौध संरक्षण), कृषि विज्ञान केन्द्र, रायसेन

01 अप्रैल 2025, भोपाल: गर्मियों में भिंडी की खेती का सही तरीका, किसान ध्यान दें – भिण्डी के फलों का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। इसमें विटामिन, खनिज लवण एवं आयोडीन पाया जाता है। इसकी जड़ों व तनों का उपयोग गुड़ व खांड को साफ करने में किया जाता है। फलों एवं रेषेदार डंठलों का उपयोग कागज व कपड़ा उद्योग में भी किया जाता है।
जलवायु -भिण्डी को उगाने के लिये लम्बे समय तक गर्म मौसम की आवष्यकता होती है। इसके अच्छे अंकुरण के लिये तापमान 20 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक होना चाहिये। जब दिन का तापमान 42 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक हो जाता है तो फूल झड़कर गिरने लगते हैं।

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भूमि की तैयारी –भिण्डी की अच्छी फसल के लिये भुरभुरी दोमट मिट्टी जिसमें खाद एवं कार्बनिक तत्वों की भरपूर मात्रा हो तथा पानी का निकास अच्छा हो उपयुक्त होती है। खेत को तीन चार बार जोत कर उसमें पाटा चलाकर समतल कर लिया जाता है। सिंचाई की सुविधा के अनुसार खेत को ;विषेषकर गर्मियों मेंद्ध उचित आकार की क्यारियों में बांट लिया जाता है।

उपयुक्त किस्में –

  1. पूसा सावनी – यह एक लम्बे फल; 15 से 18 सेन्टीमीटर वाली किस्म है। वर्षाकाल की अपेक्षा बसन्त में इसके पौधे छोटे होते है तथा फल भी छोटे मिलते है।
  2. पूसा मखमली – इसके फल नुकीले और हल्के हरे रंग के होते है। ग्रीष्म काल तथा बसन्त में उत्तरी भारत में अच्छी पैदावार होती है।

अन्य किस्मों में परभनी, क्रान्ति, अर्का अभय व अर्का अनामिका भी ली जा सकती है। ये किस्में विषाणु रोग रोधी हैं।

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  1. पूसा ए-4 –पीत सिरा मोजैक विषाणु प्रतिरोधी, फल गहरा हरा, 12-15 सेंमी लम्बा होता है।

अन्य किस्मों में वर्षा उपहार, अर्का अनामिका, पंजाब पद्मिनी, आदि प्रमुख हैं।

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खाद एवं उर्वरक – खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 120 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देवें। इसके अलावा 50 किलो नत्रजन, 50 किलो फॉस्फोरस तथा 50 किलो पोटाष बुवाई के पूर्व प्रति हैक्टेयर की दर से देवें। 50 किलो नत्रजन बुवाई के एक माह बाद खड़ी फसल में देवें।

बीज दर – गर्मी की फसल के लिये 18-20 किलोग्राम तथा वर्षा की फसल के लिये 8-10 किलोग्राम बीज की प्रति हैक्टेयर आवष्यकता होती है। एक ग्राम कार्बेन्डेजिम व 3 ग्राम थाईरम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें।

बुवाई का समय – ग्रीष्म ऋतु में इसकी बुवाई फरवरी-मार्च तथा वर्षा ऋतु की जून-जुलाई में करनी चाहिये।

बुवाई की दूरी – गर्मी की फसल के लिये बीजों को 24 घण्टे पानी में भिगोने के बाद बुवाई करें। इससे अंकुरण जल्दी एवं अच्छा होता है। गर्मी में कतार से कतार की दूरी 30 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सेन्टीमीटर तथा वर्षा ऋतु में कतारों के बीच की दूरी 45-60 सेन्टीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 30-45 से.मी. रखनी चाहिये।

सिंचाई एवं निराई गुड़ाई – गर्मियों में 5 से 6 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिये। वर्षा ऋतु में जब कभी आवष्यकता हो सिंचाई करें। क्यारियों में निराई-गुड़ाई करें जिससे खरपतवार नही पनपें।

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प्रमुख कीट –

हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी – ये कीट पौधों की पत्तियों एवं कोमल शाखाओं से रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते हैं। इससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ये कीट व्याधियों को फैलाने में भी सहायक होते हैं। इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 3 मिली/10 लीटर पानी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी या मैलाथियॉन 50 ई सी का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

फली छेदक – इस कीट की लटें काफी हानि पहुंचाती है। ये फलों में छेद करके अन्दर घुस जाती है तथा अन्दर से खाकर नुकसान पहुॅंचाती है जिससे फलों की विपणन गुणवत्ता कम हो जाती है। इस कीट से बचाव के लिये फूल आने के तुरन्त बाद कार्बोरिल 50 डब्ल्यू पी 4 ग्राम प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 1 मिली/लीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

मूलग्रन्थि (सूत्र कृमि) – इसके प्रकोप से पौधे की जड़ों में गांठें बन जाती है। पौधे पीले पड़ जाते हैं तथा उसकी बढ़वार रूक जाती है। इसके नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व 25 किलो कार्बोफ्यूरान 3 जी प्रति हैक्टेयर भूमि में मिलावें।

प्रमुख रोग –

छाछ्या (पाउडरी मिल्ड्यू) – इस रोग के आक्रमण से पत्तियों पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देते है तथा अधिक रोग ग्रसित पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती है। इस रोग के रोकथाम के लिये केराथेन 1 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से 10 से 12 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।

जड़ गलन – इस रोग के प्रकोप से पौधे की जड़ें सड़ जाती है। इस रोग के रोकथाम के लिये बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार कर बुवाई करनी चाहिये।

पीतषिरा मोजेक – इस रोग के प्रकोप से पत्तियां और फल पीले पड़ जाते है। पत्तियां चितकबरी होकर प्यालेनुमा शक्ल की हो जाती है जिसके फलस्वरूप पैदावार में कमी आ जाती है। इस रोग का संचार सफेद मक्खी नामक कीट से होता है अतः इसके नियंत्रण हेतु फूल आने से पहले तथा फूल आने के बाद इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 3 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। आवष्यकतानुसार यह छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करें।

फलों की तुड़ाई एवं उपज – फलों की तुड़ाई समय पर करना अति आवष्यक है। फलों को यदि अधिक समय तक पौधों पर रहने दिया जाता है तो उनकी कोमलता समाप्त हो जाती है रेषेदार हो जाते है एवं स्वाद खराब हो जाता है। गर्मी की फलन से लगभग 50 क्विंटल तथा वर्षा की फलन से लगभग 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है।

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